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मनुष्य पर उद्धरण

इतिहास, रात में एक पुराने मकान सरीखा है, जिसकी सारी बत्तियाँ रोशन हों और अंदर पुर्खे फुसफुसा रहे हों। इतिहास को समझने के लिए हमें अंदर जाकर यह सुनना होगा कि वे क्या कह रहे हैं। और किताबों और दीवार पर टंगी तस्वीरों को देखना होगा। और गंध सैंधनी होगी। मगर हम भीतर नहीं जा सकते क्योंकि दरवाज़े हमारे लिए बंद हैं। और जब हम खिड़कियों से भीतर झाँकते हैं, हमें सिर्फ़ परछाइयों दिखाई देती हैं। और जब हम सुनने की कोशिश करते हैं, हमें सिर्फ़ फुसफुसाहटें सुनाई देती हैं। और हम फुसफुसाहटों को समझ नहीं पाते क्योंकि हमारे दिमाग़ों में एक युद्ध छिड़ा हुआ है। एक युद्ध जिसे हमने जीता भी है और हारा भी है। सबसे ख़राब क़िस्म का युद्ध। ऐसा युद्ध जो सपनों को बंदी बनाता है और उन्हें फिर से सपनाता है। ऐसा युद्ध जिसने हमें अपने विजेताओं की पूजा करने और अपना तिरस्कार करने पर मजबूर किया है।

अरुंधती रॉय

पशुबल अस्थायी है और अध्यात्मबल या आत्मबल या चैतन्यवाद एक शाश्वत बल है। वह हमेशा रहने वाला है क्योंकि वह सत्य है। जड़वाद तो एक निकम्मी चीज़ है।

मोहनदास करमचंद गांधी

मैं पुरुष और महिला के बीच के संबंध को हेगेलियन मालिक और दास के संबंध के रूप में वर्णित करती हूँ। जब तक पुरुष काम, प्रसिद्धि, या धन के माध्यम से अपनी यौन मूल्य को बढ़ाने में सक्षम होते रहेंगे, और महिलाएँ केवल अपने शरीर, सुंदरता, और यौवन के माध्यम से शक्तिशाली होती रहेंगी, तब तक कुछ नहीं बदलेगा।

एल्फ्रीडे येलिनेक

योग्य पुरुषों के लिए कोई भी कार्य अत्यंत कठिन नहीं होता, उद्योगी मनुष्यों के लिए कोई स्थान दूर नहीं होता, विद्वानों के लिए कोई देश, विदेश नहीं होता और प्रिय वचन बोलने वालों के लिए कोई व्यक्ति पराया नहीं होता।

चाणक्य

अस्थिर चित्त वाला मनुष्य मनुष्यों में सुखी होता है और वन में। मनुष्यों के बीच उनका संसर्ग पीड़ित करता है और वन में संसर्ग का अभाव।

चाणक्य

एक मनुष्य स्वर्ग में अकेले रहकर भी खुश नहीं होगा। लेकिन जो मनुष्य किसी किताब या अनुसंधान में रुचि रखता है, जब वह उस पुस्तक के विषय के बारे में अध्ययन या चिंतन में व्यस्त होता है, तो एकांत का नर्क भी उसके लिए सबसे बड़ा स्वर्ग बन जाता है।

मौरिस मैटरलिंक

एक मनुष्य स्वर्ग में अकेले रहकर भी खुश नहीं होगा। लेकिन जो मनुष्य किसी किताब या अनुसंधान में रुचि रखता है, जब वह उस पुस्तक के विषय के बारे में अध्ययन या चिंतन में व्यस्त होता है, तो एकांत का नर्क भी उसके लिए सबसे बड़ा स्वर्ग बन जाता है।

मौरिस मैटरलिंक

अल्पभाषी व्यक्ति सर्वोत्तम होते हैं।

शेक्सपियर

बुरे ग्राम का रहना, बुरे आदमी की सेवा, बुरा भोजन, क्रोधमुखी पत्नी, मूर्ख पुत्र और विधवा कन्या—ये छह आग के बिना ही शरीर को जलाते हैं।

चाणक्य

जिसको स्वयं पर विश्वास नहीं, वही नास्तिक है।

स्वामी विवेकानन्द

मेरे लिए यह बहुत ही राहत की बात है कि मैं एक मनुष्य हूँ कोई सब्ज़ी नहीं।

गेब्रियल गार्सिया मार्ख़ेस

बग़ैर अनासक्ति के मनुष्य सत्य का पालन कर सकता है, अहिंसा का।

मोहनदास करमचंद गांधी

अपना जब पराया हो जाता है तब उससे बिल्कुल नाता तोड़ देने के अतिरिक्त कोई गति नहीं रहती।

रवींद्रनाथ टैगोर

नर के लिए प्यार का उन्माद वहीं तक होता है, जहाँ तक कि वह स्वीकार हो जाए। उसके बाद उतार ही उतार है। उधर मादा के लिए उसकी उठान ही स्वीकार से आरंभ होती है।

मनोहर श्याम जोशी

जब हम किसी ऐसे इंसान को खो देते हैं जिससे हमने प्यार किया है, तब आँसुओं कि सबसे नमकीन बूँदें उन पलों की याद में बहती हैं जब हमने अपने प्रिय से भरपूर प्यार नहीं किया।

मौरिस मैटरलिंक

व्यवहार में पक्षपात नहीं करना चाहिए। व्यवहार धर्म से भी महत्वपूर्ण है।

चाणक्य

अभावमयी लघुता में मनुष्य अपने को महत्वपूर्ण दिखाने का अभिनय करे तो क्या अच्छा नहीं है?

जयशंकर प्रसाद

क्या हम यह कल्पना कर सकते हैं कि मानवता कैसी होती यदि उसे फूलों का ज्ञान होता?

मौरिस मैटरलिंक

जीवमात्र ईश्वर के अवतार हैं, परंतु लौकिक भाषा में हम सबको अवतार नहीं कहते। जो पुरुष अपने युग में सबसे श्रेष्ठ धर्मवान् पुरुष होता है, उसे भविष्य की प्रजा अवतार के रूप में पूजती है। इसमें मुझे कोई दोष नहीं मालूम होता।

मोहनदास करमचंद गांधी

मानव-संपर्क व्यक्ति की सबसे बड़ी शक्ति है, जो मानव-संपर्क से हीन है वह डरा हुआ है, डरा हुआ रहेगा।

मलयज

जब लोग दरिद्र हो जाते हैं, तब बाहर की ओर गौरव की खोज में भटकते हैं। तब वे केवल बातें कहकर गौरव करना चाहते हैं, तब वे पुस्तकों से श्लोक निकालकर गौरव का माल-मसाला भग्न स्तूप से संचय करते रहते हैं।

रवींद्रनाथ टैगोर

व्यक्ति का आत्मबल उसकी जड़-पूजा से अवरुद्ध हो जाता है। जिसके पास ये जड़-बंधन जितने ही कम होते हैं, वह उतना ही जल्दी सत्यपरायण हो जाता है।

हजारीप्रसाद द्विवेदी

जो व्यक्ति स्वयं अपने सम्मान का ख़याल नहीं करता वह दास ही बन जाता है।

मोहनदास करमचंद गांधी

मनुष्य गुणों से उत्तम बनता है, कि ऊँचे आसन पर बैठा हुआ उत्तम होता है। जैसे ऊँचे महल के शिखर पर बैठकर भी कौआ, कौआ ही रहता है, गरुड़ नहीं बनता।

चाणक्य

किसी उद्देश्य के लिए कुछ अच्छा करने में हमें मानवीय सुख मिल सकता है, लेकिन वे जो बिना किसी प्रतिफल की अपेक्षा के दूसरों का अच्छा करते हैं, वे एक दिव्य आनंद का अनुभव करते हैं।

मौरिस मैटरलिंक

अकुलीन मनुष्य राजा होने पर, मूर्ख का पुत्र पंडित बनने पर तथा निर्धन धन पाकर जगत् को तृणवत् समझते हैं।

चाणक्य

रोग-जर्जर शरीर पर अलंकारों की सजावट, मलिनता और कलुष के ढेर पर बाहरी कुंकुम-केसर का लेप गौरव नहीं बढ़ाता।

जयशंकर प्रसाद

हम सभी उत्कृष्टता में ही जीते हैं। हम और कहाँ जी सकते हैं? जीवन का यही एक स्थान है।

मौरिस मैटरलिंक

ऐसा साफ़-सुथरा, पवित्र आदमी, जो अपने व्यक्तित्व की हर शिकन, हर वक़्त झाड़ता-पोंछता रहता हो—वह प्रेम कैसे कर सकता है?

दूधनाथ सिंह

एक आदमी का भाग्य उसके कार्यो से बनता है, लेकिन वह उसकी प्रतिक्रियाएँ हैं, जो उसके चरित्र को निर्धारित करती हैं।

पीटर हैंडके

गुणी पुरुष का आश्रय लेने से, गुणहीन भी गुणी हो जाता है।

चाणक्य

अभिव्यक्ति मानव ह्रदय का स्वाभाविक गुण है।

प्रेमचंद

यदि ख़ाली दिमाग उतना ही शोर मचाता जितना कि ख़ाली पेट, तो मनुष्य कहीं अधिक समझदार होता।

मौरिस मैटरलिंक

जनता उन मनुष्यों को कहते है जो वोटर है और जिनके वोट से विधायक मंत्री बनते हैं। इस पृथ्वी पर जनता की उपयोगिता कुल इतनी है कि उसके वोट से मंत्री मंडल बनते है। अगर जनता के बिना सरकार बन सकती है, तो जनता की कोई ज़रूरत नहीं है।

हरिशंकर परसाई

हम उम्र के एक ऐसे सख़्त जमे हुए शिखर पर हैं, जहाँ से अगर पिघले भी तो नीचे बहना मुश्किल है—हम कौन? नीचे उतरना और बहना। पर चेहरे पर पहाड़ की ऊँचाई और कठोर चट्टानें जो माथे पर फ़िक्र की शिकनें बनकर धूप में चमकती हैं।

मलयज

लज्जा प्रकाश ग्रहण करने में नहीं होती, अंधानुकरण में होती है। अविवेकपूर्ण ढंग से जो भी सामने पड़ गया उसे सिर-माथे चढ़ा लेना, अंध-भाव से अनुकरण करना, जातिगत हीनता का परिणाम है। जहाँ मनुष्य विवेक को ताक़ पर रखकर सब कुछ की अंध भाव से नक़ल करता है, वहाँ उसका मानसिक दैन्य और सांस्कृतिक दारिद्र्य प्रकट होता है, किंतु जहाँ वह सोच-समझकर ग्रहण करता है और अपनी त्रुटियों को कम करने का प्रयत्न करता है, वहाँ वह अपने जीवंत स्वभाव का परिचय देता है।

हजारीप्रसाद द्विवेदी

मनुष्य जीवन का उद्देश्य आत्मदर्शन है। और उसकी सिद्धि का मुख्य एवं एकमात्र उपाय पारमार्थिक भाव से जीव-मात्र की सेवा करना है, उसमें तन्मयता तथा अद्वैत के दर्शन करना है।

मोहनदास करमचंद गांधी

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