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संसार पर कविताएँ

‘संसरति इति संसारः’—अर्थात

जो लगातार गतिशील है, वही संसार है। भारतीय चिंतनधारा में जीव, जगत और ब्रहम पर पर्याप्त विचार किया गया है। संसार का सामान्य अर्थ विश्व, इहलोक, जीवन का जंजाल, गृहस्थी, घर-संसार, दृश्य जगत आदि है। इस चयन में संसार और इसकी इहलीलाओं को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।

अंतिम ऊँचाई

कुँवर नारायण

स्‍त्री और आग

नवीन रांगियाल

सौंदर्य

निरंजन श्रोत्रिय

घर

ममता बारहठ

मेरे अभाव में

अखिलेश सिंह

उदाहरण के लिए

नरेंद्र जैन

सन् 3031

त्रिभुवन

कवियों के भरोसे

कृष्ण कल्पित

ज़रूरी है बचाना

अंजुम शर्मा

धीरे-धीरे नष्ट करते हैं

रामकुमार तिवारी

जिताती रहीं हार कर

राही डूमरचीर

इतना सहज नहीं है विश्व

पंकज चतुर्वेदी

दुनिया का कोण

नवीन रांगियाल

दुनिया बदलना

अशोक वाजपेयी

व्याख्या

नेमिचंद्र जैन

हम

निशांत कौशिक

लय

कैलाश वाजपेयी

किम् आश्चर्यम्?

आशुतोष दुबे

इस दुनिया में ही

राही डूमरचीर

धरती पर जीवन सोया था

रामकुमार तिवारी

माने हुए बैठे हैं

नंदकिशोर आचार्य

आजकल

जितेंद्र कुमार

प्रतिसंसार

अंद्रेई वोज़्नेसेंस्की

एक है चेहरा दुनिया का

निकोलाय ज़बोलोत्स्की

दुनिया जगत

विनोद कुमार शुक्ल

यह एक संध्या-चषक है

शेषेन्द्र शर्मा

फिर एक शाम

अपूर्वा श्रीवास्तव

साथ

बेबी शॉ

भाषा

बेबी शॉ

सधुक्कड़ी

अनिल मिश्र

दुनिया चली गई आगे

मंगेश पाडगाँवकर

शहर का नाम

कुमार विकल

नई सदी में

गुरभजन गिल

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