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विश्वास पर उद्धरण

विश्वास या भरोसे में

आश्वस्ति, आसरे और आशा का भाव निहित होता है। ये मानवीय-जीवन के संघर्षों से संबद्ध मूल भाव है और इसलिए सब कुछ की पूँजी भी है। इस चयन में इसी भरोसे के बचने-टूटने के वितान रचती कविताओं का संकलन किया गया है।

पुराने दोस्त पी लेने के बाद और पराए हो जाते हैं। पी लेने के बाद दोस्तों की ज़बान खुल जाती है, दिल नहीं।

कृष्ण बलदेव वैद

भरोसा बनाए रखो कि तुम्हें भाषा पर सचमुच भरोसा है और हाँ, इसकी कोई समय-सीमा नहीं।

सिद्धेश्वर सिंह

मुझे विश्वास है कि दुराचारी सदाचार के ज़रिए शुद्ध हो सकता है।

जयशंकर प्रसाद

रचना का कहीं कहीं एक ख़ास तरह की रचनात्मक मुक्ति से गहरा संबंध होता है और उसी मुक्ति में मेरा विश्वास है।

केदारनाथ सिंह

हमारे प्रत्येक आचरण, कर्म या विचार केवल वृत्त का निर्माण ही करते हैं।

श्रीनरेश मेहता

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