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नया साल और कोरोना का वो उदास मौसम...

दूसरी कड़ी से आगे...

30 दिसंबर, नोज़ोमु के घर

नोज़ोमु का मैसेज आया है, हमें 1 बजे स्टेशन के लिए निकलना है। मैं अपने छोटे से सूटकेस में सामान रख रही हूँ। हम ओइता और बेप्पू जा रहे हैं। ओइता में नोज़ोमु का घर है और बेप्पू में नोज़ोमु के नाना-नानी रहते हैं। हम नया साल मनाने नोज़ोमु के घर जाएँगे। मैंने कुछ मसाले, चाय-पत्ती का पैकेट और एक दो और चीज़ें तोहफ़े में देने के लिए रख ली है। फ़ुकुओका से ओइता क़रीब 160 किलोमीटर दूर है। ट्रेन से दो घंटे लगेंगे।

स्टेशन पर नोज़ोमु के पिता हमें लेने आ गए हैं। नोज़ोमु का घर नज़दीक ही है। उनके घर में तीन कमरे हैं, और एक बड़ा हॉल। जापानी घरों के कमरे अमूमन छोटे ही होते हैं। मैं सामान नोज़ोमु के कमरे में रख देती हूँ। मुझे यह घर और कमरा बेहद पसंद आया। छोटी-छोटी बहुत-सी प्यारी चीज़ें हैं यहाँ। मैं सब कुछ कौतुक से देख रही हूँ। 

जल्दी ही हम ऑनसेन जाने के लिए तैयार हो जाते हैं। वहाँ से हम नोज़ोमु की दादी के घर जा रहे हैं। उनका घर नज़दीक ही है। नोज़ोमु का घर अपार्टमेंट में है, पर दादी का घर जापानी शैली में बना हुआ बहुत सुंदर दो मंज़िला घर है। मैं हमेशा से ऐसे ही घर में रहना चाहती हूँ। 

नोज़ोमु की माँ और दादी योग सिखाती हैं। उसकी दादी चार बार भारत जा चुकी हैं। हम भोजन के लिए बैठ जाते हैं। जापान में लोग शाम के 6-7 बजे ही रात्रि भोजन कर लेते हैं। आज साल का आख़िरी दिन होने के कारण, खास भोजन बना है। खाने की मेज़ ज़मीन से एक फ़ीट के क़रीब ही ऊँची है। उसके नीचे हीटर लगा हुआ है, इसे कोतात्सु कहते हैं। हम ज़मीन पर बैठ जाते हैं। मेज़ पर तरह-तरह के व्यंजन रखे हैं, लेकिन मेरे लिए कुछ ही चीज़ें हैं। आज का खाना पारंपरिक होने के कारण अधिकांशतः समुद्री भोजन और माँसाहारी ही है। 

वे सब मेरे लिए चिंतित हैं। मैंने उन्हें बताया कि मैं ठीक हूँ, जापान में रहते हुए मुझे अब इसकी आदत हो गई है। मैं अपने खाने के लिए इसमें से कुछ शाकाहारी ढूँढ़ लूँगी। पर सिर्फ़ (मीठे चावल की) सुशी, चावल और तली हुई थोड़ी सब्ज़ियों के अलावा मुझे बहुत कुछ नहीं दिखा। फिर भी वहाँ हो रही बातें ज़्यादा आनंददायक लग रही हैं। वे सब मिलकर मुझे नव वर्ष की परंपराओं के बारे में बता रहे हैं।

परिवार के सब लोग भोजन करने के बाद, 12 बजने का इंतज़ार करते हैं। वहाँ रात में उदोन (एक तरह के नूडल्स) खाने की परंपरा है। वहाँ उदोन नूडल का लंबा होना शुभ माना जाता है। नोज़ोमु की दादी के पास भारत की तस्वीरों का एल्बम है। उसमें बंगाली में कुछ लिखा देखकर मैं उत्साहित हो जाती हूँ। हमने भारत-जापान के खानपान के बारे में, योग के बारे में ढेर सारी बातें कीं। 

थोड़ी देर बाद नोज़ोमु अपने दोस्तों से मिलने बाहर जा रही है। हम पास के स्टोर की ओर जा रहे हैं। सब जगह अँधेरा और सन्नाटा है। जापान में अमूमन सब जगह ऐसा ही होता है। सड़कें ख़ाली रहती हैं। लेकिन साल का आख़िरी दिन होने पर भी, ऐसा सन्नाटा देखकर मुझे अजीब लगा। मैंने नोज़ोमु से इस बाबत पूछा तो उसने बताया कि लोग या तो अपने परिवारों से मिलने चले जाते हैं, या घर में साथ समय बिताते हैं, इसलिए सड़कें ख़ाली हैं।

12 बज गए हैं। थोड़ी देर और वहाँ रुकने के बाद हम वापस लौटने की तैयारी कर रहे हैं। दरवाज़े पर पहुँचकर दादी नोज़ोमु और मुझे एक लिफ़ाफ़ा देती हैं। यह नए वर्ष का शगुन है। मुझे कहीं जाते वक़्त नानी के दिए पाँच और दस रुपए याद आ रहे हैं। मैंने झुककर उन्हें शुक्रिया कहते हुए कहा कि उनका घर बहुत सुंदर है। वह बोलीं मैं कल फिर आऊँ। आह! आना ही चाहिए। ऐसे घरों में बहुत-बहुत बार आना चाहिए। 
वहाँ से लौट कर मैं सोने की कोशिश कर रही हूँ। सुबह हमें नए साल का पहला सूर्योदय देखने बेप्पू जाना है।

सुबह हो गई है। सब जल्दी-जल्दी तैयार हो रहे हैं। बेप्पू टॉवर यहाँ से क़रीब पैंतीस मिनट दूर है। जापान में नए वर्ष का पहला सूर्योदय देखना शुभ माना जाता है। हम क़रीब 100 मीटर ऊँचे टॉवर पर खड़े हैं। ठंड होने की वजह से सूरज देर से उगेगा। 7:30 बजे के क़रीब सूर्योदय होगा। आसमान बहुत सुंदर हो गया है। सूर्योदय देखते हुए मैं और नोज़ोमु टॉवर से नीचे देखते हुए शहर के प्लान के बारे में बात कर रहे हैं...

हम नोज़ोमु के नाना-नानी से मिलने जा रहे हैं। उनका घर भी जापानी शैली से बना हुआ है। बेप्पू में बहुत से प्राकृतिक गर्म पानी के सोते हैं। यह जगह जापान भर में बेहद लोकप्रिय है। ओइता और बेप्पू में भूकंप भी बहुत आते हैं। 

एक बार फिर से खाने की मेज़ पर बहुत-सा जापानी शैली में बना खाना लगाया गया है। खाने के बाद नोज़ोमु की नानी हमें शगुन का लिफ़ाफ़ा और एक ख़ास तरह की टॉफ़ी देती हैं। इस टॉफ़ी पर चूहा बना हुआ है। जापानी परंपरा में 12 जानवरों की मान्यता है (राशि चिह्नों जैसा)। हर वर्ष इनमें से एक जानवर का होता है। यह वर्ष चूहे का है। 

यहाँ सब चाहते हैं कि मैं किमोनो पहन कर देखूँ। नोज़ोमु की नानी जापानी नृत्य करती थीं, इसलिए उनके पास एक से अधिक किमोनो हैं। अच्छे किमोनो बहुत महँगे होते हैं। उनका शुरुआती दाम ही पाँ लाख रुपए के क़रीब होता है, जो किमोनो मैं पहनने जा रही हूँ, उसका दाम एक मिलियन येन है (क़रीब 6.5 लाख रुपए)। यह किमोनो नानी ने नोज़ोमु की माँ की शादी में पहना था। 

किमोनो पहनना बेहद मुश्किल जान पड़ता है। मुझे देखकर नोज़ोमु, उसकी माँ और नानी तीनों बेहद ख़ुश हैं। वह मुझे जापानी पंखा हाथ में देती हैं और नोज़ोमु मेरी बहुत-सी तस्वीरें खींचने लगती है।

हम पानी के गर्म सोते देखने बाहर आए हैं। हमें रास्ते में बहुत जगहों पर जमीन से उठती हुई भाप दिखी। मैंने ऐसा कुछ पहली बार देखा है। 

हम वापस जाने की तैयारी कर रहे हैं। नानी ने मुझे कुछ छोटे पौधे भी दिए हैं। नाना किसान हैं। वह फूल उगाते हैं। जापानी वृद्ध बहुत ही ऊर्जावान होते हैं। नोज़ोमु के नाना, नानी और दादी सभी 70 वर्ष से अधिक उम्र के हैं। फिर भी उनमें किसी तरह से धीमेपन के कोई लक्षण दिखाई नहीं देते।

हम 7 बजे के क़रीब वापस नोज़ोमु के घर आ गए हैं। नोज़ोमु, उसकी माँ और मैं बैठ कर बातें कर रहे हैं। थोड़ी देर में वह उठ कर जाती हैं, और बच्चों की कहानी की किताब लेकर आती हैं। इसमें सरल जापानी में कहानियाँ है। मैं चार साल की उम्र में जैसे राज कॉमिक्स के अक्षर जोड़-जोड़कर पढ़ने की कोशिश करती थी, वैसे ही यह किताब पढ़ने की कोशिश करती हूँ। हम और बहुत-सी बातें करने के बाद सोने चले जाते हैं। बाहर तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस है। मैं रज़ाई चारों ओर समेट कर सोने की कोशिश कर रही हूँ। मेरा मन भर आया है। मैं फ़ोन निकालकर नोज़ोमु को मैसेज लिखा। शब्द कम पड़ रहे हैं। मैं बस इतना जानती हूँ कि मेरे भीतर का बच्चा इन दो दिनों में बेहद ख़ुश रहा है। 

अगले दिन मैं उन सब के लिए शाही पनीर बनाऊँगी, ऐसा मैंने सबको बता दिया था। मैं चाय का पानी चढ़ा रही हूँ। मैं दूध फाड़ कर पनीर बना रही हूँ। मामा बेहद उत्सुकता से पनीर बनना देख रही हैं। वह डायरी में सब नोट कर रही हैं।

नोज़ोमु मेरे सबसे पसंदीदा जापानियों में से है। वह ढेरों बातें कर सकती है। एक दिन खाने की मेज़ पर बैठकर उससे बातें करते हुए मैंने उससे कहा था कि किस प्रकार जापानी लोग अमूमन बातों में गहरे भावों को व्यक्त नहीं करते। उनकी बातें कल, आज, कल के दायरे में घूम ही कर रह जाती है। कहाँ घूमने गए, क्या खाया, क्या मज़ेदार हुआ, अगले हफ़्ते कहाँ जाना है इत्यादि। और मैं उसे बता रही थी कि किस तरह भारत में और यूरोप के दोस्तों से बात करते हुए, मैं बहुत कुछ कह सुन पाती हूँ, जो जापान के लोगों के साथ संभव नहीं हो पाता है। 

भारत में लोगों से बात करते हुए, अमूमन कोई-न-कोई गहरी बात सतह पर आ ही जाती है। वहाँ बचपन, यौन शोषण, जीवन से जुड़ी अपेक्षाएँ, घरवालों का दबाव इत्यादि पर बात करना इतना मुश्किल नहीं लगता। पहले-पहल मुझे लगा था, यह डेवलप्ड और डेवलपिंग देश के बीच की खाई है। पर यूरोपी दोस्तों से बात करने पर वह संदेह भी जाता रहा। नोज़ोमु मेरी बात से सहमत हुई थी। उसने मुझे बताया था जापानी लोग अपनी निजी बातें कहने में संकोची होते हैं। मैंने उसे नागाओका सेंसेई की कक्षा के बारे में बताया। जहाँ से यह विचार शुरू हुआ था। मैं कक्षा के लिए लिखी गई कहानी उसे सुनाई, कहानी उसे बेहद पसंद आई थी। जब मैंने उससे कहा, भारत में मेरे अधिकतर दोस्तों को यह कहानी समझ नहीं आई, तो वह हैरानी से भर गई थी।

नोज़ोमु खाने की मेज़ पर बैठ गई है। मेरा ध्यान लौट आता है। जल्दी ही हमें स्टेशन के लिए निकलना है। वे तीनों मुझे स्टेशन पर छोड़ने आए हैं। मैं तोहफ़ों से भरा हुआ सूटकेस लेकर ट्रेन में बैठ गई हूँ। नोज़ोमु दो दिन बाद आएगी। यह मेरी ज़िंदगी की सबसे अच्छी यात्राओं में से एक यात्रा रही।

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बेहद उदास मौसम के ख़िलाफ़ एक लंबी चिट्ठी

डोरमेट्री के सारे जापानी बच्चे घर चले गए हैं। यूनिट में अकेले रहते हुए, क़रीब चार महीने होने को हैं। यहाँ हमारे प्रोग्राम के क़रीबन पंद्रह अंतरराष्ट्रीय बच्चे और दूसरे कुछ बच्चे ही हैं। कई बार लोगों को देखे बिना, किसी से मिले बिना तीन-चार दिन गुज़र जाते हैं। सारी कक्षाएँ ज़ूम पर होती हैं। दिन में पाँच-सात घंटे की क्लास। यह कभी-कभी बहुत तनाव से भर देती हैं। मैं कभी-कभी दो-तीन दिनों तक किसी से ज़्यादा बात नहीं कर पाती। एक भी अच्छी ख़बर सुनाई नहीं पड़ती। जो दिखता है, दिल को और उदासी में डुबा देता है। एक बार को लगता है, मुझे उदास भी नहीं होना चाहिए। मुझे तो कोई कमी नहीं है। रहने की जगह है, छात्रवृत्ति है, इंटरनेट है, और क्या चाहिए? पर ख़ुश होने पर लगता है, इतने उदास समय में मुझे ख़ुश होने का क्या हक़ है? मैं इस अजीब खेल से थोड़ा उकता गई हूँ। 

यह मेरी उसी उकताहट के ख़िलाफ़ चिठ्ठी है और ख़ुद को यह बताने का प्रयास है कि दुनिया में अभी बहुत संभावना शेष है। दुनिया में ऐसी बड़ी और बहुत-सी छोटी-छोटी चीज़ें है जो तमाम बुरी ख़बरों के बीच मुस्कुराहट की गुंजाइश बचाए रखे है। 


8 अप्रैल, 2020

मैं क़रीब एक महीने भारत रहने के बाद वापस जापान आ गई हूँ। 23 मार्च को वापस आने के बाद 14 दिन क्वारंटाइन में रहना पड़ा। मैं बहुत दिनों बाद थोड़ा टहल आने के लिए बाहर जा रही हूँ। मैं ताकाशी सान की दुकान के पास से गुज़रने पर पाती हूँ कि दुकान बंद है, लेकिन जैसे ही दुकान के छोर पर पहुँचती हूँ, ताकाशी सान बाहर आते हुए दिखते हैं, वह कुछ सामान रखने आए थे। 

मैं अभिवादन करती हूँ, वह चौंककर मुझे देखते हैं और बहुत उत्साह से कहते हैं— अरे ईशा (उफ्फ! उन्हें मेरा नाम याद रहा), हिसाशीबुरी (बहुत दिनों बाद मिलना हुआ के लिए जापानी शब्द)! मैं भी वापस हिसाशीबुरी कहती हूँ। 

वह कहते हैं—क़रीब दो महीने हो गए मिले हुए। पूछते हैं, मैं कैसी हूँ, भारत की स्थिति कैसी है, बाल कब कटवा लिए आदि-आदि। 

मैं सब बताती हूँ, उनसे पूछती हूँ—वह कैसे हैं, और दुकान क्यों बंद है? वह बताते हैं, कोरोना की वजह से दुकान साढे तीन बजे बंद हो जाती है। जल्दी ही फिर से आने का वादा करके मैं विदा ले लेती हूँ। 

मैं कुछ दिनों बाद फिर से वहाँ गई, उस दिन वह दुकान पर नहीं थे। मैंने चॉकलेट कुकी बनाई थी। एक डिब्बे में रखकर उनके लिए ले गई थी। डिब्बा दुकान पर दे आई, यह कहकर कि वह अगले दिन उसे उन्हें दे दें। तीन-चार दिन बाद उधर जाना हुआ तो ताकाशी सान मिले, माफ़ी माँगी कि वह डिब्बा भूल गए। मैंने कहा बिल्कुल कोई बात नहीं। उन्होंने धन्यवाद किया और कहा कुकी स्वादिष्ट थी। ताकाशी सान से दोस्ती मेरी जापानी की सबसे बड़ी उपलब्धि है।

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6 जून, 2020

डोरमेट्री में घोषणा हुई है। हर फ़्लोर के मीटिंग रूम में हमारे लिए कुछ कुछ सामान है। मैं जाकर सामान ले आई हूँ। फिर समझ में आया कि जापानी लोगों ने अंतरराष्ट्रीय बच्चों के लिए खाने-पीने सामान दान किया है। ख़ूब सारी चीज़ें हैं, मैं इन लोगों को जानती भी नहीं। हम अपेक्षाकृत ठीक ही हैं, इस सामान के न मिलने से भी कोई बहुत अधिक मुश्किल नहीं थी। मुझे लगता है, यह भोजन से ज़्यादा भाव के बारे में है। हम अकेले नहीं है, यह महसूस कर पाना बहुत आराम देता है। मैं जापानी लोगों के प्रति बहुत कृतज्ञता महसूस कर रही हूँ। चाहती हूँ यह करने वाले लोगों के प्रति निजी रूप से आभार व्यक्त कर सकूँ।

उस दिन के बाद भी कई बार खाने-पीने की कई तरह की चीज़ें लगभग हर दस-बारह दिन पर आती रहती हैं। यह उदारता का कोई विचित्र चक्र है, जो चलता रहता है। जहाँ लोग अच्छे होने से थक नहीं जाते। या कि उदास समय में भी उदार बने रहने की हिम्मत रखते हैं।

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11 जुलाई, 2020

तोमो मेरा जापानी दोस्त है, जिसे हिंदी बोलनी आती है। उसने क्योतो विश्वविद्यालय से हिंदी में स्नातक किया है। कुछ महीने दिल्ली भी रह कर आया है। मैं आज उससे दूसरी बार मिलने जा रही हूँ और बेहद उत्साहित हूँ। हम ओहोरी पार्क जा रहे हैं, जो एक तरह से शहर का मुख्य पार्क है। 

हम मेरे नज़दीकी ट्रेन स्टेशन के सामने से वहाँ जाने वाली बस लेंगे। हम सब-वे से भी जा सकते थे, पर तोमो ने बताया हाई स्कूल में वह रोज़ यह बस लेता था, और क़रीब पाँच साल बाद वह यह दुबारा करना चाहता है। हम क़रीब बीस मिनट की यात्रा के बाद ओहोरी पार्क पहुँच गए हैं, और तोमो अपना स्कूल देखना चाहता है। 

हम उसका स्कूल देखने के बाद पार्क में जाते हैं। यह बेहद बड़ा पार्क है, जिसमें झील भी है। झील के किनारे की एक बेंच पर हम बैठ गए हैं। वहाँ पर एक क्रेन पक्षी बैठा है, जिसे देख कर तोमो बोलता है—मैं तुम्हारा नागासाकी वाला ब्लॉग पढ़ रहा था, उसमें तुमने लिखा है न कि तुमने काग़ज़ के हंस बनाए, पर क्रेन तो हंस नहीं होते न। मैंने कहा ओह हाँ, ये तो ध्यान ही नहीं दिया मैंने। और मन ही मन इस बात पर अचंभित भी हुई कि उसे कितनी बारीक बात याद रही। 

हमने सोचा था कि हम दोनों तोत्तो चान पढ़ेंगे, मैं जापानी में और वह हिंदी में (तोत्तो चान एक आत्मकथात्मक संस्मरण है, जिसमें एक छोटी लड़की तोत्तो और उसके अनोखे स्कूल की बातें हैं। अगर हो सके तो यह क़ीमती किताब आपको ज़रूर पढ़नी चाहिए। इसका एक चैप्टर तीसरी या चौथी कक्षा की हिंदी की किताब में भी था।)। किसी से तीन भाषाओं में बात कर पाना बहुत रोमांचक होता है।

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मैं तोमो से मिलने जा रही हूँ। इस बात से ख़ूब उत्साहित हूँ कि हम तोत्तो चान पढ़ेंगे। मैं अपने दोस्त नील से बता रही हूँ, हम तीन भाषाओं में बात करते हैं। नील कहता है—तब तो चुप भी तीन भाषाओं में होते होगे। 

मैं तुरंत कहती हूँ—नहीं चुप तो सिर्फ़ दो भाषाओं में होते हैं। 

वह कहता है—क्यों तुम हिंदी में चुप नहीं हो पाती? मैं उसे बताती हूँ, वह हिंदी में चुप होता है, मैं जापानी में। और हम दोनों एक समय में बोलते हैं। अरे वाह! यह तो कविता जैसा है। मैंने तोमो के लिए यह कविता लिखी जिसे अगले दिन आसान हिंदी में समझाने के लिए मुझे ख़ूब मशक्कत करनी पड़ी—

हमारे लिखने की तीन भाषाएँ हैं
पढ़ने की चार
हम चीन्ह लेते हैं कभी-कभी
नहीं लिखा गया निश्वास।

मैं जापानी में लगभग लुढ़क कर गिरती हूँ
और कुछ कहने लगती हूँ हिंदी में जल्दी-जल्दी
सिर हिलाकर समर्थन में
कुछ देर बाद वह हिंदी में कहता है
मुझे तो भारतीय खाने में पसंद है 
रोज़ की रोटी और दाल। 

हमारे बात करने की 3 भाषाएँ हैं
चुप रहने की दो।
वो हिंदी में चुप होता है
मैं जापानी में
अँग्रेज़ी हमारी चुप्पी के पुल पर
धड़धड़ाती हुई रेल-सी गुज़र जाती है।
चुप्पी टूट जाती है
स्वर होता है,
अर्थहीन नहीं,
पर कभी-कभी
शिशिर में ठिठुर गई टहनी जितना
भावहीन।

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