
जो मायने रखता है वह आपकी त्वचा का रंग नहीं है, बल्कि वह शक्ति है जिसकी आप सेवा करते हैं और लाखों लोगों को धोखा देते हैं।

आत्मशुद्धि सबसे पहली चीज़ है, वह सेवा की अनिवार्य शर्त है।
-
संबंधित विषय : आत्म-शुद्धिऔर 3 अन्य

निरंतर उपासना का तात्पर्य है— निरंतर भजन। अर्थात् नामजप, चिंतन, ध्यान, सेवा-पूजा, भगवदाज्ञा-पालन यहाँ तक कि संपूर्ण क्रिया मात्र ही भगवान की उपासना है।

मेरा शरीर जलकर अवश्य राख होगा और वृक्षों में खाद के रूप में उपयोगी होगा। जब उस वृक्ष की लकड़ी लेकर बढ़ई अपने कौशल से प्रभु के लिए पादुका बनाएगा, उस समय भी (उसमें स्थित) मुझे प्रभु की पद-सेवा का सौभाग्य मिलेगा ही।

दीन-दुखियों की सेवा ही प्रभु की पूजा है।

गँवारों की धर्मं-पिपासा इंट-पत्थर पूजने से शांत हो जाती है, भद्रजनों की भक्ति सिद्ध पुरुषों की सेवा से।

पराधीनता की ख़ास नींव अपने धर्म का नाश और दूसरे के धर्म की सेवा करने से पड़ती है।

पिता की सेवा अथवा उनकी आज्ञा का पालन करने से बढ़कर कोई धर्माचरण नहीं है।

हमारे सभी कार्यकर्ता, चाहे वे किसी भी पद पर क्यों न हों, जनता के सेवक हैं और हमारा हर कार्य जनता की सेवा के लिए है। ऐसी हालत में भला यह कैसे हो सकता है कि हम अपनी किसी भी बुराई को दूर करने की अनिच्छा प्रकट करें?

जो केवल खड़े रहते हैं तथा प्रतीक्षा करते हैं, वे भी सेवा करते हैं।