रविवासरीय : 3.0 : पुष्पा-समय में एक अन्य पुष्पा की याद
• कार्ल मार्क्स अगर आज जीवित होते तो पुष्पा से संवाद छीन लेते, प्रधानसेवकों से आवाज़, रवीश कुमार से साहित्यिक समझ, हिंदी के सारे साहित्यकारों से फ़ेसबुक और मार्क ज़ुकरबर्ग से मस्तिष्क... • मुझे याद आ
महान् दार्शनिक दीपक कलाल का 'मुआ' फ़िनोमिनन
प्रत्येक देश-काल में कोई न कोई प्रसिद्ध दार्शनिक ज़रूर होता है, जो उस समय को चिह्नित करता है और साथ ही उस समय की युग-चेतना को दर्शाने वाला दर्शन प्रस्तुत करता है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि महान् दार
गोदार के बारे में दो-एक बातें
यह लेख सत्यजीत रे द्वारा सिनेमा पर लिखे गए लेखों के—संदीप रे द्वारा संपादित—संग्रह ‘डीप फ़ोकस : रिफ़्लेक्शंस ऑन सिनेमा’ से लिया गया है। इस लेख में वह फ़्रांसीसी फ़िल्म निर्देशक ज्याँ-लुक गोदार (Jean-