विहान की अलवर-यात्रा : जीवंत रंग प्रस्तुतियाँ
सौरभ अनंत
13 फरवरी 2025
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विहान ड्रामा वर्क्स की अलवर यात्रा पर लिखना सिर्फ़ एक यात्रा के बारे में लिखना नहीं, बल्कि विहान की एक महत्त्वपूर्ण और ऐतिहासिक उपलब्धि को रेखांकित करना है। जिसे लिखे बिना उसकी संपूर्णता दर्ज करना संभव नहीं। रंगमंच, जो समाज की धड़कन को अपने भीतर समेटे हुए चलता है, आज भी अपने अस्तित्व और विस्तार के लिए संघर्षरत है। राष्ट्रीय स्तर पर इस पर लिखने वाले समीक्षक प्रायः महानगरीय रंगमंच को ही देखने-समझने में व्यस्त रहते हैं। संभवतः कारण यह हो सकता है कि महत्त्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाएँ उनके अपने शहरों में, अपने संस्थानों में ही प्रकाशित हो रही हैं। जबकि भीतरी शहरों और क़स्बों में एक समानांतर रंगमंच दृढ़ता से खड़ा है और अपनी जड़ें गहरी करता जा रहा है। ये रंगमंच न केवल कलात्मक रूप से सशक्त है, बल्कि समाज के भीतर विचार, संवाद और संवेदना के नए सेतु बना रहा है।
विहान की 12 दिवसीय अलवर यात्रा इसी सच की गवाही देती है। यह यात्रा केवल एक थिएटर फ़ेस्टिवल में भाग लेने की बात तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह रंगमंच के प्रति समर्पण, निरंतरता और सृजनशीलता का जीवंत प्रमाण भी रही। यह एक युवा थिएटर समूह का ऐसा साहसिक क़दम है जिसने यह दिखाया कि समर्पण, कला और अनुशासन के साथ कैसे एक रंगमंडली लगातार उच्च कोटी का रंगकर्म कर सकती है, तथा भविष्य के लिए संभावनाएँ पैदा करती है। ‘अलवर रंगम’ महोत्सव में विहान ने 27 रंगकर्मियों की टीम के साथ अपने छह अलग-अलग नाटकों की 11 प्रस्तुतियाँ दीं। यह उपलब्धि न केवल चकित करने वाली है, बल्कि भारतीय रंगमंच में युवाओं के लिए एक प्रेरणादायक मिसाल भी है।
अलवर रंगम सिर्फ़ एक थिएटर फेस्टिवल नहीं, बल्कि 100 दिनों तक चलने वाला एक ऐतिहासिक सांस्कृतिक आंदोलन है—संभवतः दुनिया का सबसे लंबा थिएटर महोत्सव। ये मंच रंगमंच को सीमाओं से परे ले जाकर हर दिन नए नाटक, नए विचार और नई अभिव्यक्तियों को जीवंत करता है। इस अद्वितीय पहल के लिए देशराज मीणा प्रशंसा के पात्र हैं, जिन्होंने अपने अथक प्रयास से इसे संभव बनाया। ऐसे समय में जब थिएटर के लिए निरंतरता बनाए रखना चुनौतीपूर्ण है, अलवर रंगम रंगमंच के प्रति समर्पण और जीवंतता का एक प्रेरणादायक उदाहरण है।
रंगमंच की दुनिया में किसी युवा समूह के लिए विहान की अलवर रंगम यात्रा एक दुर्लभ दृश्य की तरह रही, एक ही रंगमंडली द्वारा छह भिन्न नाटकों का मंचन, जहाँ हर नाटक की शैली, विषयवस्तु और प्रस्तुति की भंगिमा अलग हो। विहान की इन प्रस्तुतियों में केवल अभिनय नहीं, बल्कि विचार, संवेदना और एक नई रंगभाषा की तलाश स्पष्ट रूप से झलकती है। विहान की ये यात्रा दिखाती है कि भारतीय रंगमंच में एक नई लहर जन्म ले रही है, जो न केवल अपने कौशल में परिपक्व है, बल्कि समाज से भी गहराई से जुड़ी हुई है।
इस यात्रा की विशेषता केवल प्रस्तुतियों की संख्या या विविधता में ही नहीं आँकी जा सकती, बल्कि इसमें संलग्न पूरी रंग प्रक्रिया का अवलोकन बहुत ज़रूरी है। हेमंत देवलेकर के गीत-संगीत विहान के नाटकों को एक अलग ऊँचाई देते हैं, जहाँ हर धुन और हर स्वर मंच पर जीवंत चरित्रों का विस्तार बनकर एक कविता की तरह उभरता है। श्वेता केतकर की कला परिकल्पना और सौंदर्यबोध नाटकों को एक अनूठी दृश्यात्मक पहचान देते हैं, जिससे हर दृश्य अपने आप में एक चित्र की तरह खुलता चला जाता है।
निर्देशन मेरे लिए केवल मंच पर घटनाओं को व्यवस्थित करने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि विचार और कला के संलयन की एक अनवरत खोज है। ये एक ऐसी यात्रा है, जहाँ हर दृश्य, हर संवाद, और हर अभिनय क्षण एक गहरे मंतव्य से जन्म लेता है—विचार की तीव्रता और कला की संवेदनशीलता के बीच संतुलन स्थापित करने के प्रयास के मंतव्य से।
इन छह नाटकों के एक के बाद एक 11 मंचनों के दौरान, मैं इस प्रयोग के प्रभाव को प्रत्यक्ष रूप से देख और समझ सका। प्रत्येक मंचन एक नई परत खोलता गया, जहाँ दर्शकों की प्रतिक्रियाएँ केवल सराहना तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि उनके भीतर किसी गहरे भावनात्मक या बौद्धिक आंदोलन को जन्म देती दिखीं। कभी एक चुप्पी में समाहित विस्मय, कभी किसी अनायास छलक आए आँसू में छिपी अनुभूति, तो कभी चर्चाओं में उठते प्रश्न—ये सब संकेत थे कि विचार और कला का ये मिलन केवल मंच तक सीमित नहीं रहा, बल्कि दर्शकों के भीतर कहीं गहरे जाकर प्रतिध्वनित हुआ।
इस प्रक्रिया में मैंने ये और गहरे समझा कि निर्देशन मात्र तकनीकी नियंत्रण नहीं, बल्कि एक सतत संवाद है—दर्शकों के मनोभावों से, उनके अनुभवों से, और उन विचारों से, जो वे अपने भीतर लेकर आते हैं और नाटक देखने के बाद अपने साथ ले जाते हैं। ये संवाद कभी स्पष्ट होता है, कभी मौन में चलता है, और कभी समय के साथ धीरे-धीरे आकार लेता है। इस जुगलबंदी का सबसे रोचक पहलू ये है कि ये न केवल दर्शकों को प्रभावित करती है, बल्कि स्वयं निर्देशक को भी निरंतर पुनर्परिभाषित करने के लिए प्रेरित करती है—क्योंकि जब विचार और कला एक-दूसरे से टकराते हैं, तो केवल मंच पर नहीं, बल्कि मन और चेतना के गहरे स्तरों पर भी हलचल मचती है।
साथ ही नाटकों में शामिल युवा अभिनेताओं तथा रंगकर्मियों के लिए ये एक गहन प्रशिक्षण और अनूठे प्रयोग का अवसर था। 11 मंचनों को एक साथ तैयार करने की इस चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया ने अभिनय, मंचीय अनुशासन, संगीत, दृश्य संरचना और संवाद की समझ को एक कार्यशाला की तरह जीवंत बना दिया। ये मात्र रिहर्सल नहीं थी, बल्कि एक ऐसी यात्रा थी, जहाँ कलाकारों ने केवल अपने पात्रों को नहीं, बल्कि स्वयं को भी गहराई से खोजा और गढ़ा।
हर दिन एक नई ऊर्जा, हर प्रस्तुति एक नया अनुभव, और हर संवाद एक नई परत खोलता गया। निरंतर अभ्यास और प्रयोग ने उन्हें रंगमंच की तकनीकी और भावनात्मक जटिलताओं से रूबरू कराया कि कैसे एक ही दृश्य को अलग-अलग तरीक़ों से जिया जा सकता है, कैसे मंच पर सहजता और प्रभावशीलता के बीच संतुलन बनाया जाता है, और कैसे हर प्रदर्शन दर्शकों के साथ एक नया रिश्ता स्थापित करता है।
युवा कलाकारों के लिए ये केवल एक नाट्य प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक अविस्मरणीय सीख थी—एक ऐसा अनुभव जो किताबों, स्कूल या सीमित कार्यशालाओं से परे था। निर्देशन मेरे लिए हमेशा केवल परिणाम तक पहुंचने का माध्यम नहीं रहा, बल्कि उस प्रक्रिया को गहराई से जीने और कलाकारों को एक संपूर्ण रंगकर्मी के रूप में विकसित करने का एक ज़रिया रहा है। इस तरह का काम युवाओं के साथ इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि ये उन्हें सिर्फ़ मंच पर नहीं, बल्कि जीवन में भी आत्म-अन्वेषण और सृजनशीलता के लिए तैयार करता है।
इसीलिए विहान इस तरह के प्रयास केवल एक महोत्सव में भागीदारी करने अथवा प्रस्तुति देने मात्र के लिए नहीं करता बल्कि वो इन अथक प्रयासों से हमेशा ही भारतीय रंगमंच के युवा एवं समर्पित रंगकर्मियों के लिए एक उदाहरण बनने का प्रयास करता है। मैं चाहता हूँ कि रंगमंच में इस समय रंगकर्म में प्रवेश कर रहा युवा अपनी ये समझ बना सके कि रंगमंच केवल मंच पर कुछ घंटों की प्रस्तुति भर नहीं है, यह एक लंबी यात्रा है, जहाँ हर दिन एक नई चुनौती होती है, हर प्रस्तुति एक नया परीक्षण होती है और हर अभिनेता केवल अपने अभिनय का नहीं, बल्कि अपने समूचे व्यक्तित्व का निर्माण कर रहा होता है।
यह यात्रा इसलिए भी महत्त्वपूर्ण रही क्योंकि यह वर्तमान समय में रंगमंच की संरचनात्मक चुनौतियों को चुनौती दे रही थी। जहाँ रंगमंच से जुड़े संसाधन कम हो रहे हैं, जहाँ थिएटर ग्रुप्स को छोटी टीमों के साथ काम करना पड़ रहा है, वहाँ विहान का पूरे लाइव संगीत के साथ प्रस्तुतियाँ देना हमेशा ही एक साहसिक क़दम की तरह देखा जाता है। यह दिखाता है कि सही सोच, सही दृष्टि और प्रतिबद्धता के साथ किस तरह रंगमंच को उसकी पूरी गरिमा में जिया और प्रस्तुत किया जा सकता है।
आज से कई वर्ष पहले जब राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की पत्रिका ‘रंग प्रसंग’ में वरिष्ठ कला समीक्षक अजीत राय सर ने लिखा था कि “विहान देश के युवाओं के लिए एक आदर्श बन रहा है” तब शायद यह केवल एक संभावित भविष्य का संकेत था। लेकिन अलवर की यह यात्रा इस भविष्य की पुष्टि थी। विहान न केवल एक थिएटर ग्रुप है, बल्कि एक विचारधारा है, एक प्रवाह है, जो कला और समाज के बीच पुल बना रहा है। यह यात्रा इस बात की मिसाल रहेगी कि जब रंगमंच केवल प्रदर्शन नहीं, बल्कि एक आंदोलन बन जाता है, तो वो इतिहास रचता है।
अलवर में प्रस्तुत इन नाटकों में जो विचार, जो संवेदना, जो ऊर्जा शामिल थी, वह इस बात का प्रमाण थी कि रंगमंच केवल मनोरंजन नहीं है। यह समाज को उसके भीतर छिपी संभावनाओं से परिचित कराने का माध्यम है। यह चेतना और संवाद का वह सेतु है, जिस पर चलकर एक समाज स्वयं को देख सकता है, समझ सकता है और अपने भविष्य की दिशा तय कर सकता है।
विहान की यह यात्रा केवल 12 दिनों की यात्रा नहीं थी, यह भारतीय रंगमंच की उस लहर का हिस्सा थी, जो एक नई दृष्टि, नए विचार और नए समर्पण के साथ आकार ले रही है। यह यात्रा एक दस्तावेज़ है, जिसे लिखना और पढ़ना ज़रूरी है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ जान सकें कि भारतीय रंगमंच केवल महानगरों तक सीमित नहीं था, बल्कि उसकी असली धड़कन उन रंगमंडलियों में थी, जो भीतरी शहरों और क़स्बों में बिना किसी बड़े संसाधन के, केवल अपने जुनून और समर्पण के बल पर रंगमंच को जीवंत बनाए हुए थीं।
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