Font by Mehr Nastaliq Web

रविवासरीय : 3.0 : ‘मेरा दुश्मन बनने में अब वह कितना वक़्त लेगा’

• प्रशंसा का पहला वाक्य आत्मीय लगता है, लेकिन प्रशंसा के तीसरे वाक्य में प्रशंसा का तर्क भी हो; तब भी उससे बचने का मन करता है, क्योंकि प्रशंसा के दूसरे वाक्य से ही ऊब होने लगती है।

• विष्णु खरे की एक कविता है—‘मुरीद’ :

जब भी वह मुझे दादा या भाई साहब कहता है
मेरे गले लगता है
मेरे गाल चूमता है
या मेरा ज़िंदाबाद करता है
मुझे या मेरी किसी बात को महान् बतलाता है
अपना प्रेरक नायक घोषित करता है मुझे
शराब पीकर या होशोहवास में
अकेले या सपरिवार मेरे पैर छूता है
तो मेरा कलेजा बैठने लगता है
इस इंतिज़ार में
कि हे भगवान् मेरा दुश्मन बनने में अब वह कितना वक़्त लेगा!

इस कविता से गुज़रना प्रशंसकों के प्रति बेदार होना है।

• प्रशंसा का अभाव कुंठा में ले जाता है।

• वे प्रशंसक कभी सच्चे और ईमानदार प्रशंसक नहीं हो सकते, जो प्रशंसा के बदले में प्रशंसा या कोई अन्य लाभ चाहते हैं।

जीनियस की प्रशंसा नहीं होती। या तो उसकी निंदा होती है या फिर applause होता है। प्रशंसा (Praise) सदैव ‘मीडियाकर’ की होती है। मसलन यह बहुत अच्छा पढ़ाता है, या उसका स्वभाव बहुत अच्छा है या वह बड़ा सज्जन है। ये सारे शब्द और विशेषण ‘मीडियाकर’ के पर्याय हैं।

— देवीशंकर अवस्थी

• कुछ लोग अपने नाम से जाति हटा देते हैं, जबकि समस्या उनके नाम में होती है।

• यह प्राचीन विमर्श है कि एक बेहतर व्यक्ति बुरा लिख सकता है और एक बुरा व्यक्ति बेहतर, लेकिन इसे इस प्रकार भी समझना चाहिए कि एक बेहतर व्यक्ति का कमतर भी उसके आचरण से धीरे-धीरे बेहतर होता जाता है और एक बुरे व्यक्ति का बेहतर लिखा भी उसके आचरण से धीरे-धीरे नष्ट हो जाता है।

• बुद्ध ने प्रसेनजित से कहा था कि ज्ञान हो न हो, किंतु शील मुख्य वस्तु है।

यह बुद्ध-वचन प्रसेनजित के उस प्रश्न के उत्तरस्वरूप प्रकट हुआ था जिसमें प्रसेनजित ने पटिसेन की योग्यता को बुद्ध के समक्ष रखते हुए कहा था कि यह केवल एक ही गाथा जानता है, तब इसे बोधि कैसे प्राप्त हो गई?

इसलिए कुछ भी स्थिर नहीं है। स्थिर है सिर्फ़ बेहतर और बुरे बनने के मानवीय यत्न। इस यत्न में एक मददगार भाषा भी स्थिर और आपकी अपनी नहीं है। वह एक विशाल सामाजिकता का अंश है। वह परिवेश की देन है, [आपकी निजी संपत्ति नहीं] इसे परिवेश को ही देना है।

• एक व्यक्ति की भाषा ने दूसरे व्यक्ति की भाषा को बेहतर किया है।

हमारा प्रत्येक वाक्य-विचार वास्तव में किसी ज्ञात-अज्ञात का उद्धरण ही है।

यह स्वीकार कि मौलिकता एक भ्रम है, अहंकारी होने से बचाता है। यह स्वीकार अभाव और संपन्नता, प्रशंसा और भर्त्सना, केंद्र और उपेक्षा, मान और अपमान, समर्थन और विरोध दोनों में ही व्यक्ति को सम रखता है।

कई प्रसंगों में यों भी होता है कि कमतर लेखन बेहतर व्यक्ति के स्पर्श से बेहतर हो जाता है। प्रूफ़रीडर्स और एडिटर्स की ज़रूरत भाषा में इसलिए ही उत्पन्न हुई।

• मैं बहुत ख़ुश नहीं था, जब प्रशंसकों से पूर्णतः मुक्त था। मेरे आस-पास समय का चमकीलापन अतीत के आकर्षणों को एक उजाड़ में बदलता जा रहा था। मैं जब-जब सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों के पास से गुज़रता, मुझे लगता कि सब तरफ़ नि:स्वार्थ प्रशंसा के स्मारक ढह रहे हैं।

मैं कश्मीरी गेट मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर सात से बाहर निकलकर पैदल पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन की तरफ़ बढ़ने लगता। यहाँ तक आते-आते सड़क के किनारे की गई मर्दाना पेशाब की महक पीछे छूट चुकी होती और रेहड़ियों-पटरियों पर सजे सामानों, फलों और पाइरेटेड सीडियों को आँखें देते हुए राहगीर इस दृश्य का भविष्य प्रतीत होते।

मैं जब ई-रिक्शों के जाल से निकलता, तब बाएँ हाथ पर ‘रिट्ज़’ सिनेमा नज़र आता।

‘रिट्ज़’ जल्द ही नि:स्वार्थ प्रशंसा के अवशेष में बदलने वाला था। उसे ए-ग्रेड फ़िल्मों के प्रिंट मिलने बंद हो चुके थे, लेकिन उस शुक्रवार न जाने कैसे वहाँ ‘दंगल’ चल रही थी।

मैंने पाया कि शो शुरू होने में अभी वक़्त है। मैं इस वक़्त में टिकट ले रहे या ले चुके चेहरों को पढ़ने लगा। उनका साहित्य उनसे खो गया था। वे ‘फ़र्स्ट डे फ़र्स्ट शो’ देख लेने के सस्ते प्रयत्न से ग्रस्त थे या भ्रम या फ़ुर्सत के सदुपयोग से; यह अनुमान लगाना आसान था, लेकिन मैंने लगाया नहीं!

सड़क के परली तरफ़ एक पठान दर्दनाशक तेल बेच रहा था—छोटी डिब्बी पचास रुपये और बड़ी डिब्बी सौ रुपये। वह पठान एक जोशीला तेल भी अलग से बेच रहा था। इस तेल के ख़रीदार अब तक बचे हुए थे, यह एक सुकून देने वाली बात थी।

प्रशंसा जोश देती है।

प्रवेश के बाद राष्ट्रगान के सम्मान में उदास होने और ‘रईस’ के सम्मान में परेशान होने के बाद उजाला ख़त्म और ‘दंगल’ शुरू।

महावीर फोगाट थोड़ी ही देर में सीटी बजाने का मौक़ा देता है और सीटियाँ बजती हैं।

जोश प्रशंसा देता है।

एक शोर-सा सतत है और पर्दे पर कुछ-कुछ अंतराल पर बहुत धुँधले-से आयताकार डिब्बे भी झलक-झलक जा रहे हैं। प्रशंसक भी समय के आर-पार आ जा रहे हैं, मानो वे फ़िल्म नहीं दंगल ही देखने आए हैं।

एक प्रशंसक एग्जिट से अंदर घुसता है और ज़ोर से बलविंदर को पुकारता है : ‘‘अबे आ जा तेरा फून है...’’

बलविंदर एक बुरी-सी गाली देकर एग्जिट लेता है। उसके जाते ही गीता फोगाट नेशनल चैंपियन बन जाती है। लेकिन उसके ‘‘बाप को बसूड़ी करने से फ़ुर्सत नहीं है...’’ एक प्रशंसक के ये शब्द पीछे से आते हैं।

‘‘चल कोई नहीं...’’ कहकर एक प्रशंसक कॉल कट कर रहा है।

ठंडी पेटीज और गंदी चाय पर टूटने का वक़्त आने वाला है, और ‘जग्गा जासूस’ के ट्रेलर का भी। यह टीजर देखकर जब तक कोई प्रशंसक यह सोच पाए कि यह किस विदेशी फ़िल्म की कॉपी है या होगी, ‘दंगल’ शुरू…

कॉर्नर-सीट पर एक लड़की एक लड़के के लिए सेक्रिफ़ाइज कर रही है।

प्रेमिकाएँ कभी प्रशंसक नहीं हो सकतीं, प्रचारक ज़रूर हो सकती हैं।

‘दंगल’ में कुछ ही देर में बाप का सेक्रिफ़ाइज बेटी को समझ में आता है। बाप फिर से मुग्ध होता है और फिर से एक बार राष्ट्रगान बजता है, लेकिन अब वह चलचित्र का अंश है और इसलिए कोई घंटा खड़ा नहीं होता!

दिल्ली को देश की राजधानी बने सौ से भी ज़्यादा साल गुज़र गए हैं। ‘रिट्ज़’ भी क़रीब-क़रीब सिंगल स्क्रीन के संसार में इतना ही प्राचीन है, लेकिन फ़िल्म ख़त्म होने पर कैसे भरे हॉल से बाहर निकला जाए, दिल्ली और ‘रिट्ज़’ दोनों ही यह अब तक सीख नहीं पाए हैं।

मैं अपने जूते पर किसी के जूते की छाप लेकर कनॉट पैलेस जा रही एक बस में चढ़ जाता हूँ। दरियागंज वाला लोहे का पुल पार करते ही दाएँ हाथ पर ‘गोलचा’ नज़र आता है, लेकिन यह नज़र नहीं आता कि उसमें कौन-सी फ़िल्म लगी है। मैं बस से उतर जाता हूँ और इस बारे में दरयाफ़्त करने पर मुझे पता चलता है कि ‘गोलचा’ टूटने वाला है। वहाँ शॉपिंग सेंटर के साथ एक मल्टीप्लेक्स खुल सकता है, यों आस-पास के दुकानदार बताते हैं।

सब तरफ़ ‘गोलचा’ टूट चुके हैं।

मैं एक बार और नामालूम कहाँ जाने वाली बस में चढ़ जाता हूँ। सीट के बग़ल में बैठे सहयात्री की टाँगों पर पारदर्शी पैकिंग में पुराने सदाबहार नग़मों की, केशव पंडित की और रैपिडेक्स इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स की किताबें झाँकती हैं। वे लाल क़िले के पीछे से होकर कल्याणपुरी जा रही हैं।

मैं जानना चाहता हूँ कि क्या तुम्हारे प्रशंसक अब भी बचे हैं।

मैं जानता हूँ : धंधा तो पिट गया है, लेकिन अब भी कुछ प्रशंसक हैं जो सीखना चाहते हैं अँग्रेज़ी, सुनना चाहते हैं सदाबहार नग़मे, पढ़ना चाहते हैं लुगदी उपन्यास, लगाना चाहते हैं दर्दनाशक-जोशीला तेल और देखना चाहते हैं ‘रिट्ज़’ में फ़िलिम।

•••

अन्य रविवासरीय : 3.0 यहाँ पढ़िए — गद्यरक्षाविषयक | पुष्पाविषयक | वसंतविषयक | पुस्तकविषयक | प्रकाशकविषयक

'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए

Incorrect email address

कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें

आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद

हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे

28 नवम्बर 2025

पोस्ट-रेज़र सिविलाइज़ेशन : ‘ज़िलेट-मैन’ से ‘उस्तरा बियर्ड-मैन’

28 नवम्बर 2025

पोस्ट-रेज़र सिविलाइज़ेशन : ‘ज़िलेट-मैन’ से ‘उस्तरा बियर्ड-मैन’

ग़ौर कीजिए, जिन चेहरों पर अब तक चमकदार क्रीम का वादा था, वहीं अब ब्लैक सीरम की विज्ञापन-मुस्कान है। कभी शेविंग-किट का ‘ज़िलेट-मैन’ था, अब है ‘उस्तरा बियर्ड-मैन’। यह बदलाव सिर्फ़ फ़ैशन नहीं, फ़ेस की फि

18 नवम्बर 2025

मार्गरेट एटवुड : मर्द डरते हैं कि औरतें उनका मज़ाक़ उड़ाएँगीं

18 नवम्बर 2025

मार्गरेट एटवुड : मर्द डरते हैं कि औरतें उनका मज़ाक़ उड़ाएँगीं

Men are afraid that women will laugh at them. Women are afraid that men will kill them. मार्गरेट एटवुड का मशहूर जुमला—मर्द डरते हैं कि औरतें उनका मज़ाक़ उड़ाएँगीं; औरतें डरती हैं कि मर्द उन्हें क़त्ल

30 नवम्बर 2025

गर्ल्स हॉस्टल, राजकुमारी और बालकांड!

30 नवम्बर 2025

गर्ल्स हॉस्टल, राजकुमारी और बालकांड!

मुझे ऐसा लगता है कि दुनिया में जितने भी... अजी! रुकिए अगर आप लड़के हैं तो यह पढ़ना स्किप कर सकते हैं, हो सकता है आपको इस लेख में कुछ भी ख़ास न लगे और आप इससे बिल्कुल भी जुड़ाव महसूस न करें। इसलिए आपक

23 नवम्बर 2025

सदी की आख़िरी माँएँ

23 नवम्बर 2025

सदी की आख़िरी माँएँ

मैं ख़ुद को ‘मिलेनियल’ या ‘जनरेशन वाई’ कहने का दंभ भर सकता हूँ। इस हिसाब से हम दो सदियों को जोड़ने वाली वे कड़ियाँ हैं—जिन्होंने पैसेंजर ट्रेन में सफ़र किया है, छत के ऐंटीने से फ़्रीक्वेंसी मिलाई है,

04 नवम्बर 2025

जन्मशती विशेष : युक्ति, तर्क और अयांत्रिक ऋत्विक

04 नवम्बर 2025

जन्मशती विशेष : युक्ति, तर्क और अयांत्रिक ऋत्विक

—किराया, साहब... —मेरे पास सिक्कों की खनक नहीं। एक काम करो, सीधे चल पड़ो 1/1 बिशप लेफ़्राॅय रोड की ओर। वहाँ एक लंबा साया दरवाज़ा खोलेगा। उससे कहना कि ऋत्विक घटक टैक्सी करके रास्तों से लौटा... जेबें

बेला लेटेस्ट