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भक्ति पर उद्धरण

भक्ति विषयक काव्य-रूपों

का संकलन।

कबीर प्रत्येक लौकिक और अलौकिक वस्तु को जुलाहे की नज़र से देखते हैं। उनके लिए ईश्वर भी एक बुनकर ही है और उसकी यह दुनिया तथा मानव काया—‘झिनी-झिनी बीनी चदरिया है।’

मैनेजर पांडेय

जब मनुष्य ईश्वर को देखता है, तो वह उसे मनुष्य रूप में देखता है। इसी प्रकार अन्य प्राणी भी ईश्वर को अपनी-अपनी कल्पना, अपने-अपने रूप के अनुसार देखते हैं।

स्वामी विवेकानन्द

हम ईश्वर को देख नहीं सकते। यदि हम ईश्वर को देखने का प्रयत्न करते हैं, तो हम ईश्वर की एक विकृत और भयानक आकृति बना डालते हैं।

स्वामी विवेकानन्द

जगत में ईश्वर से हमें अपना कोई विशेष संबंध बना लेना होगा। कोई एक विशेष सुर बजाते रहना होगा।

रवींद्रनाथ टैगोर

आत्मा प्रेम के सतत विकास-पथ पर परमात्मा के संयोग की कामना से गतिमान है।

मैनेजर पांडेय

जो ईश्वर से प्रेम करना चाहता है, उसे अपनी उत्कट अभिलाषाओं का त्याग करना चाहिए। ईश्वर को छोड़ अन्य किसी बात की कामना नहीं करनी चाहिए।

स्वामी विवेकानन्द

भगवत्प्रेमियों को किसी इंद्रजाल से नहीं डरना चाहिए।

स्वामी विवेकानन्द

परमात्मा की कृपा पर मेरा अखंड विश्वास है। वह कभी टूटनेवाला भी नहीं। धर्मग्रंथों पर मेरी अटूट श्रद्धा है।

स्वामी विवेकानन्द

प्रेम, प्रेमी और प्रेमास्पद अर्थात् भक्ति, भक्त और भगवान् तीनों एक ही हैं।

स्वामी विवेकानन्द

धर्म का प्रवाह, कर्म, ज्ञान और भक्ति इन तीन धाराओं में चलता है। इन तीनों के सामंजस्य से धर्म अपनी पूर्ण सजीव दशा में रहता है। किसी एक के भी अभाव से वह विकलांग रहता है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

प्रीति के वशीभूत होकर ही भगवान श्रीकृष्ण नरलीला करते हैं।

मैनेजर पांडेय

जो ऊँचा है और नीचा है, परम साधु है और पापी भी, जो देवता है और कीट है, उस प्रत्यक्ष, ज्ञेय, सत्य, सर्वशक्तिमान ईश्वर की उपासना करो और अन्य सब मूर्तियाँ तोड़ दो।

स्वामी विवेकानन्द

यह दुनिया बड़े मज़े की जगह है और सबसे मज़ेदार है—वह असीम प्रियतम।

स्वामी विवेकानन्द

जब तक तुममें ईमानदारी, भक्ति और विश्वास है, तब तक प्रत्येक कार्य में तुम्हें सफलता मिलेगी।

स्वामी विवेकानन्द

मैं हर साँस के साथ भक्ति के बीज बोता हूँ—मैं हृदय का किसान हूँ।

रूमी

तुम पवित्र तथा सर्वोपरि निष्ठावान बनो; एक मुहूर्त के लिए भी भगवान् के प्रति अपनी आस्था खोओ, इसी से तुम्हें प्रकाश दिखाई देगा। जो कुछ सत्य है, वही चिरस्थाई बनेगा; किंतु जो सत्य नहीं है, उसकी कोई भी रक्षा नहीं कर सकता।

स्वामी विवेकानन्द

प्रत्येक धर्म में प्रार्थनाएँ हैं, पर एक बात ध्यान में रखनी होगी कि आरोग्य या धन के लिए प्रार्थना करना भक्ति नहीं है—वह सब कर्म है।

स्वामी विवेकानन्द

मंत्र नामक वस्तु जीवन को बाँधने का एक उपाय है।

रवींद्रनाथ टैगोर

रामकृष्ण परमहंस ने भिन्न-भिन्न धर्मों की साधना स्वयं करके, सब धर्मों की एकरूपता प्रत्यक्ष कर ली। तुकराम ने अपनी उपासना के सिवा दूसरे किसी की भी उपासना करते हुए भी, सारी उपासनाओं का सार जान लिया। जो स्वधर्म का निष्ठा से आचरण करेगा, उसे स्वभावतः ही दूसरे धर्मों के लिए आदर रहेगा।

महात्मा गांधी

हम में से हर कोई अपनी समझ के हिसाब से कुरान की व्याख्या करता है। व्याख्या करने के चार तरीके हैं। पहला तरीका है : केवल बाहरी अर्थ को समझना, जिससे ज्यादातर लोग संतुष्ट हो जाते हैं। दूसरा तरीका है : आंतरिक अर्थ को समझना जिसे बातें भी कहते हैं। तीसरा तरीका है : आंतरिक आत्मा को समझना। और चौथा तरीका इतना गहरा है कि उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।

शम्स तबरेज़ी

भक्ति किसी वस्तु का संहार नहीं करती, वरन् हमें यह सिखाती है कि हमें जो-जो शक्तियाँ दी गई हैं, उनमें से कोई भी निरर्थक नहीं है, बल्कि उन्हीं में से होकर मुक्ति का स्वाभाविक मार्ग है। भक्ति तो किसी वस्तु का निषेध करती और वह हमें प्रकृति के विरुद्ध ही चलाती है।

स्वामी विवेकानन्द

जिस वैराग्य का भाव प्रेम है, जो समस्त भिन्नता को एक कर देता है, जो संसारूपी रोग को दूर कर देता है, जो इस नश्वर संसार के त्रय-तापों को मिटा देता है, जो सब चीज़ों के यथार्थ रूप को प्रकट करता है, जो माया अंधकार को विनष्ट करता है, और घास के तिनके से लेकर ब्रह्मा तक सब चीज़ों में आत्मा का स्वरूप दिखता है, वह वैराग्य, हे शर्मन्! अपने कल्याण के लिए तुम्हें प्राप्त हो।

स्वामी विवेकानन्द

जो तुम्हारे भीतर भी है और बाहर भी, जो सभी हाथों से काम करता है और सभी पैरों से चलता हैं, जिसका बाह्य शरीर तुम हो, उसी की उपासना करो और अन्य सब मूर्तियाँ तोड़ दो।

स्वामी विवेकानन्द

''तद् आहुः केन जुहोति कस्मिन् हूयत इति। प्राणेनैव जुहोति प्राणे हूयते''—पूछा जाता है कि आहुति किस से दी जाती है और किस में दी जाती है? आहुति प्राण की दी जाती है, और प्राण में ही दी जाती है।”

मुकुंद लाठ

मनुष्य सर्वाधिक भयभीत मृत्यु से रहता है, इसलिए संहार के देवता शिव की बड़ी भक्ति करता है।

अमृतलाल वेगड़

जब दुनिया आपको घुटनों के बल धकेलती है, तो आप प्रार्थना करने के लिए एकदम सही स्थिति में होते हैं।

रूमी

किसी की मूर्ति नहीं बनानी चाहिए, क्योंकि इससे आपकी आँखें धुंधली हो जाएँगी।

शम्स तबरेज़ी

जिस मनुष्य को परमात्मा ने ही मार्ग नहीं दिखलाया, बुद्धि (तर्क-वितर्क) के प्रयोग मात्र से उस पर कोई रहस्य नहीं खुलेगा।

शम्स तबरेज़ी

ईश्वर की वाणी को बाँधने के अनेक संबंध हैं, उनमें से अपने मन के मुताबिक किसी एक संबंध को स्थिर कर लेना होगा।

रवींद्रनाथ टैगोर

हृदय में निर्गुण ब्रह्म का ध्यान, नेत्रों के सामने सगुण रूप की सुंदर झाँकी और जीभ से सुंदर राम नाम का जप करना। यह ऐसा है मानो सोने की सुंदर डिबिया में मनोहर रत्न सुशोभित हो।

तुलसीदास

भक्ति के दो विभाग हैं। एक वैधी भक्ति, जो विधिमयी या अनुष्ठानात्मक होती है और दूसरी मुख्य भक्ति या परा भक्ति।

स्वामी विवेकानन्द

जिसमें पूर्वजन्म घटित होता है परजन्म, मृत्यु आवागमन। जिसमें हम सदा एक होकर रहे हैं, और रहेंगे—उसी ईश्वर की उपासना करो और अन्य सब मूर्तियाँ तोड़ दो।

स्वामी विवेकानन्द

जो ईश्वर को अपने पास समझता है, वह कभी नहीं हारता।

महात्मा गांधी

हे जगत्पति! मुझे धन की कामना है, जन की,न सुंदरी की और कविता की। हे प्रभु! मेरी कामना तो यह है कि जन्म-जन्म में आपकी अहैतुकी भक्ति करता रहूँ।

चैतन्य महाप्रभु

भक्ति-लता संतों की कृपा से ही उत्पन्न होती है। दीनता एवं दूसरों को मान देने की वृत्ति आदि शिलाओं की बाढ़ द्वारा उस लता को संतापराध रूपी हाथी से बचाकर, श्रवण-कीर्तन आदि जल से सींचते और बढ़ाते रहना चाहिए।

विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर

जो सब प्राणियों से द्वेष करने वाला, सबका मित्र, दयावान, ममतारहित, निरहंकारी, सुख और दुःख को समान मानने वाला, क्षमाशील, सदा संतुष्ट, योगी, संयमी और दृढ़निश्चयी है और जिसने अपने मन और बुद्धि का परमात्मा को अर्पण कर दिया है, वह भक्त मुझे (परमात्मा को) प्रिय है।

वेदव्यास

हे भगवान्! आपने अपने बहुत नाम प्रकट किए हैं, जिनमें आपने अपनी सब शक्ति भर दी है और आपने उनके स्मरण के लिए कोई काल भी सीमित नहीं किए हैं। आपकी ऐसी कृपा है परंतु मेरा ऐसा दुर्भाग्य है कि इस जीवन में मुझमें कोई भक्ति नहीं है।

चैतन्य महाप्रभु

स्वामी का कार्य, गुरु भक्ति, पिता के आदेश का पालन, यही विष्णु की महापूजा है।

संत तुकाराम

सूरदास का प्रेम-दर्शन अत्यंत व्यापक है, जिसमें लौकिक और ईश्वरीय—दोनों प्रकार के प्रेम समाहित हैं।

मैनेजर पांडेय

भक्ति-मार्ग का सिद्धांत है भगवान को बाहर जगत में देखना। 'मन के भीतर देखना' यह योग-मार्ग का सिद्धांत है, भक्ति मार्ग का नहीं।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्य भाव से परमात्मा का भक्त हुआ, तो वह साधु ही मानने योग्य है। क्योंकि अब वह निश्चय वाला है। वह शीघ्र ही धर्मात्मा हो जाता है और शाश्वत शांति को प्राप्त करता है।

वेदव्यास

अहिंसा केवल बुद्धि का विषय नहीं है, यह श्रद्धा और भक्ति का विषय है। यदि आपका विश्वास अपनी आत्मा पर नहीं है, ईश्वर और प्रार्थना पर नहीं है, तो अहिंसा आपके काम आने वाली चीज़ नहीं है।

महात्मा गांधी

आश्चर्य है, वैद्य मरते हैं, डॉक्टर मरते हैं, उनके पीछे हम भटकते हैं। लेकिन राम जो मरता नहीं है, हमेशा ज़िंदा रहता है और अचूक वैद्य है, उसे हम भूल जाते हैं।

महात्मा गांधी

चित्त के कुविचार आसानी से नहीं टल सकते। रामका नाम लेने से ही वह ख़ाली हो सकता है।

महात्मा गांधी

गोस्वामी जी की राम-भक्ति वह दिव्य वृत्ति है जिससे जीवन में शक्ति, सरसता, प्रफुल्लता, पवित्रता, सब कुछ प्राप्त हो सकती है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

सत्, चित् और आनंद-ब्रह्म के इन तीन स्वरूपों में से काव्य और भक्तिमार्ग 'आनंद' स्वरूप को लेकर चले। विचार करने पर लोक में इस आनंद की दो अवस्थाएँ पाई जाएँगी—साधनावस्था और सिद्धावस्था।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

गोस्वामी जी के भक्ति-क्षेत्र में शील, शक्ति और सौंदर्य तीनों की प्रतिष्ठा होने के कारण मनुष्य की सम्पूर्ण भावात्मिका प्रकृति के परिष्कार और प्रसार के लिए मैदान पड़ा हुआ है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

जब ज्ञान से आलोकित तथा कर्म के द्वारा नियंत्रित और भीमशक्ति प्राप्त प्रबल स्वभाव परमात्मा के प्रति प्रेम एवं आराधना-भाव में उन्नत होता है, तब वही भक्ति टिक पाती है तथा आत्मा को परमात्मा से सतत संबद्ध बनाए रखती है।

श्री अरविंद

आज के समाज में प्रतिभा तो बहुत है, परंतु श्रद्धा नहीं है। ज्ञान तो है परंतु व्यावहारिक बुद्धि नहीं है। आडंबरपूर्ण सभ्यता तो है, परंतु प्रेम सहानुभूति नहीं है।

सैमुअल स्माइल्स

निरंतर उपासना का तात्पर्य है— निरंतर भजन। अर्थात् नामजप, चिंतन, ध्यान, सेवा-पूजा, भगवदाज्ञा-पालन यहाँ तक कि संपूर्ण क्रिया मात्र ही भगवान की उपासना है।

स्वामी रामसुखदास