Font by Mehr Nastaliq Web

दर्द पर बेला

‘आह से उपजा होगा गान’

की कविता-कल्पना में दर्द, पीड़ा, व्यथा या वेदना को मानव जीवन के मूल राग और काव्य के मूल प्रेरणा-स्रोत के रूप में स्वीकार किया जाता है। दर्द के मूल भाव और इसके कारण के प्रसंगों की काव्य में हमेशा से अभिव्यक्ति होती रही है। प्रस्तुत चयन में दर्द विषयक कविताओं का संकलन किया गया है।

06 नवम्बर 2024

शारदा सिन्हा : ‘हमरा के कहाँ छोड़ले जाइछी रे गवनवा...’

शारदा सिन्हा : ‘हमरा के कहाँ छोड़ले जाइछी रे गवनवा...’

‘अपने त जाय छी प्रभु देस रे बिदेसवा से, हमरा के...’  पर कहाँ जा पाएँगी इस देस से? काश ‘घोड़ा के लगमवा’ थाम के रोका जा सकता। काश ‘सँईया कलकतवा से’ आ सकते। किसे कहेंगे इस महादेस के मन की आवाज़ अब; ठीक

13 अगस्त 2024

स्वाधीनता के इतने वर्ष बाद भी स्त्रियों की स्वाधीनता कहाँ है?

स्वाधीनता के इतने वर्ष बाद भी स्त्रियों की स्वाधीनता कहाँ है?

रात का एक अलग सौंदर्य होता है! एक अलग पहचान! रात में कविता बरसती है। रात की सुंदरता को जिसने कभी उपलब्ध नहीं किया, वह कभी कवि-कलाकार नहीं बन सकता—मेरे एक दोस्त ने मुझसे यह कहा था। उन्होंने मेरी तरफ़

06 अगस्त 2024

मुझे यक़ीन है कि अब वह कभी लौटकर नहीं आएँगे

मुझे यक़ीन है कि अब वह कभी लौटकर नहीं आएँगे

तड़के तीन से साढ़े तीन बजे के बीच वह मेरे कमरे पर दस्तक देते, जिसमें भीतर से सिटकनी लगी होती थी। वह मेरा नाम पुकारते, बल्कि फुसफुसाते। कुछ देर तक मैं ऐसे दिखावा करता, मानो मुझे कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा हो

06 अगस्त 2024

संवेदना न बची,  इच्छा न बची, तो मनुष्य बचकर क्या करेगा?

संवेदना न बची, इच्छा न बची, तो मनुष्य बचकर क्या करेगा?

24 जुलाई 2024 भतृहरि ने भी क्या ख़ूब कहा है— सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ति।।  अर्थात् : जिसके पास धन है, वही गुणी है; या यह भी कि सभी गुणों के लिए धन का ही आसरा है।  बताइए, क्या यह आज भी सच

18 जुलाई 2024

एक कोरोजीवी का ख़ुद को ख़त

एक कोरोजीवी का ख़ुद को ख़त

प्रिय ‘मैं’ घड़ी के अश्रांत पाँव मुझे हमेशा रोचक लगे हैं। उनके आगे चलते जाने की प्रतिबद्धता मुझे हैरत और हिम्मत से सराबोर करती है। तुम्हें पता है कि मेरी हमेशा से यह अकारथ इच्छा रही है—जो कि संभवतः

10 जुलाई 2024

आजकल लोग पैदा नहीं होते अवतरित होते हैं

आजकल लोग पैदा नहीं होते अवतरित होते हैं

सोचता हूँ कुछ लिखूँ पर लिखने के उत्साह पर अवसाद भारी है। ~ भाषा का बुनियादी ताना-बाना शब्दों से कहीं अधिक प्रयोगों से निर्मित होता है। आजकल लोग पैदा नहीं होते अवतरित होते हैं। वाक्यों में दो क्

26 जून 2024

विरह राग में चंद बेतरतीब वाक्य

विरह राग में चंद बेतरतीब वाक्य

महोदया ‘श’ के लिए  एक ‘स्त्री दुःख है।’ मैंने हिंदी समाज में गीत चतुर्वेदी और आशीष मिश्र की लोकप्रिय की गई पतली-सुतली सिगरेट जलाते हुए एक सुंदर फ़ेमिनिस्ट से कहा और फिर डर कर वाक्य बदल दिया—

20 जून 2024

वासना सौंदर्य को देखने की इच्छा है

वासना सौंदर्य को देखने की इच्छा है

‘वासना’ इच्छाओं का संतुलित नाम अर्थों के कई संदर्भों में समाहित है। सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जाओं की संगीन गुफ़्तगू अपने विस्तारित क्षेत्र में जो कुछ कहती है, उसका सहजता से निर्मित एक वैचारिक आलोक जि

11 जून 2024

सबसे सुंदर होते हैं वे चुम्बन जो देह से आत्मा तक का सफ़र करते हैं

सबसे सुंदर होते हैं वे चुम्बन जो देह से आत्मा तक का सफ़र करते हैं

अंतिम यात्रा लौट आने के लिए नहीं होती। जाने क्या है उस नगर जो जाने वाला आता ही नहीं! (आना चाहता है या नहीं?) सब जानते हुए भी—उसको गए काफ़ी वक़्त गुज़रा पर— उसकी चीज़ें जहाँ थीं, वहाँ से अब तक नहीं

23 मई 2024

बुद्ध की बुद्ध होने की यात्रा को कैसे अनुभव करें?

बुद्ध की बुद्ध होने की यात्रा को कैसे अनुभव करें?

“हम तुम्हें न्योत रहे हैं  बुद्ध, हमारे आँगन आ सकोगे…” गौतम बुद्ध को थोड़ा और जानने की एक इच्छा हमेशा रहती है। यह इच्छा तब और पुष्ट होती है, जब असमानता और अन्याय आस-पास दिखता और हम या हमारे लोग उ

जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

टिकट ख़रीदिए