सांप्रदायिकता पर बेला
सांप्रदायिकता संप्रदाय
विशेष से संबद्धता का प्रबल भाव है जो हितों के संघर्ष, कट्टरता और दूसरे संप्रदाय का अहित करने के रूप में प्रकट होता है। आधुनिक भारत में इस प्रवृत्ति का उभार एक प्रमुख चुनौती और ख़तरे के रूप में हुआ है और इससे संवाद में कविताओं ने बढ़-चढ़कर भूमिका निभाई है। इस चयन में सांप्रदायिकता को विषय बनाती और उसके संकट को रेखांकित करती कविताएँ संकलित की गई हैं।
16 जून 2025
औरंगज़ेब का घरेलू नाम नवरंग बिहारी था
लेख से पहले चंद शब्द कुछ दिन पहले अपने पुराने काग़ज़ात उलट-पलट रही थी कि एक विलक्षण लेख हाथ आया। पंडित वाहिद काज़मी का लिखा—हेडलाइन प्लस, जुलाई 2003 में प्रकाशित। शीर्षक पढ़कर ही झुरझुरी आ गई। एक स
12 जून 2025
भाषा, लोग और ‘बहुरूपिये’ वाया 2014
आज़ादी के बाद के, हमारे देश का इतिहास जब भी लिखा जाएगा तो उसमें दो खंड लाज़िमी होंगे। पहला—आज़ादी से लेकर 2014 तक और दूसरा—2014 से बाद का। ऐसा नहीं है कि 2014 के बाद से हमारे समाज में धर्म के नाम पर
23 अप्रैल 2024
'झीनी बीनी चदरिया' का बनारस
एक शहर में कितने शहर होते हैं, और उन कितने शहरों की कितनी कहानियाँ? वाराणसी, बनारस या काशी की लोकप्रिय छवि विश्वनाथ मंदिर, प्राचीन गुरुकुल शिक्षा के पुनरुत्थान स्वरूप बनाया गया बनारस हिंदू विश्वविद्य