जापान डायरी : नागासाकी शहर की एक दुपहर
स्मिति 12 सितम्बर 2024
26 सितंबर 2019, नागासाकी
मेरी नींद रात 02:30 बजे खुलती है। मैं घड़ी देखती हूँ और वापस सो जाती हूँ।
सुबह के 04:45 पर मेरा अलार्म बज रहा है। मैं पच्चीस मिनट के लिए फिर सो जाती हूँ। सुबह 05:10 पर मैं उठ गई हूँ। नहाने जाने से पहले—कल रात ही बना लिया गया—खाना फ़्रिज से निकाल कर माइक्रोवेव में गर्म होने के लिए रख देती हूँ। नहाने के बाद मैं सारे टिफ़िन बैग में रखने लगती हूँ। एक में पित्ज़ा ब्रेड है, दूसरे में मीठी ब्रेड स्टिक, तीसरे में चीज़ पास्ता और चौथे में शकरकंद।
कल शाम खाना बनाते हुए—ट्रेन-यात्रा के लिए माँ द्वारा बनाई जाने वाली आलू-पूड़ी याद आई। जापान में हर कहीं शाकाहारी खाने की सुविधा नहीं है, इसलिए अगर आप शाकाहारी हैं और जापान आएँ हैं, तो खाना बनाकर ले जाना ही—ख़ाली पेट, मारा-मारा न घूमने का—सबसे सुंदर, सस्ता और टिकाऊ उपाय है। हालाँकि 24/7 जैसे कंवीनिएंट स्टोर आपको हर जगह मिल जाएँगे, पर वहाँ आपको वही सब खाना पड़ सकता है, जो वहाँ उपलब्ध हो।
मैंने बैग में सारी ज़रूरी चीज़ें फिर से चेक कीं और दरवाज़ा हौले से बंद कर नीचे उतर आई। वहाँ डोरिस, याना, एना और समीक्षा पहले से ही थे। थोड़ी देर में क्रिस्टा भी आ गई। हम जापान रेलवे से हकाता टर्मिनल जाएँगे। वहाँ से नागासाकी की बस 07:24 (सुबह) पर चलेगी। हम 6:40 (सुबह) पर ही वहाँ पहुँच गए। एक तरफ़ की यात्रा का टिकट लगभग बाईस सौ येन का है।
हमारी बस बिल्कुल टाइम से निकली। थकान से मुझे नींद आने लगती है। रास्ता क़रीब ढाई घंटे का है। आधे रास्ते पहुँचकर, बस एक जगह दस मिनट के लिए रुकती है। मेरी आँख खुल जाती है।
कितनी सुंदर जगह है। चारों तरफ़ पहाड़ हैं। मैं आधी खुली आँखों से समीक्षा की ओर देख कर पूछती हूँ, “इतनी सुंदर जगह पर अमेरिका ने कैसे बम गिराया होगा?” (वास्तव में दुनिया की किसी भी जगह-हिस्से पर किसी भी देश को ऐसी हिंसा करने का हक़ नहीं है।)
वह कुछ नहीं बोलती है। हमारे बीच का मौन ही, इस जगह-इस क्षण, हमारे बीच का सबसे ज़रूरी संवाद है शायद।
हम 10:14 पर नागासाकी पहुँच गए। सबसे पहले हम एटॉमिक बम म्यूजियम जाएँगे। हमने ट्राम का एक दिन का पास ले लिया है, जिसका दाम पाँच सौ येन है। मुझे यह जापान के हिसाब से निहायती सस्ता मालूम पड़ा। फ़ुकुओका में बस से 10 किलोमीटर जाने का किराया चार सौ बीस येन के लगभग है।
यह ट्राम 2 डिब्बों की छोटी गाड़ी है, इनकी पटरियाँ सड़कों के बीच से होकर गुज़र रही हैं। यह ट्राम में बैठने का मेरा पहला अनुभव है। ट्राम हिचकोले खाती चलती है। देखने से ही मालूम पड़ता है कि नागासाकी अपेक्षाकृत छोटा शहर है। हमारा स्टॉप आ गया है।
एटॉमिक बम म्यूजियम में प्रवेश शुल्क दौ सौ येन है। घुसते ही आपको एक घड़ी दिखेगी जिसकी सुई 11:02 (AM) मिनट पर रुकी हुई है। यह घड़ी धमाके के साथ ही थम गई थी। कुछ ही मिनट में 11:02 बजते हैं। म्यूज़ियम में संगीत चलने लगता है। हमारे रोएँ खड़े हो जाते हैं। थोड़ी बहुत चीज़ें देखने के बाद ही मेरा मन भारी होने लगता है। हर कहीं बम के भयावह परिणाम बिखरे हुए दिख रहे हैं। सहेज कर रखे गए बम से विकृत हो चुके कपड़े, जूते, रुमाल, माला, बर्तन, इमारतों के टुकड़े सब के सब स्थिर होते हुए भी हमें अस्थिर कर रहे हैं।
मैं चलते-चलते एक दीवार के सामने आ गई हूँ। इस दीवार पर एटॉमिक बम त्रासदी पीड़ितों के बयान हैं। मैं दूसरे के बाद तीसरा नहीं पढ़ पाती हूँ। मेरी आँख के कोर से एक आँसू ढुलक जाता है। मैं समझना चाहती हूँ कि इतिहास के इस हिस्से का रक्त हममें से किस किसके माथे पर नहीं है?
आपको यहाँ आना चाहिए, इसलिए नहीं क्योंकि यह भावुक करता है, इसलिए भी नहीं क्योंकि यह दुनिया के त्रासकर युद्ध की अवशेष भूमि है। बल्कि इसलिए कि हम यह याद रखें कि हमें क्या-क्या नहीं होना है। फिर मैं एक और कविता पढ़ने लगती हूँ जो एक नौ साल के बच्चे ने लिखी है, जब युद्ध हुआ वह 4 साल का था।
हम म्यूज़ियम से निकलकर सीढ़ियाँ उतरने लगते हैं। यहाँ पर कुछ स्टॉल लगे हुए हैं। हमें यहाँ बहुत से स्कूली बच्चे दिखाई पड़ रहे हैं और काफ़ी बुज़ुर्ग लोग भी। हम यह जानकर हैरान होते हैं कि यहाँ सारा खाना मुफ़्त है। हम एक स्टॉल की ओर बढ़ जाते हैं, यह ओरिगेमी का स्टॉल है। यहाँ कुछ बुज़ुर्ग महिलाएँ हमें फ़ौरन एक काग़ज़ का टुकड़ा पकड़ा देती हैं। वे हमसे पूछ रही हैं कि हम कहाँ से आएँ हैं, आदि-आदि।
हम काग़ज़ से हंस बना रहे हैं। यह थोड़ा मुश्किल है। हम देखते हैं कि लंबी डोरियों में बहुत सारे हंस गुथे हुए हैं। एक बुज़ुर्ग हँसते हुए हमसे कहते हैं, “यह हम ट्रंप को भेजेंगे।”
मैं ख़ुद को मुस्कुराने से रोक नहीं पाती। जब हम उठकर जाने लगते हैं, वह कहते हैं कि हम विश्व-शांति के संदेश को याद रखें। हम उन्हें शुक्रिया कहते हैं और सीढ़ियाँ चढ़कर पीस पार्क में आ जाते हैं। पीस पार्क में दुनिया भर की सरकारों द्वारा उपहार में दी गई मूर्तियाँ हैं। जो शांति का संदेश देती हैं। मुझे यह मूर्तियाँ उपहासात्मक महसूस हो रही हैं। हम एक चबूतरे पर बैठकर खाना खाने लगते हैं। याना को पास्ता बहुत पसंद आता है। वह चाहती है कि मैं उसे रेसिपी दे दूँ।
मैं म्यूज़ियम के अंदर और पार्क में हिबाकु जुमाकु पेड़ (Hibakujumoku ऐसे पेड़ हैं जो परमाणु बमबारी से बच गए और अभी भी फल-फूल रहे हैं) ढूँढ़ रही हूँ। मुझे नील की कविता याद आ रही है। मेरे दोस्त नील ने एक कविता लिखी थी जिसमें हिरोशिमा और नागासाकी के हिबाकु जुमाकु पेड़ों का ज़िक्र था। त्रासदी के बाद हरे हो जाने वाले सबसे पहले पेड़ों में ये ही थे। हिबाकु जुमाकु पेड़ जापानी लोगों की जिजीविषा के प्रतीक हैं। मुझे अफ़सोस होता है कि मुझे इतनी जापानी नहीं आती कि किसी जानकार जापानी से इस पेड़ के बारे में पूछ सकूँ। गूगल पर पेड़ की साफ़ तस्वीरें उस वक़्त मुझे नहीं मिलीं। मैंने एक पेड़ को हिबाकु जुमाकु जैसा पाकर उसकी तस्वीर ले ली है।
इसके बाद हम सोफ़ुकुजी मंदिर जा रहे हैं। इसका प्रवेश शुल्क तीन सौ येन है। यह बेहद शांत जगह है। मंदिर में बुद्ध और दूसरे देवताओं की बहुत-सी मूर्तियाँ हैं। क्रिस्टा ताइवान से है। वह हमें बता रही है कि उसे यहाँ आकर ऐसा लग रहा है, जैसे वह ताइवान में हो। यह मंदिर बहुत हद्द तक वैसे ही हैं जैसे ताइवान में होते हैं। वह हमें दूसरे देवी-देवताओं के बारे में बताने लगती है।
इसके बाद हमें ग्लोवर गार्डन, चाइना टाउन और देजिमा जाना था, लेकिन हम ग़लती से चाइना टाउन पर ट्राम नहीं बदल पाए। तब हम सब देजिमा में ही उतर गए।
देजिमा डच लोगों का छोटा-सा टापू था। यहाँ डच व्यापारी रहते थे। एना, डॉरिस, समीक्षा और मैं अंदर नहीं जाएँगे। हमें यहाँ का प्रवेश शुल्क—पाँच सौ येन बहुत अधिक मालूम लगा। याना और क्रिस्टा अंदर चले जाते हैं। यहाँ से पचास मीटर की दूरी पर कुछ स्टॉल और नहर के किनारे बैठने की जगह है। हम वहाँ से हॉलैंड के डोनट लेकर खाने के लिए बैठ हैं। क्रिस्टा का मैसेज आया है कि उन्हें समय लगेगा हम कहीं और घूम आएँ। हम ग्लोवर गार्डन जा रहे हैं।
ग्लोवर गार्डन बेहद ही सुंदर और काफ़ी बड़ी जगह है। बहुत से अँग्रेज़ों के घर इस जगह पर है। समीक्षा मुझसे तीन-चार बार बोलती है कि यह जगह बहुत ज़्यादा शिमला जैसी है। मेरे पास एक दोस्त का दिया हुआ पिक्चर पोस्टकार्ड है, जिसमें मॉल रोड की तस्वीर है। मुझे भी लग रहा है कि दोनों जगह एक-सी हैं।
इसका प्रवेश शुल्क छह सौ पचास येन है, लेकिन अंदर आने पर आप महसूस करते हैं कि यह अधिक नहीं है। पूरी जगह घूमने के लिए कम से कम एक घंटे का समय चाहिए। सबसे ऊपर पहुँचकर मैं सारी शाम वहीं बैठी रहना चाहती हूँ। यहाँ से समंदर, पहाड़ और विभिन्न शैलियों में बने हुए घर दिख रहे हैं। हम नीचे उतरने लगते हैं और भिन्न भिन्न पद्धतियों से बने हुए घर एक-एक करके देखते जाते हैं। मैंने यहाँ से कुछ पोस्टकार्ड ख़रीदे हैं।
यहाँ से निकलकर हमने कैस्टेला (एक प्रकार का जापानी स्पंज केक) ख़रीदा। नागासाकी अपने कैस्टेला के लिए मशहूर है। इसके बाद हमें चाइना टाउन खाना खाने जाना था। क्रिस्टा शाकाहारी है। जिस रेस्तराँ में बाक़ी लोग खाना खाने बैठे, वहाँ हमें कुछ मिला नहीं।
गूगल में देखने पर पास ही में एक भारतीय रेस्तरां मुग़ल महल मिल गया। समीक्षा, क्रिस्टा और मैं यहाँ आ गए। क्रिस्टा को खाना पसंद आया। मैंने समीक्षा की ओर देखा और कहा, “हैप्पी छोटी दीवाली।” हम दोनों हँस पड़े।
खाना खाकर हम ट्राम स्टॉप पर पहुँच गए। 06:30 बजे (शाम) हम नागासाकी बस स्टेशन पहुँच गए। हमारी बस 7 बजे से है। हमें लग रहा है कि जैसे हमने यहाँ कई दिन गुज़ार लिए हों। मैं यहाँ एक दिन और रहकर कुछ और जगहें देखना चाहती हूँ, लेकिन इस बार के लिए इतना ही। बस आ गई है, बस चलने लगी है। मेरी आँखें नींद से बंद होने लगी हैं।
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2-3 नवंबर 2019, कासुमी फ़ेस्टिवल
कल कासुमी है। कासुमी फ़ुकुओका जोशी दाईगाकू (फ़ुकुओका वीमेंस यूनिवर्सिटी) का वार्षिकोत्सव है। हम सबको डोरमिट्री के कम्यूनिटी हॉल में मिलकर अपने स्टॉल के लिए बोर्ड बनाने हैं। चेरी गीत का अभ्यास भी करना है। मुझे गाने के ज़्यादातर बोल याद नहीं हैं। हम भारतीय छात्र चाय और वियतनामी छात्र स्प्रिंग रोल का स्टॉल लगाएँगे। ग्यारह देश के अंतरराष्ट्रीय छात्रों ने अपने-अपने देश के व्यंजन सुझाए थे, जिसमें से ये दो चीज़ें चुनी गई हैं। हमें शाम में एक बार चाय बना कर सबको दिखानी है। यह काम करने के लिए आज यूनिवर्सिटी में छुट्टी दी गई है।
अगले दिन हम सुबह 9 बजे किचन में पहुँच गए। चाय का पानी रख दिया। हमारे जापानी दोस्त ज़रूरत का सारा सामान पहले ही ले आएँ हैं। मैं अदरक घिस रही हूँ और इलायची तोड़ रही हूँ। समीक्षा चाय बना रही है। एक बार में हम क़रीब दस कप चाय बना पा रहे हैं। मैं इस काम से ज़रा ख़ाली होती हूँ तो सब्ज़ियाँ काटने में मदद करने लगती हूँ। किचन में कोई ख़ाली नहीं दिख रहा।
हमारे अलावा अन्य छात्र भी अपने-अपने स्टॉल के लिए तैयारियाँ कर रहे हैं। मैं तीन-चार बार की चाय के बाद ऊब होने लगी है। मैं भारत की असंख्य गलियों के नुक्कड़ पर लगने वाली चाय की दुकानों के बारे में सोच रही हूँ। लोग एक ही चीज़ दिन में इतनी बार, और रोज़-रोज़ कैसे कर पाते होंगे? यकीन मानिए सुबह 9 से 6 बजे के बीच, इन नौ घंटों में ही यह ख़याल मुझे डराने लगा था कि अभी कल भी तो चाय बनानी है।
मैं दो-तीन घंटे किचन में बिताने के बाद, स्टॉल पर आ गई हूँ। यहाँ वैसा ही महसूस हो रहा है, जैसे बाल दिवस के मेले पर होता था। मुझे नौ साल की छोटी स्मिति याद आ रही है, जिसे मम्मी से मिले बीस रुपए, नाना से मिले दस रुपए और नानी से पाँच रुपए मिलने के बाद बहुत कुछ ख़रीद पाने के ख़याल से रोमांच हो आता था। हमारे स्टॉल के ठीक सामने ही स्टेज है। वहाँ लगातार कुछ-न-कुछ चल रहा है।
हम लोग कप पर अपनी-अपनी भाषाओं में कुछ लिख रहे हैं। मैंने लिखा है—धन्यवाद और नमस्ते।
मैं ज़रा देर बाद वापस किचन में चली गई। मुझे और समीक्षा में से एक को किचन में रहना ही है। किसी और को चाय बनाने का अनुभव नहीं है। फ़ाराह को मैंने एक-एक करके बताया की क्या करना है, लेकिन किसी कारण से चाय ठीक नहीं बनी। तो मैंने और समीक्षा ने यह निर्णय लिया कि हम ही बारी-बारी से चाय बनाएँगे।
4 बजे के आस-पास मुझे बहुत थकान महसूस होने लगी। शाम के 6 बजते-बजते, मैं बस कमरे में वापस जाना चाहती हूँ। आज क़रीब एक सौ आठ कप चाय बिकी। हम बर्तन धो रहे हैं, और अगले दिन के लिए सब्ज़ियाँ काट रहे हैं।
मैं वापस आकर थोड़ी देर सो जाना चाहती हूँ। सुबह नाश्ते में इंस्टेंट पोहा खाने के बाद भूखे रहने से क्रिस्टा के बनाए हुए पास्ता ने बचा लिया था। वह मुझसे पूछने आई है कि क्या मैंने लंच में कुछ खाया है या नहीं? फिर वह बोली कि मैं तुम्हारे लिए भी पास्ता बना लूँगी। पास्ता बहुत अच्छा था, लेकिन उसे भी ख़त्म किए हुए कुछ पाँच घंटे हो गए हैं। मैं भूखी हूँ, लेकिन खाना बनाने की हिम्मत नहीं हो रही।
बहुत दिनों से व्यस्त होने की वजह से सब्ज़ी वगैरह भी नहीं बची है। थकान इतनी ज़्यादा है कि मैं ठीक से सो भी नहीं पा रही। उठकर फ़्रिज में देखती हूँ। आलू का मसाला बनाकर रखा हुआ है। वह निकाल कर गर्म करती हूँ। आज खाने में आलू पराठा और पहले से बनाई हुई पुदीने की चटनी है। मैं 12 बजने से पहले ही जाना चाहती हूँ। कल सुबह 09:30 बजे जाना है।
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आज सुबह से हल्की-हल्की बारिश हो रही है। एक बार चाय बनाने के बाद चेरी गीत के लिए सबको इकट्ठा होना है। सबको गाने से पहले अपना छोटा-सा परिचय देना है। समीक्षा और मैं स्टेज पर चढ़ते हुए देखते हैं कि हमारी ओकासान और ओतोसान आए हुए हैं (Host Mother and Father)।
वे ख़ूब ख़ुश होकर हमारी तस्वीरें खींच रहे हैं। मुझे ऐसा लग रहा है कि मैं एक छोटी कक्षा की बच्ची हूँ। हम गाने के बाद उनसे मिलने जाते हैं, वे कह रहे हैं कि हमने बहुत अच्छा किया। हम उन्हें स्टॉल पर बुलाकर चाय पीने के लिए कहते हैं। वह उत्सुकता से पूछ रहे हैं कि इसमें क्या-क्या है? हमने उन्हें बताया इसमें—इलायची, अदरक, चाय-पत्ती, दूध और पानी है।
उनका जवाब है—ए, सुगोई (बहुत बढ़िया)।
फिर से चाय बेचने का सिलसिला शुरू हो गया है। आज हम चाय, स्टॉल पर ही बनाएँगे। कल किचन से स्टॉल तक चाय लाने में काफ़ी मुश्किल हो रही थी, लेकिन मुझे थोड़ी चिंता इस बात की थी कि स्टॉल पर तो चाय के लिए एक ही स्टोव था। जिस पर चाय गर्म हो रही थी। अब चाय के लिए दूसरा स्टोव नहीं होगा तो दिक़्क़त होगी।
हमारी किस्मत बढ़िया है, जब हम वहाँ पहुँचे तो हमें दो स्टोव दिखे। जापानी लोगों की एक बहुत अच्छी बात यह है कि वह आगे का सोचकर चलते हैं। उनकी दूरदर्शिता बहुत छोटी चीज़ों का भी ध्यान रखने में और प्लान बना कर काम करने में देखी जा सकती है। स्टॉल पर काम करने में यह सुविधा है कि स्टेज पर बजते गानों पर जब दिल चाहे ख़ुद भी झूमा जा सकता है। लोगों को चाय पीते देखा जा सकता है।
ज़्यादातर चाय समीक्षा ही बना रही है। वह मुझसे बेहतर चाय बनाती है। मुझे चाय कुछ ख़ास पसंद नहीं है। मैं दूसरे काम कर रही हूँ। मसलन बीच-बीच में चाय के पतीले धोना। कप पर डिज़ाइन बनाना। चाय के कप इधर-उधर पकड़ाना। मुझे आज का दिन कल से कम मुश्किल लग रहा है। नुक्क्ड़ पर रोज़-रोज़ चाय बनाना भी शायद ऐसे ही सहनीय हो पाता होगा।
देखते-ही-देखते शाम हो आई है। हम स्टॉल के साथ तस्वीरें खिंचवा रहे हैं। अब यह सब समेटने का समय आ गया है। एक अच्छी, असल में बेहद अच्छी बात बताऊँ, जो नौ साल की स्मिति को भी बहुत अच्छी लगती। यहाँ सब कुछ समेटने के बाद ज़मीन पर फैला हुआ कोई कचरा नहीं है।
दो दिन में कई हज़ार लोग इस जगह आएँ हैं, लेकिन जापानी लोग कचरा यहाँ-वहाँ नहीं फेंकते। मुझे बाल दिवस मेले के बाद हर बार कचरे से पटी हुई ज़मीन याद है। यहाँ ऐसा नहीं है, उत्सव बच्चों का था—तो सफ़ाई की ज़िम्मेदारी भी बच्चों की ही है। यह काम सफ़ाई कर्मचारियों के ज़िम्मे नहीं है।
हम बचा हुआ सामान समेटकर किचन की ओर जा रहे हैं। वहाँ की सफ़ाई और बचा हुआ सामान समेटने के बाद ये दो लंबे दिन ख़त्म हो गए हैं। मैंने लिफ़्ट का बटन दबा दिया है, और सोच रही हूँ आज के खाने में क्या रहेगा?
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