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इस तरह मना ‘हिन्दवी उत्सव’ 2024

हिंदी साहित्य को समर्पित रेख़्ता फ़ाउंडेशन के उपक्रम ‘हिन्दवी’ की चौथी वर्षगाँठ के मौक़े पर—28 जुलाई 2024 के रोज़, त्रिवेणी कला संगम, मंडी हाउस, नई दिल्ली में ‘हिन्दवी उत्सव’ आयोजित हुआ। 

‘हिन्दवी उत्सव’ में तीन सत्रों में कार्यक्रम हुए। कार्यक्रम का शुभारंभ शाम 4 बजे मुख्य अतिथि समादृत साहित्यकार राधावल्लभ त्रिपाठी के वक्तव्य से हुआ।

पहला सत्र शुरू होने से पहले ही ऑडिटोरियम हाउसफ़ुल हो गया। कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुँचे साहित्य-प्रेमियों—जिनमें कई दिल्ली और दिल्ली से बाहर के कॉलेज स्टूडेंट्स भी थे—और हिंदीप्रेमियों की भरपूर उपस्थिति को देखते हुए ऑडिटोरियम के बाहर स्क्रीन के माध्यम से कार्यक्रम लाइव प्रसारित किया गया। 

आयोजन का प्रथम सत्र—‘विमर्श सत्र : जो आदमी हम बना रहे हैं’ था। सत्र में अतिथि-वक्ता—कवि-समाज विज्ञानी बद्री नारायण, लेखक-पत्रकार ओम थानवी, संपादक-पत्रकार मनीषा पांडे (न्यूज़लॉन्ड्री) शामिल हुए। इस विमर्श सत्र का संचालन मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार ने किया।

आयोजन का द्वितीय सत्र—‘विमर्श सत्र : सहना और कहना’ था। सत्र में अतिथि-वक्ता—लेखक हरिराम मीणा, आलोचक सुधा सिंह, कवि-इतिहासकार रमाशंकर सिंह शामिल हुए। इस विमर्श सत्र का संचालन लेखक-पत्रकार अणुशक्ति सिंह ने किया।

आयोजन का अंतिम सत्र—‘कविता-पाठ : कविता-संध्या’ था। हिंदी-प्रेमियों के बीच ख़ासे चर्चित और लोकप्रिय इस सत्र में अतिथि-कवि—कृष्ण कल्पित, निर्मला पुतुल, रामाज्ञा शशिधर, बाबुषा कोहली और पराग पावन शामिल हुए। इस सत्र का संचालन रचित ने किया। 

‘हिन्दवी’ उत्सव की बहुप्रतीक्षित कविता-संध्या में हुए कविता-पाठ को लेकर ‘हिन्दवी’ के सीनियर एडिटर अविनाश मिश्र ने अपनी एक फ़ेसबुक पोस्ट में लिखा : 

बाबुषा कोहली : कविता के लिए पेरिस तक जा चुकी कवि का दिल्ली में दिल्ली से दूर पाठ। पक्की-पोढ़ी कविताएँ—पृथ्वी का पूरा परिचय पाने को बेताब। रहस्यदर्शी। अनुरागदायक। प्रसन्नताकारी। ‘प्रेम की गालियाँ’ ज़िंदाबाद!

पराग पावन : प्रतिभा-प्रदर्शन। शासक को कमज़ोर, हास्यास्पद और नगण्य करती कविताएँ। अभय को उपलब्ध कविता-पाठ। उन्मुक्ततम। हस्तक्षेपयुक्त। साहसिक। नामलेवा। असली हत्यारों के लिए हानिकारक और जानलेवा। ‘बेरोज़गारी-शृंखला’ शानदार। 

रामाज्ञा शशिधर : लोक और बाज़ार। दिल्ली से वाराणसी। माया से मोक्ष। किसान और बुनकर। संवेदनशील। राजनीतिक दोहे। व्यंग्यगर्भित। उच्चारण के वैभव से युक्त संतुलित पाठ। 'छठ का पूआ' मर्मस्पर्शी और मार्मिक कविता।

निर्मला पुतुल : आदिवासी-स्त्री-जीवन में यातना और बाज़ारवाद के खुले-अनखुले सिरे। विमर्शोन्मुख। कविता और वक्तव्य के बीच तनी हुई रस्सी पर प्रगतिशील पाठ—प्रकृति-सा। अत्यंत सीखने-योग्य। 'उतनी दूर मत ब्याहना बाबा!'—न भूलने वाली कविता।

कृष्ण कल्पित : कवि-व्यक्तित्व का प्रसार। लयलीन। राजस्थान। रेत और नदी। प्रबलित और प्रबोधित। तरक़्क़ी की मंज़िल को पहुँचे हुए दोहे। अर्थाभाएँ। अतृप्त पाठ। प्रचलन से प्रस्थान। 'राजा रानी प्रजा मंत्री...' ग़ज़ब का गीत।

रचित : अतिउपस्थिति के बीच—सुसंयमित, सुशील, सुव्यवस्थित, सुनियोजित, समझदार—संचालन।”

इस आयोजन को लेकर एक पाठक रवि कुमार ने दर्ज किया—“छुट्टी के दिन की शाम हो और ऑडिटोरियम साहित्यप्रेमियों से खचाखच भरा हो। साहित्य-प्रेमी सीढ़ियों पर और गैलरी में भी बैठे हों, कुछ थोड़ी-सी देरी की वजह से ही सभागार के अंदर नहीं जा पाने को लेकर दुखी हों, लेकिन ऑडिटोरियम के बाहर स्क्रीन पर भी सत्रों को लाइव देख-सुनकर ख़ुश हो रहे हों। हिंदी को लेकर ऐसा प्रेम और ऐसे दृश्य सुख देते हैं।”

‘हिन्दवी उत्सव’ के चौथे संस्करण को सफल बनाने के लिए ‘हिन्दवी टीम’ आयोजन में शामिल हुए अतिथियों, ‘हिन्दवी’ से जुड़े पाठकों और हिंदी-साहित्य-संसार के सभी साहित्यप्रेमियों-शुभचिंतकों के प्रति आभार व्यक्त करती है।

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