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मुकुंद लाठ

1937 - 2020 | कोलकाता, पश्चिम बंगाल

सुप्रसिद्ध कवि-अनुवादक और कलाविद्। पद्मश्री से सम्मानित।

सुप्रसिद्ध कवि-अनुवादक और कलाविद्। पद्मश्री से सम्मानित।

मुकुंद लाठ की संपूर्ण रचनाएँ

कविता 27

उद्धरण 15

संगीत का विशेष, पनपता-बढ़ता इसलिए है कि स्वर और स्वर के संबंध—जिनसे संगीत बनता है—उनकी उधेड़बुन, हर परंपरा की अपनी होती है।

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मनुष्य का लक्षण ही अगर धर्मशील होना है—जैसा कि हमारे यहाँ चिंतन में गहराई से उभर कर आता है—तो मनुष्य धर्म-निरपेक्ष हो ही नहीं सकता, हाँ, वह धर्म के अनैक्य की; भिन्न क्षेत्रों की बात कर सकता है, जैसी कि की गई है। ‘सेक्यूलर’ शब्द कर्म के किसी ऐसे क्षेत्र की ओर संकेत नहीं करता, जो उस कोटि से बाहर हो, जिसे मनुष्य के लक्षण के रूप में ‘धर्म’ कहा गया है।

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संस्कार की धरती के बिना मनुष्य; मनुष्य ही नहीं हो सकता—प्राणी भर रह जाता है।

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समाज के कर्म का औचित्य—लोकयात्रा का, लोक-व्यवहार का औचित्य—यह भी धर्म का ही प्रश्न है।

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संस्कार मनुष्य को समाज में रह कर ही मिलता है। संस्कार क्या दिए जाएँ—यह समष्टि के धर्म का प्रश्न है।

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