
कवि को लिखने के लिए कोरी स्लेट कभी नहीं मिलती है। जो स्लेट उसे मिलती है, उस पर पहले से बहुत कुछ लिखा होता है। वह सिर्फ़ बीच की ख़ाली जगह को भरता है। इस भरने की प्रक्रिया में ही रचना की संभावना छिपी हुई है।

विषम समयों में कविता की चुप्पी भी एक चीत्कार की तरह ध्वनित होती रही है। यह चुप्पी केवल कविता की चुप्पी नहीं, एक सामाजिक चेतना की घुटन भरी चीख़ है।

भाषा के पर्यावरण में कविता की मौजूदगी का तर्क जीवन-सापेक्ष है : उसके प्रेमी और प्रशंसक हमेशा रहेंगे—बहुत ज़्यादा नहीं, लेकिन बहुत समर्पित!


कविता आदमी को मार देती है। और जिसमें आदमी बच गया है, वह अच्छा कवि नहीं है।

कविता विचारहीन नहीं हो सकती, परंतु विचारात्मक प्रतिबद्धता को मैं कविता के लिए अनिवार्य नहीं मानता।

कविता तो जीवन का प्रमाण मात्र है। अगर आपका जीवनदीप अच्छी तरह से जल रहा है, तो कविता सिर्फ़ राख है।

कविता की रचना सुनने से जुड़ी है।

वह सभी उपन्यासों की नायिका थी, सभी नाटकों की नायिका थी, सभी काव्य-पुस्तकों की अस्पष्ट ‘वह’ थी।

कविता के रंग चित्रकला के प्रकृति-रंग नहीं होते।

कविता ऐसे वाक्यांशों को बदल सकती है जो दुनिया को घुमाते हैं।

हर ख़याल कविता नहीं है, लेकिन ख़याल तो है।

जीवन का एक भी कण ऐसा नहीं है जिसके भीतर कविता न हो।

कविता का संगीत शब्द-ध्वनि का संगीत नहीं है, अर्थ-संकेत (इसे रीतिकालीन ‘अर्थ-संकेत’ के अर्थ में ग्रहण नहीं किया जाए) और अर्थ-विस्तार का संगीत है।

मैं कविता में विश्वास करती हूँ।


कविता तो एक जीवन को तोड़कर सकल जीवन बनाती है। और जीवन टूटता है, वह कवि का है।

वंचना कविता की जननी है।

लिखते हुए साधारण शब्दों का चयन करें : असंबद्ध लेखन और वाक्-पटुता से बचें—फिर भी, यह सच है, कविता आनंददायक है; सबसे अच्छा गद्य वह है जिसमें भरपूर काव्य विद्यमान है।

मैंने जिसमें नोट्स बनाए हैं, वह कोई आम डायरी नहीं, बल्कि इसमें मेरे आध्यात्मिक अनुभवों के लंबे रिकॉर्ड्स और गद्य के रूप में कुछ कविताएँ हैं।

मैं कविता के रूप में ऊपर उठूँगी…

हम हर दिशा से कविताओं से घिरे हुए हैं।


कविता हमारे लिए भावनाओं का माया-जाल नहीं है। जिनके लिए कविता ऐसी थी, वे लोग बीत चुके हैं।

कविता लिखना एक अलिखित काव्य की तैयारी करना है।

अगर कविता न होती तो राम और कृष्ण भी यथार्थ न होते।

नहीं होती, कहीं भी ख़त्म कविता नहीं होती कि वह आवेग त्वरित काल-यात्री है।

अपनी एक मूर्ति बनाता हूँ और ढहाता हूँ और आप कहते है कि कविता की है।

कविता और प्रेम—दो ऐसी चीज़ें हैं, जहाँ मनुष्य होने का मुझे बोध होता है।

काव्य-रचना का एक अर्थ मनुष्य की कल्पनाशील चेतना का उद्दीपन है।

कविता यथार्थ को नज़दीक से देखती, मगर दूर की सोचती है।

कविता क्रांति ले आएगी, ऐसी ख़ुशफ़हमी मैंने कभी नहीं पाली, क्योंकि क्रांति एक संगठित प्रयास का परिणाम होती है, जो कविता के दायरे के बाहर की चीज़ है।

कविता आत्म और पर के द्वैत को ध्वस्त करती है।

कविता परम सत्य और चरम असत्य के बीच गोधूलि की तरह विचरती है।


कविता को राजनीति में नहीं घुसना चाहिए। क्योंकि इससे कविता का तो कुछ नहीं बिगड़ेगा, राजनीति के अनिष्ट की संभावना है।

कविता सरलीकरण और सामान्यीकरण के विरुद्ध अथक सत्याग्रह है।

मैं ऐसा नहीं मानता कि विश्व-बाज़ार कविता को निगल जाएगा और कविता हमेशा के लिए अपना प्रभाव खो देगी।

कविता लिखना कोई बड़ा काम नहीं, मगर बटन लगाना भी बड़ा काम नहीं। हाँ, उसके बिना पैंट-क़मीज़ बेकार होते हैं।

जिस किताब में अच्छी कविता होती है, उसके पास दीमकें नहीं फटकतीं।

आज की कविता, बल्कि किसी भी कविता, को सोचने-समझने के लिए पाठकों को अपनी ओर से भी बहुत-कुछ जोड़ना पड़ता है।

कविता में कभी अच्छा मनुष्य दिख जाता है या कभी अच्छे मनुष्य में कविता दिख जाती है। कभी-कभी एक के भीतर दोनों ही दिख जाते हैं।

कविता में ‘मैं’ की व्याख्या केवल आत्मकेंद्रण या व्यक्तिवाद के अर्थ में करना
उसके बृहतर आशयों और संभावनाओं दोनों को संकुचित करना है।

हम हर दिशा से कविताओं से घिरे हुए हैं।


मुझे अपनी कविताओं से भय होता है, जैसे मुझे घर जाते हुए भय होता है।

अच्छा कवि बहुत ज़िद्दी होता है और कविता लिखते समय अपने विवेक और शक्ति के अलावा किसी और को नहीं मानता।

कविता के क्षेत्र में केवल एक आर्य-सत्य है : दुःख है। शेष तीन राजनीति के भीतर आते हैं।

कविता एकांत देती है।

अगर कविता एक ‘सामाजिक कार्य’ है (जो कि वह है) तो फिर उसका राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों से जुड़ना अनिवार्य ही है।