संसार पर बेला
‘संसरति इति संसारः’—अर्थात
जो लगातार गतिशील है, वही संसार है। भारतीय चिंतनधारा में जीव, जगत और ब्रहम पर पर्याप्त विचार किया गया है। संसार का सामान्य अर्थ विश्व, इहलोक, जीवन का जंजाल, गृहस्थी, घर-संसार, दृश्य जगत आदि है। इस चयन में संसार और इसकी इहलीलाओं को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।
अगर कोई कहता है कि वह ‘आज़ाद’ है, तो वह या तो झूठ बोल रहा है या मूर्ख है।
...काम आज़ादी का मज़ाक़ उड़ाता है। समझाया तो यह जाता है कि हम लोकतंत्र में रहते हैं और हमें सारे अधिकार प्राप्त हैं। दूसरे; जो दुर्भाग्यशाली हैं, वे हमारी तरह स्वतंत्र नहीं हैं और उन्हें पुलिसिया राज
दुनिया के मजदूरो! आराम करो।
किसी को कभी भी कोई भी काम नहीं करना चाहिए। काम दुनिया के सारे दुखों की जड़ है। बुराई चाहे कोई हो, सारी की सारी या तो काम से पैदा होती हैं, या फिर काम की दुनिया में रहने से। दुखों से मुक्ति का मतलब
जीवन के गरिष्ठ सुक्खल गल्प में बेहयाई की रसीली बहक
एक दिन मेरी एक लगभग-मित्र ने कहा कि उसने ‘बेहयाई के बहत्तर दिन’ पहली सिटिंग में पचास पेज पढ़ ली। मैं लज्जा से अपना मुँह चोरवाने लगा कि दो महीने बाद भी किताब पूरी नहीं पढ़ पाया हूँ, जबकि झोले में किताब-