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मज़दूर पर कविताएँ

देश-दुनिया में पूँजीवाद

के प्रसार के साथ वंचित-शोषित तबकों के सरोकार को आवाज़ देना कविता ने अपना प्रमुख कर्तव्य स्वीकार किया है। इस क्रम में अर्थव्यवस्था को अपने कंधे पर ढोते मज़दूर पर्याप्त सहानुभूति और प्रतिरोध कोण से देखे गए हैं। इस चयन में मज़दूरों के संवादों-सरोकारों को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।

मोचीराम

धूमिल

इसी जन्म में इस जीवन में

केदारनाथ अग्रवाल

तोड़ती पत्थर

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

जो सुहाग बनाते हैं

रमाशंकर सिंह

ईंटें

नरेश सक्सेना

2020 में गाँव की ओर

विष्णु नागर

यहीं

अहर्निश सागर

अमीरी रेखा

कुमार अम्बुज

अच्छे बच्चे

नरेश सक्सेना

चाय पर चर्चा

अंकिता आनंद

ख़तरा

कुमार अम्बुज

कवियों के भरोसे

कृष्ण कल्पित

कानपुर

केदारनाथ अग्रवाल

बच्चा

भगवत रावत

वो स्साला बिहारी

अरुणाभ सौरभ

पावस

शैलेंद्र कुमार शुक्ल

लकड़हारे की पीठ

अनुज लुगुन

समोसे

वीरेन डंगवाल

गिरिवर भाई

शैलेंद्र कुमार शुक्ल

हथौड़े का गीत

केदारनाथ अग्रवाल

सब्ज़ीवाला

अजंता देव

जा रहे हम

संजय कुंदन

मज़दूर और मसीह

अलेक्सेइ खोम्याकोव

रिक्शाबान

बलराम शुक्ल

स्वर्ग से विदाई

गोरख पांडेय

उपजाऊ थकान

वेणु गोपाल

सुनो कारीगर

उदय प्रकाश

दिहाड़ी मज़दूर

शुभम नेगी

मज़दूर ईश्वर

जोशना बैनर्जी आडवानी

त्रिशुल

मोहन सिंह

बैल

शरद बिलाैरे

रायपुर बिलासपुर संभाग

विनोद कुमार शुक्ल

मई दिवस

नीलाभ अश्क

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