आत्महत्या पर उद्धरण
आत्महत्या या ख़ुदकुशी
स्वयं का जीवन समाप्त कर देने का कृत्य है। प्राचीन युग में गर्व और अस्मिता की रक्षा और आधुनिक युग में मानवीय त्रासदी के रूप में यह कविता का विषय बनती रही है। हाल के वर्षों में किसानों की आत्महत्या ने काव्य-चेतना को पर्याप्त प्रभावित किया है। रोहिता वेमुला की आत्महत्या ने दलित-वंचित संवाद के संदर्भ में इसे व्यापक विमर्श का हिस्सा बनाया। आत्मपरक कविताओं में यह विभिन्न सांकेतिक अर्थों में अभिव्यक्ति पाती रहती है।

मनुष्य के लालच और आत्मघात का ज़हर धरती के केंद्र में काफ़ी जमा हो चुका है।

मनुष्य के लालच और आत्मघात का ज़हर धरती के केंद्र में काफ़ी जमा हो चुका है।

आत्महत्या केवल मनुष्य करता है। पशु केवल उतने कर्म करते हैं, जितने से उनकी जैविक आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाए; किंतु मनुष्य की मनुष्यता तो तब तक आरम्भ ही नहीं होती हैं, जब तक वह केवल अपनी जैविक आवश्यकता की पूर्ति में संलग्न हैं।

जब इंसान अपने दर्द को ढो सकने में असमर्थ हो जाता है तब उसे एक कवि की ज़रूरत होती है, जो उसके दर्द को ढोए अन्यथा वह व्यक्ति आत्महत्या कर लेगा।

लेकिन अंत में, जीने के लिए आत्महत्या करने से अधिक साहस चाहिए।

मैं संसार का सबसे महत्त्वपूर्ण प्राणी हूँ। यदि नहीं हूँ तो आत्महत्या के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं है।

आत्महत्या का विचार करना सरल है, आत्महत्या करना सरल नहीं।

आत्महत्या को मैं मुक्ति की प्रार्थना कहता हूँ, अपराध या पलायन नहीं मानता।