संगीत पर उद्धरण
रस की सृष्टि करने वाली
सुव्यवस्थित ध्वनि को संगीत कहा जाता है। इसमें प्रायः गायन, वादन और नृत्य तीनों शामिल माने जाते हैं। यह सभी मानव समाजों का एक सार्वभौमिक सांस्कृतिक पहलू है। विभिन्न सभ्यताओं में संगीत की लोकप्रियता के प्रमाण प्रागैतिहासिक काल से ही प्राप्त होने लगते हैं। भर्तृहरि ने साहित्य-संगीत-कला से विहीन व्यक्ति को पूँछ-सींग रहित साक्षात् पशु कहा है। इस चयन में संगीत-कला को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।
पीते वक़्त ख़्वाहिश होती है अच्छा संगीत सुनूँ, और संगीत के इर्द-गिर्द ख़ामोशी हो।
संगीत दो आत्माओं के बीच फैली अनंतता को भरता है।
हर दिन, एक संगीत का टुकड़ा, एक छोटी कहानी या एक कविता मर जाती है क्योंकि उसके अस्तित्व का हमारे समय में कोई औचित्य नहीं रह जाता। और जो चीजें कभी अमर मानी जाती थीं, वे फिर से नश्वर हो गई हैं, अब कोई उन्हें नहीं जानता। फिर भी, उन्हें जीवित रहने का हक है।
अँधेरे में संगीत दो व्यक्तियों को कितना पास खींच लाता है।