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लाभ पर उद्धरण

वेद से बड़ा शास्त्र नहीं है, माता के समान गुरु नहीं है, धर्म से बड़ा लाभ नहीं है तथा उपासना से बड़ी तपस्या नहीं है।

वेदव्यास

प्रार्थना उपवास बिना नहीं होती, और उपवास यदि प्रार्थना का अभिन्न अंग हो तो वह शरीर की मात्र यंत्रणा है, जिससे किसी का कुछ लाभ नहीं होता। ऐसा उपवास तीव्र आध्यात्मिक प्रयास है, एक आध्यात्मिक संघर्ष है। वह प्रायश्चित और शुद्धिकरण की प्रक्रिया है।

महात्मा गांधी

परिवार मर्यादाओं से बनता है। परस्पर कर्त्तव्य होते हैं, अनुशासन होता है और उस नियत परंपरा में कुछ जनों की इकाई एक हित के आसपास जुटकर व्यूह में चलती है। उस इकाई के प्रति हर सदस्य अपना आत्मदान करता है, इज़्ज़त ख़ानदान की होती है। हर एक उससे लाभ लेता है और अपना त्याग देता है।

जैनेंद्र कुमार

यदि तदनुसार आचरण नहीं किया तो केवल कहने या पढ़ने से क्या लाभ?

संत तुकाराम

काम पूरा हो जाने पर कोई भी उसके करने वाले को नहीं देखता—हित पर ध्यान नहीं देता, अतः सभी कार्यों को अधूरे ही रखना चाहिए।

वेदव्यास

धर्म-युद्ध से बढ़कर अन्य कल्याणकारक कर्त्तव्य क्षत्रिय के लिए नहीं है।

वेदव्यास

दोषों को भूलकर भाइयों पर केवल स्नेह करना चाहिए, बंधुओं से प्रेम स्थापित करना, लोक-परलोक दोनों के लिए लाभदायक होता है।

भास

मूढ़ को अधिक संपत्ति प्राप्त हो तो उसके अपने तो भूखे रहेंगे और दूसरे लाभांवित होंगे।

तिरुवल्लुवर

मनुष्य तीर्थयात्रा से जिस फल को पाता है, उसे बहुत दक्षिणा वाले अग्निष्टोम आदि यज्ञों द्वारा यजन करके भी कोई नहीं पा सकता।

वेदव्यास

जिससे आत्मकल्याण हो, गुण उत्पन्न हो, आपत्तियाँ दूर हों—इस प्रकार से अनेक फल देने वाली श्रेष्ठ जनों की मित्रता की कामना क्यों कीजिए?

भारवि

उपकार्य के अभाव में उपकारी सामग्री से क्या लाभ?

भट्टनारायण

पत्थर को पारस के स्पर्श से क्या लाभ?

संत तुकाराम

तप से हुआ क्या लाभ जब दुष्कर्म में ही लीन हो।

श्याम नारायण पाण्डेय
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