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भाषा पर कविताएँ

भाषा मानव जाति द्वारा

प्रयुक्त वाचन और लेखन की प्रणाली है जिसका उपयोग वह अपने विचारों, कल्पनाओं और मनोभावों को व्यक्त करने के लिए करता है। किसी भाषा को उसका प्रयोग करने वाली संस्कृति का प्रतिबिंब कहा गया है। प्रस्तुत चयन में कविता में भाषा को एक महत्त्वपूर्ण इकाई के रूप में उपयोग करती कविताओं का संकलन किया गया है।

मातृभाषा की मौत

जसिंता केरकेट्टा

अगर यह हत्या थी

महेश वर्मा

मौन

आरती अबोध

अप्रैल

नेन्सी मोरेजॉन

भानजी के टीथ

अंजुम शर्मा

अ-भाषा में

बाबुषा कोहली

दुःख से कैसा छल

ज्याेति शोभा

हिंदी

प्रभात

हिंदी

अनुभव

प्रतिज्ञा

कुशाग्र अद्वैत

अपनी भाषा में शपथ लेता हूँ

विनोद कुमार शुक्ल

समय के उलट

अंजुम शर्मा

कविताएँ पढ़ते हुए

निकोलाय ज़बोलोत्स्की

अक्षर

राजेंद्र यादव

बहरा

समृद्धि मनचंदा

यथार्थ

सुधीर रंजन सिंह

मैंने सराफ़ से पूछा

सर्गेई येसेनिन

उर्दू को उत्तर

बालमुकुंद गुप्त

वही ग़लती

तादेऊष रूज़ेविच

संस्कृत

रघुवीर सहाय

शिशु

नरेश सक्सेना

हिंदी

पंकज चतुर्वेदी

वरिष्ठ कवियो

कृष्ण कल्पित

ज्ञ

प्रकाश

खड़ी बोली

अविनाश मिश्र

मेरी वफ़ादार भाषा

चेस्लाव मीलोष

इसलिए बोलो

प्रदीप सैनी

निजी भाषा

ह्यूगो फॉन होफ़मनस्थाल

एक अजीब भाषा में

तादेऊष रूज़ेविच

काव्य-पाठ

निकोलाय ज़बोलोत्स्की

शब्दों के पार

लनचेनबा मीतै

एक भाषा में

रवि प्रकाश

भाषा

देवी प्रसाद मिश्र

हिंदी का नमक

कमल जीत चौधरी

लामकाँ है भाषा

नंदकिशोर आचार्य

उस भाषा में

सुतिंदर सिंह नूर

रोने की भाषा

राकेश कुमार मिश्र

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

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