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भाषा पर दोहे

भाषा मानव जाति द्वारा

प्रयुक्त वाचन और लेखन की प्रणाली है जिसका उपयोग वह अपने विचारों, कल्पनाओं और मनोभावों को व्यक्त करने के लिए करता है। किसी भाषा को उसका प्रयोग करने वाली संस्कृति का प्रतिबिंब कहा गया है। प्रस्तुत चयन में कविता में भाषा को एक महत्त्वपूर्ण इकाई के रूप में उपयोग करती कविताओं का संकलन किया गया है।

बोली हमारी पूर्व की, हमें लखै नहिं कोय।

हमको तो सोई लखै, जो धुर पूरब का होय॥

कबीर

भाषा चाहै होय जो, गुन गन हैं जा माहिँ।

ताहीं सो उपकार जग, सबै सराहहिं ताहि॥

सुधाकर द्विवेदी

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