व्यंग्य पर बेला
व्यंग्य अभिव्यक्ति की
एक प्रमुख शैली है, जो अपने महीन आघात के साथ विषय के व्यापक विस्तार की क्षमता रखती है। काव्य ने भी इस शैली का बेहद सफल इस्तेमाल करते हुए समकालीन संवादों में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। इस चयन में व्यंग्य में व्यक्त कविताओं को शामिल किया गया है।
उर्फ़ी जावेद के सामने हमारी हैसियत
हिंदी-साहित्य-संसार में गोष्ठी-संगोष्ठी-समारोह-कार्यक्रम-आयोजन-उत्सव-मूर्खताएँ बग़ैर कोई अंतराल लिए संभव होने को बाध्य हैं। मुझे याद पड़ता है कि एक प्रोफ़ेसर-सज्जन ने अपने जन्मदिन पर अपने शोधार्थी से
10 अक्तूबर 2024
अफ़सर बनते ही आदमी सुहागन बन जाता है
अफ़सर बनते ही आदमी सुहागन बन जाता है। कल तक फ़ाइलों में डूबा आदमी, आज बाढ़ के दिनों की मछलियों की तरह सतह पर छलछलाते हुए दिखने लगा है। विभिन्न सरकारी काज-प्रयोजनों में प्रायः जिसका प्रवेश-निषिद्ध था,
दारा शुकोह, मैनेजर पांडेय और कुछ झूठ
विश्वविद्यालयों में एक जुमला ख़ूब चलता है—“और भाई एमे, एम्फ़िल, जॉरगंस से निकल गए या वहीं फँसे हो।’’ मतलब यह कि नया विद्यार्थी ख़ूब भारी-भारी शब्द उछालना सीख जाता है। आजकल किसी भी किताब पर होने वाली च
नए भारत का हिंदी पखवाड़ा और हिंदी-प्रोफ़ेसर-सेवकों के हवाले हिंदी
अगर आप हिंदी में लिखते-पढ़ते हैं तो सितंबर का महीना आपको ‘विद्वान’ कहलाने का पूरा मौक़ा देता है। अभी कुछ दिन पहले ही हिंदी दिवस बीता। हिंदी पखवाड़ा जिसे बक़ौल प्रोफ़ेसर विनोद तिवारी हिंदी का पितर-
‘हम हैं मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार की तरह...’
मुन्नवर राना कह गए हैं : “ये बाज़ार-ए-हवस है तुम यहाँ कैसे चले आए ये सोने की दुकानें हैं यहाँ तेज़ाब रहता है” बाज़ार चीज़ों के साथ क्या करता है, इसके जवाब में कई ख़ूब मिसालें आपको मिल जाएँगी।
हिंदी के चर्चित घड़ी-प्रसंग की घड़ी बंद होने के बाद...
घड़ी तो सब ही पहनते हैं। कई सौ सालों पहले जब पीटर हेनलेन ने पहली घड़ी ईजाद की होगी, तो उसके बाप ने भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन ये इतनी ज़रूरी चीज़ साबित होगी कि दुनिया हिल जाएगी। दानिशमंद लोग कहते
फिर से हो रहा है 'ठेके पर मुशायरा'
नाट्य संस्था साइक्लोरामा अपने नए नाटक ‘ठेके पर मुशायरा’ का एक बार फिर से मंचन करने जा रहा है। यह नाटक 21 सितंबर 2024 को एलटीजी सभागार, मंडी हाउस, नई दिल्ली में खेला जाएगा। इसके पिछले प्रदर्शनों को दर
‘ताजमहल का टेंडर’ : लालफ़ीताशाही की भूलभुलैया में फँसे शाहजहाँ
नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (National School of Drama) में 23 अगस्त से 9 सितंबर 2024 के बीच हीरक जयंती नाट्य समारोह आयोजित हुआ। यह समारोह एनएसडी रंगमंडल की स्थापना के साठ वर्ष पूरे होने
भूमिकाओं में आस्था घट रही है
पुस्तक की भूमिका पुस्तक के साथ भूमिका का प्रकाशन आम चलन है। यह भूमिका किसी ऐसे व्यक्ति से लिखाई जाती है, जो उस विषय का मान्य विद्वान हो, उसकी बात का वजन हो और जिसके न्याय-विवेक पर भी लोगों का विश्
बुद्धिजीवी और गधे
बुद्धिजीवियों ने अपना वाहन नहीं बदला। आज भी गधे उनके पसंदीदा वाहन हैं। ...एक गधे को दूसरे गधे से बहुत ईर्ष्या होती है। बुद्धिजीवी कभी घोड़े क