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प्रकृति पर बेला

प्रकृति-चित्रण काव्य

की मूल प्रवृत्तियों में से एक रही है। काव्य में आलंबन, उद्दीपन, उपमान, पृष्ठभूमि, प्रतीक, अलंकार, उपदेश, दूती, बिंब-प्रतिबिंब, मानवीकरण, रहस्य, मानवीय भावनाओं का आरोपण आदि कई प्रकार से प्रकृति-वर्णन सजीव होता रहा है। इस चयन में प्रस्तुत है—प्रकृति विषयक कविताओं का एक विशिष्ट संकलन।

07 दिसम्बर 2024

सौंदर्य की नदी नर्मदा : नर्मदा के वनवास से अज्ञातवास की पूरी कहानी

सौंदर्य की नदी नर्मदा : नर्मदा के वनवास से अज्ञातवास की पूरी कहानी

“सौंदर्य उसका, भूल-चूक मेरी!” शुरुआती पन्नों में ही यह पंक्ति लिखकर लेखक अपनी मंशा बिल्कुल साफ़ कर देते हैं। सारे ग्रह से लेकर परमाणु तक सब अपनी-अपनी कक्षा में परिक्रमा कर रहे हैं और इसी तरह प्रत्येक

28 नवम्बर 2024

'गंध ही के भारन बहत मंद-मंद पौन...'

'गंध ही के भारन बहत मंद-मंद पौन...'

वसंत इस कामकाजी शहर का मूड नहीं है। संभवतः जनवरी के बाद ही गर्मियों की तैयारी में यह शहर फ़रवरी के मूड को स्किप कर देता है। इस बीच वसंत का आना भी महज़ हवा में कपूर की तरह ही होता है। उदास बयार की छुअन

24 जुलाई 2024

शिमला डायरी : काई इस शहर की सबसे आदिम पहचान है

शिमला डायरी : काई इस शहर की सबसे आदिम पहचान है

10 जुलाई 2024 सुशील जी का घर, मुखर्जी नगर। नेताजी एक्सप्रेस लेट है। उनके साथ खाना खाता हूँ। वह टिफ़िन बाँध देते हैं। पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उमस। स्लीपर में बीच वाली सीट। ले गर्मी, दे गर्मी।