संसार पर संस्मरण
‘संसरति इति संसारः’—अर्थात
जो लगातार गतिशील है, वही संसार है। भारतीय चिंतनधारा में जीव, जगत और ब्रहम पर पर्याप्त विचार किया गया है। संसार का सामान्य अर्थ विश्व, इहलोक, जीवन का जंजाल, गृहस्थी, घर-संसार, दृश्य जगत आदि है। इस चयन में संसार और इसकी इहलीलाओं को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।
मादक संगती, धुनें, नाचती नंगी लड़कियांँ लंदन-2
सन् 1664 में मुझे तीसरी बार लंदन जाने का मौका मिला। भारतीय दूतावास के सहयोग के कारण पहले की यात्राओं की अपेक्षा इस बार देखने सुनने की ज़्यादा सुविधाएँ मिली। लोगों के रहन-सहन और दुकानों की सजावट देखकर अदाज़ा होता था कि पिछले पंद्रह वर्षों में ब्रिटेन
रामेश्वर टांटिया
सर्वाधिक सम्मान केवल सम्राटों को? लंदन 1
संसार के सभी बड़े शहरों की अपनी-अपनी विशेषता होती है। कोई ऐतिहासिक है तो कोई आधुनिक। किसी का धार्मिक महत्त्व है तो कही चहल-पहल और चुहल है। लंदन में इन सभी बातों का समावेश है। मुझे ऐसा लगा, मानो इस का अपना एक निजी सौष्ठव है जो न मास्को में देखने में आया