
प्रार्थना उपवास बिना नहीं होती, और उपवास यदि प्रार्थना का अभिन्न अंग न हो तो वह शरीर की मात्र यंत्रणा है, जिससे किसी का कुछ लाभ नहीं होता। ऐसा उपवास तीव्र आध्यात्मिक प्रयास है, एक आध्यात्मिक संघर्ष है। वह प्रायश्चित और शुद्धिकरण की प्रक्रिया है।

आत्मशुद्धि सबसे पहली चीज़ है, वह सेवा की अनिवार्य शर्त है।

आत्मशुद्धि के बिना अहिंसा-धर्म का पालन थोथा स्वप्न ही रहेगा।