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आदिवासी पर कविताएँ

दलित-विमर्श की तरह ही

आदिवासी-विमर्श भी हिंदी साहित्य और कविता में गए कुछ दशकों में प्रमुखता से उभरा है। प्रस्तुत चयन आदिवासी समाज को आधार बनाने वाली कविताओं से किया गया है।

परवाह

जसिंता केरकेट्टा

मातृभाषा की मौत

जसिंता केरकेट्टा

अगर यह हत्या थी

महेश वर्मा

नदी, पहाड़ और बाज़ार

जसिंता केरकेट्टा

सरई फूल

राही डूमरचीर

लकड़हारे की पीठ

अनुज लुगुन

आदिवासी स्त्रियाँ

निर्मला पुतुल

पाठा की बिटिया

केशव तिवारी

गाडा टोला

राही डूमरचीर

उससे मेरा संबंध क्या था?

जसिंता केरकेट्टा

बिटिया मुर्मू के लिए

निर्मला पुतुल

संथाल परगना

निर्मला पुतुल

आइसक्रीम

ऋतुराज

पका बाघ

फ़रीद ख़ाँ

अघोषित उलगुलान

अनुज लुगुन

साहेब! कैसे करोगे ख़ारिज?

जसिंता केरकेट्टा

मेरे हाथों के हथियार

जसिंता केरकेट्टा

ओ शहर!

जसिंता केरकेट्टा

राष्ट्रगान बज रहा है

जसिंता केरकेट्टा

जड़ों की ज़मीन

जसिंता केरकेट्टा

प्रार्थना का समय

जसिंता केरकेट्टा

चुप्पी का समाजशास्त्र

जितेंद्र श्रीवास्तव

नहीं आए वे

जसिंता केरकेट्टा

झारखंड

अनीता वर्मा

सपाट सड़क पर

जसिंता केरकेट्टा

महुवाई गंध

अनुज लुगुन

किसी ने नहीं देखा मुझे

जसिंता केरकेट्टा

जनहित में

जसिंता केरकेट्टा

बाँधकोय

राही डूमरचीर

मैं कलुआ माँझी हूँ

रमणिका गुप्त

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