छठ, शारदा सिन्हा और ये वैधव्य के नहीं विरह के दिन थे...
मुझे ख़ूब याद है जब मेरी दादी गुज़र गई थीं! वह सुहागिन गुज़री थीं। उनकी मृत्यु के समय खींची गईं तस्वीरों में एक तस्वीर ऐसी है कि देखकर बरबस रोना आता है। पीयर (पीली) दगदग गोटेदार पुतली साड़ी में लिपटी
शारदा सिन्हा : ‘हमरा के कहाँ छोड़ले जाइछी रे गवनवा...’
‘अपने त जाय छी प्रभु देस रे बिदेसवा से, हमरा के...’ पर कहाँ जा पाएँगी इस देस से? काश ‘घोड़ा के लगमवा’ थाम के रोका जा सकता। काश ‘सँईया कलकतवा से’ आ सकते। किसे कहेंगे इस महादेस के मन की आवाज़ अब; ठीक
फूल की थरिया से छिटकती झनकार की तरह थीं शारदा सिन्हा!
कहते हैं फूल की थरिया को लोहे की तीली से गर छेड़ दिया जाए तो जो झनकार निकलेगी वह शारदा सिन्हा की आवाज़ है। कोयल कभी बेसुरा हो सकती है लेकिन वह नहीं! कातिक (कार्तिक) में नए धान का चिउड़ा महकता है। शार
आद्या प्रसाद ‘उन्मत्त’ : हमरेउ करम क कबहूँ कौनौ हिसाब होई
आद्या प्रसाद ‘उन्मत्त’ अवधी में बलभद्र प्रसाद दीक्षित ‘पढ़ीस’ की नई लीक पर चलने वाले कवि हैं। वह वंशीधर शुक्ल, रमई काका, मृगेश, लक्ष्मण प्रसाद ‘मित्र’, माता प्रसाद ‘मितई’, विकल गोंडवी, बेकल उत्साही, ज
जामिया में हुआ दिल्ली का पहला ‘हिन्दवी कैंपस कविता’ आयोजन
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के FTK-CIT सभागार में, 16 अक्टूबर को ‘कैंपस कविता’ का आयोजन संपन्न हुआ। यह आयोजन रेख़्ता समूह के उपक्रम ‘हिन्दवी’ ने लिटरेरी क्लब, जामिया मिल्लिया इस्लामिया के सहयोग से किया
जामिया से हो रही है दिल्ली में ‘हिन्दवी कैंपस कविता’ की शुरुआत
‘हिन्दवी उत्सव’ के साथ-साथ हिन्दवी कैंपस कविता भी ‘हिन्दवी’ का एक विशेष आयोजन है—इसके माध्यम से देश के विभिन्न शैक्षिक संस्थानों के साथ मिलकर वहाँ के छात्रों को साहित्य-सृजन के लिए प्रोत्साहित करने क
आईआईसी से आयुष्मान
बीते हफ़्तों में जितनी बार इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (IIC) जाना हो गया, उतना तो पहले कुल मिलाकर नहीं गया था। सोचा दोस्तों को बता दूँ कि अगर मैं यूनिवर्सिटी में न मिलूँ तो मुझे इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में
बनारस के गंगा घाट पर होने जा रहा है तीन दिनों का ‘संगीत परिसंवाद’
15, 16 और 17 अक्टूबर, 2024 को वाराणसी के गंगातट पर एक तीन दिवसीय ‘संगीत परिसंवाद’ का आयोजन होने जा रहा है। छह सत्रों में तीन दिनों तक होने वाले इस कार्यक्रम में संगीतज्ञ-विद्वान ऋत्विक सान्याल, राजेश
एन एनकाउंटर रेज़ीडेंसी : बनारस के इतिहास, किंवदंती और ज्ञान की खोज
किसी शहर को जानने के लिए उसको आत्मसात करना आवश्यक है, लेकिन कुछ शहर आपसे आपकी आत्मा को ही माँगते हैं—कहने का मतलब है ख़ुद को आत्मर्पित करना। बनारस जो इतिहास और किंवदंतियों का संगम है। इस शहर को समझने
दारा शुकोह, मैनेजर पांडेय और कुछ झूठ
विश्वविद्यालयों में एक जुमला ख़ूब चलता है—“और भाई एमे, एम्फ़िल, जॉरगंस से निकल गए या वहीं फँसे हो।’’ मतलब यह कि नया विद्यार्थी ख़ूब भारी-भारी शब्द उछालना सीख जाता है। आजकल किसी भी किताब पर होने वाली च
नया साल और कोरोना का वो उदास मौसम...
दूसरी कड़ी से आगे... 30 दिसंबर, नोज़ोमु के घर नोज़ोमु का मैसेज आया है, हमें 1 बजे स्टेशन के लिए निकलना है। मैं अपने छोटे से सूटकेस में सामान रख रही हूँ। हम ओइता और बेप्पू जा रहे हैं। ओइता में नोज़
महाभारत : वीरता के आवरण में
उपनिवेशित समाजों पर अपनी क़ब्ज़ेदारी को न्यायोचित ठहराने के लिए उपनिवेशकों ने यह बहाना गढ़ा था कि इन समाजों में वैयक्तिक उत्कर्ष की लालसा नहीं है। न ही वे एक समुदाय के रूप में ख़ुद को गठित कर पाने में स
जापान डायरी : एक शहर अपने आर्किटेक्चर से नहीं लोगों से बनता है
पहली कड़ी से आगे... जनवरी 2020 यह मेरी सर्दी की छुट्टियों की पहली किश्त है। आशा है दूसरी किश्त को लिखने में इतना समय नहीं लूँगी। कल ओसाका की फ्लाइट है, हमें सुबह 8 बजे निकलना है। मैं खाने की
जापान डायरी : नागासाकी शहर की एक दुपहर
26 सितंबर 2019, नागासाकी मेरी नींद रात 02:30 बजे खुलती है। मैं घड़ी देखती हूँ और वापस सो जाती हूँ। सुबह के 04:45 पर मेरा अलार्म बज रहा है। मैं पच्चीस मिनट के लिए फिर सो जाती हूँ। सुबह 05:10 पर
गुरु-शिष्य-परंपरा : कुछ नोट्स
भारतीय जन-मानस में एक कॉमन सेंस घर कर गया है—सिखाने वाला बड़ा होता है, सीखने वाला छोटा; इसलिए छोटे का सीखने के लिए बड़े के सामने समर्पण करना ज़रूरी है। यह समर्पण इंसान को ‘विनम्र’ बनाता है, इसी समर्प
हिमाचल के दुर्लभ कठार और पेछियों के ख़ाली पेट
हिमाचली गाँवों में एक समय था, जब पेछियों के पेट साल भरे-भरे रहते थे। उस समय जब कोई बच्चा ज़्यादा खाता था—तो उसे एक विशेषण से नवाज़ा जाता था कि इसका पेट तो पेछी है, जो कभी भरता ही नहीं। आज यह विशेषण भ
क्यों मिथिला की आत्मनिर्भर संस्कृति हो रही है छिन्न-भिन्न!
कहा जाता है ‘हमर मिथिला महान’ मतलब हमारा मिथिला महान! मिथिला का इतिहास काफ़ी समृद्ध रहा है। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से यह बेहद महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। इसका इतिहास वैदिक काल (1500-500 ई. पू.) से प
27 अगस्त 2024
‘समुद्र मंथन’ में नज़र आया चित्तरंजन त्रिपाठी का निर्देशकीय कौशल
नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (National School of Drama) 23 अगस्त से 9 सितंबर 2024 के बीच हीरक जयंती नाट्य समारोह आयोजित कर रहा है। यह समारोह एनएसडी रंगमंडल की स्थापना के साठ वर्ष पूरे होन
जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ : बिना काटे भिटवा गड़हिया न पटिहैं
कवि जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ (1930-2013) अवधी भाषा के अत्यंत लोकप्रिय कवि हैं। उनकी जन्मतिथि के अवसर पर जन संस्कृति मंच, गिरिडीह और ‘परिवर्तन’ पत्रिका के साझे प्रयत्न से जुमई ख़ाँ ‘आज़ाद’ स्मृति संवाद कार्य
आख़िर ऐसे तो न याद करें प्रेमचंद को
गत 31 जुलाई 2024 को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में महान् साहित्यकार प्रेमचंद की जयंती के उपलक्ष्य में ‘प्रेमचंद का महत्त्व’ शीर्षक विचार-गोष्ठी का आयोजन विभागाध्यक्ष प्रो. वशिष्ठ द्विव
हिन्दवी उत्सव के बहाने दुःख ने दुःख से बात की...
‘हिन्दवी’ ने बीते दिनों अपने चार वर्ष पूरे किए। अच्छे-बुरे से परे ‘हिन्दवी’ कभी चर्चा से बाहर नहीं रहा। ‘हिन्दवी’—‘रेख़्ता फ़ाउंडेशन’ का ही उपक्रम है। ‘जश्न-ए-रेख़्ता’ में ख़ूब भीड़ होती है। सवाल यह
हिन्दवी उत्सव की कविता-संध्या : सुंदर, सुखद, अविस्मरणीय
गत चार वर्षों से हो रहे ‘हिन्दवी उत्सव’ की शृंखला का यह तीसरा आयोजन था, जो डिजिटल नहीं बल्कि पाठकों के बीच (साथ) हुआ। ज़ाहिर है, इन वर्षों में ‘हिन्दवी’ ने जिस तरह का मुक़ाम हासिल कर लिया है, उससे इत
इस तरह मना ‘हिन्दवी उत्सव’ 2024
हिंदी साहित्य को समर्पित रेख़्ता फ़ाउंडेशन के उपक्रम ‘हिन्दवी’ की चौथी वर्षगाँठ के मौक़े पर—28 जुलाई 2024 के रोज़, त्रिवेणी कला संगम, मंडी हाउस, नई दिल्ली में ‘हिन्दवी उत्सव’ आयोजित हुआ। ‘हिन्दवी
हिन्दी के वैभव की दास्तान वाया ‘हिन्दवी उत्सव’
‘हिन्दवी उत्सव’ का चौथा संस्करण, रविवार 28 जुलाई 2024 को त्रिवेणी कला संगम, मंडी हाउस, नई दिल्ली में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। आइए जानते हैं ‘हिन्दवी उत्सव’ से लौटकर अतिथि-लेखकों ने आयोजन को लेकर क
‘हिन्दवी’ उत्सव में न जा पाए एक हिंदीप्रेमी का बयान
‘हिन्दवी’ अब दूर है। उसके आयोजन भी। जब दिल्ली में था तो एक दफ़ा (लखनऊ में ‘हिन्दवी’ उत्सव के आयोजन पर) सोच रहा था कि लखनऊ में क्यों नहीं हूँ? अब लखनऊ में बैठा सोचता हूँ कि ‘हिन्दवी’ के इस आयोजन के समय
क्या हुआ ‘हिन्दवी’ उत्सव की कविता-संध्या (में नहीं) से
मैं गए रविवार (28 जुलाई 2024) ‘हिन्दवी’ द्वारा आयोजित कविता-पाठ के कार्यक्रम ‘कविता-संध्या’ सुनने के लिए त्रिवेणी कला संगम (नई दिल्ली) गया था। वहाँ का समाँ देखकर मैं विस्मित रह गया। गंभीर कविता के प्
‘हिन्दवी उत्सव’ 2024 : आप सादर आमंत्रित हैं
हिंदी साहित्य को समर्पित रेख़्ता फ़ाउंडेशन के उपक्रम ‘हिन्दवी’ की चौथी वर्षगाँठ के मौक़े पर आज—28 जुलाई 2024 के रोज़, त्रिवेणी कला संगम, मंडी हाउस, नई दिल्ली में ‘हिन्दवी उत्सव’ आयोजित किया जा रहा है
रेख़्ता फ़ाउंडेशन के उपक्रम ‘हिन्दवी’ के चार साल
हिंदी साहित्य को समर्पित रेख़्ता फ़ाउंडेशन का उपक्रम ‘हिन्दवी’ जल्द ही साहित्य-संसार में अपने चार वर्ष सफलता के साथ पूरे करने वाला है। इस सुखद अवसर पर हम हिंदी कविता और साहित्य से संबद्ध सभी रचनाकारो
जेएनयू क्लासरूम के क़िस्से-5
जेएनयू क्लासरूम के क़िस्सों की यह पाँचवीं कड़ी है। पहली, तीसरी और चौथी कड़ी में हमने प्रोफ़ेसर्स के नामों को यथावत् रखा था और छात्रों के नाम बदल दिए थे। दूसरी कड़ी में प्रोफ़ेसर्स और छात्र दोनों पक्षों के
जेएनयू क्लासरूम के क़िस्से-4
जेएनयू क्लासरूम के क़िस्सों की यह चौथी कड़ी है। पहली और तीसरी कड़ी में हमने प्रोफ़ेसर्स के नामों को यथावत् रखा था और छात्रों के नाम बदल दिए थे। दूसरी कड़ी में प्रोफ़ेसर्स और छात्र दोनों पक्षों के नाम बदले
जौनपुर भड़ैंती उर्फ़ नक़ल : एक ख़त्म होती नाट्य-विधा
कुछ वर्ष पूर्व तक पूर्वांचल के देहातों-क़स्बों-शहरों की दीवारों पर हिंदुस्तानी, अवधी या भोजपुरी में लिखे सूचना-पट्ट इस तरह के होते थे—कल्लू नक़्क़ाल, बिस्मिल्लाह भाँड, रमपत हरामी मंडली इत्यादि... कि
इंडिया फ़ेलो अपने 17वें बैच के लिए ले रहा है आवेदन
इंडिया फ़ेलो युवा भारतीयों के लिए सामाजिक नेतृत्व हासिल करने का कार्यक्रम है। यह भारतीय परिवेश में ज़मीनी स्तर से जुड़कर, काम करते हुए, अनुभव हासिल करते हुए भारत के अध्येताओं को अपनी नेतृत्व क्षमता खोज
सूफ़ी आंदोलन के कुछ अनछुए पहलू
सन्यासी फ़क़ीर विद्रोह के नायक बाबा मजनू शाह आज़ादी के लिए देश में कई लड़ाईयाँ लड़ी गई हैं और कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना बलिदान दिया है। इतिहास में दर्ज पहला स्वाधीनता संग्राम फ़क़ीर-सन्यासी वि
क्या है क़व्वाली वाया सूफ़ी-संगीत का खुलता दरीचा
हिंदुस्तान में क़व्वाली सिर्फ़ संगीत नहीं है। क़व्वाली इंसान के भीतर एक सँकरे मार्ग का निर्माण करती है, जिसमें एक तरफ़ ख़ुद को डालने पर दूसरी तरफ़ ईश्वर मिलता है। क़व्वाली की विविध विधाएँ हिंदुस्तान म
गंगा-जमुनी तहज़ीब और हिंदुस्तानी सूफ़ीवाद
हमारी इस साझा संस्कृति का निर्माण एक दिन में नहीं हुआ है। यह धीरे-धीरे विकसित हुई है। कई सामाजिक प्रयोग हुए हैं और अपने विरोधाभासों को किनारे रखकर समानताओं पर कार्य किया गया है। शुरूआती दौर का सूफ़ी-स
कोटि जनम का पंथ है, पल में पहुँचा जाय
हिंदुस्तान में सूफ़ी-भक्ति आंदोलन एक ऐसी पुरानी तस्वीर लगता है, जिसके टुकड़े-टुकड़े कर विभिन्न दिशाओं में फेंक दिए गए। जिसे जो हिस्सा मिला उसने उसी को सूफ़ी मान लिया। हिंदी, उर्दू, फ़ारसी, पंजाबी, बंगाली,
जेएनयू क्लासरूम के क़िस्से-3
जेएनयू क्लासरूम के क़िस्सों की यह तीसरी कड़ी है। पहली कड़ी में हमने प्रोफ़ेसर के नाम को यथावत् रखा था और छात्रों के नाम बदल दिए थे। दूसरी कड़ी में प्रोफ़ेसर्स और छात्र दोनों पक्षों के नाम बदले हुए थे। अब त
किताब उसकी है जिसने उसे पढ़ा, उसकी नहीं जिसके किताबघर में सजी है
एक हर किताब अपने समझे जाने को एक दूसरी किताब में बताती है। —वागीश शुक्ल, ‘छंद छंद पर कुमकुम’ जब बाज़ार आपको, आपका निवाला भी चबा कर दे रहा है; तब क्या पढ़ें और किसको पढ़ें? एक अच्छा सवाल है। को
जेएनयू क्लासरूम के क़िस्से
जेएनयू द्वारा आयोजित वर्ष 2012 की (एम.ए. हिंदी) प्रवेश परीक्षा के परिणाम में हर साल की तरह छोटे गाँव और क़स्बे इस दुर्लभ टापू की शांति भंग करने के लिए घुस आए थे। हमारी क्लास एलएसआर और मिरांडा हाउस जैस
सिफ़्सी लेकर आ रहा है देश-विदेश की 150 फ़िल्में
स्माइल फ़ाउंडेशन—यूरोपीय संघ (भारत में यूरोपीय संघ का प्रतिनिधिमंडल) के साथ साझेदारी में बच्चों और नौजवानों के लिए वार्षिक स्माइल इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (सिफ्सी) के 10वें संस्करण की मेज़बानी करेगा। स
'हिन्दवी' की नई प्रस्तुति : साहित्य और संस्कृति की घड़ी : ‘बेला’
‘हिन्दवी’ इस तरह की कोशिशों में यक़ीन करती आई है कि वह हो चुके को ख़ूबसूरत ढंग से सहेज ले। लेकिन इसके साथ-साथ हमारी मंशा यह भी रही है कि हम हो रहे को भी दर्ज करें। इस सिलसिले में हमने अपनी शुरुआत में ह