मुझे यूट्यूबर नहीं बनना, पर एक यूट्यूब-चैनल बनाया है : AmoebAI
दर्पण साह
20 अगस्त 2025

जिस वक़्त मुझे सबसे ज़्यादा जॉब सिक्योरिटी की ज़रूरत थी, सबसे ज़्यादा फ़ाइनेंशियल सिक्योरिटी की ज़रूरत थी, उस वक़्त मैंने सबसे ज़्यादा बचकाना काम किया। मैंने जॉब छोड़ दी, पर क्यों? और यह बात मैं आप लोगों के साथ शेयर क्यों कर रहा हूँ, मेरी इस स्टोरी में आपके लिए क्या है? चलिए शुरू से शुरू करते हैं।
दो चीज़ें
हिंदी कंटेंट में क्रिएटिव काम बहुत कम हो रहा है, ख़ासतौर पर नॉन-फ़िक्शन में। वही ब्रेन-रॉट कंटेंट, वही जाँचे-परखे फ़ॉर्मूले, वही पॉडकास्ट, वही ट्रेंड हाईजैकिंग, वही एंकर लिंक प्रोग्राम, वही बी रोल्स, वही हुक और वही इंट्रो। मैं यह नहीं कह रहा क्रिएटिव काम बिल्कुल भी नहीं हो रहा, मैं कह रहा बहुत कम हो रहा और टू बी ऑनेस्ट (TBH) मुझे इससे न कोई दिक़्क़त होनी चाहिए, न है। भाई देखे जिसने जो देखना है और दिखाए, जिसने जो दिखाना है। लेकिन यह मेरी निजी दिक़्क़त तब बन जाती है, जब ‘एक नियमित आय के स्रोत’ की ख़ातिर, मुझे भी यही काम करना पड़ रहा हो और लगातार बिना रुके क़रीब एक दशक से। डे इन डे आउट। सेम हसल।
तो जब मैं कहता हूँ कि ‘बहुत कम’ क्रिएटिव काम हो रहा तो मेरा मतलब यही है कि जहाँ ऐसा क्रिएटिव काम हो रहा, वहाँ मैंने काम नहीं किया। और जहाँ नहीं हो रहा और मैंने काम किया, वहाँ की दिक़्क़त मैंने आपको बता ही दी। एक तीसरी जगह भी थी। अपने बीस साल के करियर के दौरान कुछ ऐसे संस्थान भी थे, जो क्रिएटिव थे और मैं वहाँ काम भी कर रहा था; लेकिन फिर ठीक जहाँ पर सफलता मिलती है, वहाँ पर इनोवेशन रुक जाते हैं। यही डिफ़ेंस मैकेनिज़्म है कॉर्पोरेट का।
“आप जॉब करते हुए भी क्रिएटिव काम कर सकते हैं। पर्सनल स्तर पर, छोटा-मोटा ही सही।” बात यह भी ग़लत नहीं है, लेकिन मेरे लिए लीगली और माइंड स्पेस वाइज़ यह पॉसिबल नहीं हो पा रहा था और छोटा-मोटा काम तो मैं एनीवे कर ही रहा था। कविता, लेख, व्यंग्य, पैरोडी, वनलाइनर; लेकिन मन था कि डिसरप्शन लाया जाए, कंटेंट की दुनिया में। कोशिश तो की जाए कम-अज-कम। बताया जाए, औरों से ज़्यादा ख़ुद को कि कम्फ़र्ट-ज़ोन में रहना, डोडो की तरह मुंडी ज़मीन में धँसा देना, अच्छा तो है, सस्टेनेबल भी, लेकिन वो वाइब नहीं है। ख़ासकर जब यू ऑनली लिव वन्स। इससे ही जन्मा AmoebAI का आइडिया। जहाँ—कहानियाँ वही हैं, कहने का अंदाज़ बदल गया है : ‘ड्रीम ऑन बेबी’ नाम की सीरीज़/IP इसी चीज़ का उदाहरण है, जिसका पहला एपिसोड अभी यू-ट्यूब पर स्ट्रीम हो रहा है। ‘15 अगस्त, 2050’ नाम के इस 45 मिनट के एपिसोड में हमने (अब यहाँ से मैं के बदले हम पर शिफ़्ट हो गई बात, क्योंकि इस सबमें लाइकवाइज़ सोचनेवालों की पूरी टीम शामिल है) कोशिश की है कि भारत वर्तमान में जिन दिक़्क़तों से जूझ रहा है उसकी बात तो करें; लेकिन किसी बोरिंग, दूरदर्शन के नब्बे के दशक की, डॉक्यूमेंट्री वाले फ़ॉर्मेट में नहीं, टिपिकल नेटफ़्लिक्स के ‘ब्लैक मिरर’ वाले फ़ॉर्मेट में। वीडियो भविष्य का भारत दिखाता है, लेकिन डेटा बैक्ड। गोया अभी के न्यूज़ आर्टिकल्स एक स्टिम्यलस (Stimulus) में डालकर उसे 25 वर्ष फ़ास्ट फ़ॉरवर्ड कर दिया हो।
बातें वही हैं, फ़ॉर्मेट नया : ‘पोल्स अपार्ट’ नाम की IP के हर एपिसोड में हम दो बिल्कुल अलग-अलग क्षेत्र के लोगों (कोई भी इनमें से सेलिब्रिटी नहीं होगा) को एक ही मंच पर लाने वाले हैं, ताकि जब वे एक-दूसरे को और एक-दूसरे के काम को समझें तो उनकी बातचीत के माध्यम से दर्शकों के भी कई प्रज्यूडिस टूटें।
दर्शन वही है, बस दर्शक नए : ज़ेन ज़ी के लिए ‘PhiloZophy’ का कॉन्सेप्ट हम डेवलप कर रहे हैं, जिसमें हमने दर्शन की बारीकियों को टिपिकल जेन ज़ी स्टाइल में समझाएँगे। ‘PhiloZophy’ का फ़ॉर्मेट पूरी तरह पोस्ट-मॉडर्न और मेटा-पोस्टमॉडर्न है।
कोर्स वही है, टीचर बदल दिया गया है : ‘PadhAI’ में आपको हमारी टीचर, क्वांटम स्टेट समझाएगी, अपना FB स्टेटस अपडेट करने के दौरान और जब हमारा एक दूसरा टीचर टैरिफ़-वॉर की बात कर रहा होगा, तो उसकी सब्ज़ी वाले के साथ फ़्री धनिया को लेकर एक अलग ही बहस चल रही होगी।
और ऐसे ही कई नए-नए कॉन्सेप्ट सोचे हुए हैं, लेकिन बात वही है—होहईं वही जो ‘कैपिटल’ रखी राचा! (तो यहाँ पर यह बात भी इंटीग्रेट कर दी जाए कि अगर आपको आइडिया में दम लग रहा है, और छोटा-मोटा इन्वेस्टमेंट करना चाहते हैं, तो मेरा DM खुला है, एंड आई प्रॉमिस कि कोई स्क्रीनशॉट कभी शेयर नहीं होगा। आई मीन मेरी तरफ़ से नहीं होगा, आपकी गारंटी मैं कैसे ले सकता? ऑल्सो अग्रिम धन्यवाद भी रहेगा।)
नवाचार (AI आदि) को संस्थान या तो एडॉप्ट नहीं कर रहे और अगर कर भी रहे हैं तो बहुत कॉस्मेटिक स्तर पर। वन इमेज हियर, वन ‘AI जनरेटेड एंकर’ दियर, हो गई खानापूर्ति। मतलब नवाचार एक्स-रे या गामा-रे नहीं बन पाया, जो पारंपरिक हिंदी-संस्थानों के सीधे DNA में बदलाव कर दे। अगेन, इससे मुझे कोई दिक़्क़त नहीं होनी चाहिए और है भी नहीं। लेकिन यह दिक़्क़त मेरी निजी तब बन जाती है, जब मैंने डिजिटल ट्रांसफ़ॉर्मेशन का डेढ़ लाख का कोर्स किया हो और उसका उपयोग कहीं हो ही न रहा हो, जब मैंने AI का पोटेंशियल न केवल देख लिया हो; बल्कि उसे टेम करना भी आ गया हो और यक़ीन कीजिए, इसे टेम करने में टेम लगता है और जिस भी चीज़ में टाइम लगता है, जिस भी चीज़ का लर्निंग कर्व दिक़्क़त भरा होता है, उसे सीखते हुए आपने ख़ुश हो जाना चाहिए; क्योंकि तब आप, जैसा इन्वेस्टर्स कहते हैं, एक ‘मोट’ तैयार कर रहे होते हैं। और इसलिए ही आज मैं पूरी मॉडेस्टी के साथ कह रहा हूँ कि ‘15 अगस्त, 2050’, नाम की वीडियो में जो काम मेरी टीम AI को अपने वर्कफ़्लो में इंटीग्रेट करके निकाल पाई (जैसे : करैक्टर कंसिस्टेंसी, गीत, लिरिक्स, एडिटिंग, रिसर्च, कॉन्सेप्ट आदि) और जितना सीमलेसली निकाल पाई, हिंदी कंटेंट में ऐसा आपको बहुत कम देखने को मिलेगा, ख़ासतौर पर नॉन-फ़िक्शन में। (अगेन, दिखेगा, मगर कम) और हमें उम्मीद है कि आगे हम इसे और ज़्यादा रिफ़ाइन कर पाएँगे क्योंकि चाहे आप AI को लव करें या हेट करें आप इसे इग्नोर नहीं कर सकते और अनुरोध है मत कीजिए—ऑब्सलीट होने में, समय नहीं लगता... और जब आपका मुकेश खन्ना या गोविंदा हो जाना दृश्य हो जाए तो बड़ा दुःख होता है।
जॉब छोड़कर ऐसा नहीं है कि मुझे अपनी मर्ज़ी का मालिक बनना है। मैं समझता हूँ कि कलर्स नहीं पैलेट का और सरगम नहीं रागों का यूज़ होता है, तब जाकर आर्ट पैदा होता है। मतलब रिस्ट्रिकशंस हर जगह होंगी और मुझे वह पसंद भी हैं, लेकिन वो बाय डिजायन न हो। यह न हो कि पेटिंग बना ही नहीं सकते, म्यूज़िक कंपोज़ कर ही नहीं सकते। बेशक, यह चलेगा, इनफ़ैक्ट अच्छी बात है कि आपको सिर्फ़ विन्सेंट की तरह पीला कलर ही यूज़ करना है या इस गीत को एरेबिक फ़ील देने के लिए इसे अहीर भैरवी में ही कंपोज़ करना है—डेट्स मैनेजेबल।
दो चीज़ें क्लियर हैं
मुझे यू-ट्यूबर नहीं बनना है; हालाँकि मुझे इन्वेस्टमेंट की पुरज़ोर ज़रूरत है, लेकिन उनसे ही लूँगा जिन्हें रिटर्न्स की जल्दी न हो। अच्छी चीज़ों को बनने में; नए परिदों की तरह ही, वक़्त तो लगता है।
मेरे पास न फ़ेसेज़ हैं, फ़ेमस, न ही पैसे या इन्वेस्टमेंट, न ही किसी पारंपरिक संस्थान की हैंड-होल्डिंग। तो कोई आश्चर्य नहीं कि यह लॉन्ग टर्म सस्टेन न हो पाए, लेकिन यह ज़रूर है कि जब तक रहेगा, यूनिक रहेगा। वह जैसे FB कहता था न ‘It’s free and always will be’, वैसे ही मैं AmoebAI के लिए वाउच कर सकता हूँ कि ‘It’s creative and always will be’
अब सवाल यह है कि इस पूरी स्टोरी में आपके लिए क्या लीर्निंग्स हैं? मतलब ‘पंचतंत्र’ की कहानियों की तरह इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
कम्फ़र्ट-ज़ोन को लात मारो : कभी-कभी सबसे ‘बचकाना’ लगने वाला फ़ैसला, यानी अपनी जॉब-सिक्योरिटी को दाँव पर लगाना, आपके असली विज़न के लिए सबसे ज़रूरी और समझदारी भरा क़दम साबित हो सकता है। (हालाँकि यह अभी से कहना ‘टू अर्ली टू कमेंट’ वाली कैटेगरी में आएगा, लेकिन आपको थोडा विज़नरी तो होना ही होता है, एंड ऑफ़ कोर्स थोडा ऑप्टमिस्टिक भी।)
सफलता को ट्रैप मत बनने दो : जो फ़ॉर्मूला आपको हिट बनाता है, अक्सर वही आपके इनोवेशन को रोक देता है। इस ‘कॉर्पोरेट डिफ़ेंस मैकेनिज्म’ को पहचानना ज़रूरी है, वरना आप भी उसी भीड़ का हिस्सा बन जाएँगे, जिससे आपको अतीत में खीज हुआ करती थी।
AI सिर्फ़ खानापूर्ति नहीं है : AI को सिर्फ़ कॉस्मेटिक लेवल पर अपनाना धोखा है। इनफ़ैक्ट किसी भी नई टेक्नोलॉजी को फ़ॉर दैट मैटर। जब तक आप इसे अपने वर्क-फ़्लो के DNA में नहीं उतारते और एक ‘मोट’ (Moat) तैयार नहीं करते, आप बस ट्रेंड को फ़ॉलो कर रहे हैं, लीड नहीं।
डिसरप्शन के लिए फ़ुल-टाइम हसल चाहिए : अगर आप इंडस्ट्री में सच में कुछ ‘डिसरप्ट’ करना चाहते हैं, तो यह काम वीकेंड पर नहीं हो सकता। इसके लिए पूरा माइंड-स्पेस और फ़ुल-टाइम हसल लगता है, भले ही शुरुआत में यह फ़ाइनेंशियली सुसाइडल लगे।
अंदाज़-ए-बयाँ बदलो : कहानियाँ वही हैं, कहने का अंदाज़ बदलो। बातें वही हैं, फ़ॉर्मेट नया लाओ। दर्शन वही है, बस दर्शक नए खोजो। कंटेंट की दुनिया में असली खेल यही है।
रिस्ट्रिक्शंस बुरी नहीं होतीं : क्रिएटिविटी का मतलब ‘नो रूल्स’ नहीं है। असली आर्ट सही रिस्ट्रिक्शंस चुनने में है।
ऑब्सलीट होने में टाइम नहीं लगता : अगर आप वक़्त रहते ख़ुद को अपग्रेड नहीं करते, तो आपका नीत्शे का गॉड ही मालिक है। IYKYK.
‘ब्रेन-रॉट’ कंटेंट एक मौक़ा है : अगर आपके चारों ओर घिसे-पिटे फ़ॉर्मूले और ‘ब्रेन-रॉट’ कंटेंट है, तो फ़्रस्ट्रेट मत होइए। यही आपके लिए कुछ यूनिक और क्रिएटिव करने का सबसे बड़ा मौक़ा है, क्योंकि पूरा मैदान ख़ाली है। (पढ़िए ब्लू ओशीन-रेड ओशीन वाला मैनेजमेंट का कॉन्सेप्ट...)
रिटर्न्स की जल्दी वालों से दूर रहें : अच्छी चीज़ों को बनने में वक़्त लगता है, इसलिए ऐसे इन्वेस्टर्स चुनें; जिन्हें आपके विज़न पर भरोसा हो, न कि जिन्हें बस अगले क्वार्टर के रिटर्न्स की जल्दी हो।
यूनिक रहना ज़्यादा ज़रूरी है : फ़ेमस फ़ेसेज़, इन्वेस्टमेंट और ट्रेंड हाइजैकिंग की रेस से ज़्यादा ज़रूरी है, अपने काम को लेकर यह कह पाना कि, ‘It’s creative and always will be.’
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पहले एपिसोड का लिंक यह है : AmoebAI
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