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खलील जिब्रान

खलील जिब्रान की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 9

अपने देश के प्रति मेरा जो प्रेम है, उसके कुछ अंश में मैं अपने जन्म के गाँव को प्यार करता हूँ। और मैं अपने देश को प्यार करता हूँ पृथ्वी— जो सारी की सारी मेरा देश है—के प्रति अपने प्रेम के एक अंश में। और मैं पृथ्वी को प्यार करता हूँ अपने सर्वस्व से, क्योंकि वह मानवता का, ईश्वर का, प्रत्यक्ष आत्मा का निवास-स्थान है।

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तुम्हारा दुःख उस छिलके का तोड़ा जाना है, जिसने तुम्हारे ज्ञान को अपने भीतर छिपा रखा है।

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धन तारों वाले वाद्य यंत्र के समान है। जो उसका भली प्रकार से प्रयोग करना नहीं जानता, केवल कर्कश संगीत ही सुनेगा। जो उसे रोके रहता है, उसे धन प्रेम के समान है। वह उसे धीरे-धीरे और दुःख देकर मारता है। और उसे वह जीवन प्रदान करता है, जो उसे अपने साथी मनुष्यों पर उँड़ेल देता है।

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बीता हुआ कल आज की स्मृति है और आने वाला कल आज का स्वप्न।

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और ऐसे भी लोग हैं जो देते हैं, लेकिन देने में कष्ट अनुभव नहीं करते, वे उल्लास की अभिलाषा करते हैं और पुण्य समझ कर ही कुछ देते हैं।

वे देते हैं, जिस प्रकार विजय का फूल दशों दिशाओं में अपना सौरभ लुटा देता है।

इन्हीं लोगों के हाथों द्वारा ईश्वर बोलता है और इन्हीं की आँखों में से वह पृथ्वी पर अपनी मुस्कान छिटकता है।

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