Font by Mehr Nastaliq Web

‘द गर्ल विथ द नीडल’ : महायुद्धों के बाद के महायुद्ध!

स्वीडिश-पॉलिश फ़िल्म डायरेक्टर मैग्नस वॉन हॉर्न अपनी फ़िल्मों के माध्यम से ‘अपराध’ एवं उससे जुड़ी ‘मनोदशा’ को बारीक़ी से समझना चाहते हैं। उन्होंने यह विषय तब चुना जब फ़िल्म-मेकिंग सीखने के लिए वह पोलैंड गए और कुछ ही समय बाद वहाँ उनके साथ लूटपाट हो गई।

इस साल इंटरनेशनल फ़ीचर फ़िल्म केटेगरी में ऑस्कर के लिए नामांकित हुई फ़िल्म—‘द गर्ल विथ द नीडल’ डायरेक्टर मैग्नस वॉन हॉर्न द्वारा मनुष्य के अपराध करने की प्रवृत्ति, पारिस्थितिक निर्भरता, अपराधी की मनोदशा पर पड़े गहरे ज़ख़्मों और उसके परिणामों पर बात करती है। अपराध एवं अपराधी को समझने के लिए उसके आसपास की सामाजिक-आर्थिक परिस्थिति को समझना बेहद महत्त्वपूर्ण है।

फ़िल्म का अंत इस एक पंक्ति से होता है, “बेस्ड ऑन ट्रू इवेंट्स”। 20वीं सदी की शुरुआत, प्रथम विश्व युद्ध का अंत और कोपेनहेगन की गलियाँ। सबकुछ ब्लैक एंड व्हाइट। जैसे युद्ध ने जीवन से रंग छीन लिए हों। भीड़… ग़रीबों की भीड़। हर तरफ़ ज़िंदा रहने का संकट। लोगों की जगह, मशीनों ने ले ली और गली-चौराहें बेरोज़गारों से भरे हैं।

उच्च वर्ग और निम्न वर्ग के बीच खाई बन चुकी है। कोई पुल नज़र नहीं आता और ऐसे में उस खाई को पार करने की जद्दोजहद में सर्वहाराओं की (चलती-फिरती) लाशें खाई में सड़ती नज़र आती है—जो कि फ़िल्म के आगे बढ़ने के साथ-साथ प्रतीकात्मक ढंग से उभरने लगती हैं।

पहले सोचा यहाँ फ़िल्म का सार लिख दूँ फिर सोचा उसकी जगह फ़िल्म के उन पहलुओं पर बात करता हूँ जिन्होंने मुझे फ़िल्म के अंत तक जोड़े रखा। इतना ज़रूर है कि यह फ़िल्म आपको अपनी जगह से उठने नहीं देगी।

जैसा कि फ़िल्म के आख़िर में बताया गया है कि फ़िल्म वास्तविक घटना पर आधारित है। उस घटना की मुख्य पात्र, फ़िल्म की मुख्य पात्र नहीं है। इसके पीछे डायरेक्टर मैग्नस और उनकी को-राइटर लिन लैंगबेक का सामूहिक संज्ञान रहा। वह चाहते थे फ़िल्म ‘डगमर ओवरबाय’ की जगह ‘कोरोलिन’ की ज़िंदगी पर केंद्रित रहे। हालाँकि, दोनों ही पात्र उस दौर की भीषण त्रासदी से जूझ रहे हैं। लेकिन, दोनों ही पात्र जीवन संघर्ष का सामना अलग ढंग से करते हैं। इस कारण कैरोलिन का किरदार, उस ब्लैक एंड व्हाइट दुनिया में, डगमर की तुलना में कहीं अधिक रंगों के साथ स्क्रीन पर नज़र आता है। जहाँ कैरोलिन अपना रास्ता ढूँढ रही है, वहीं डगमर अपने अतीत (जिस पर फ़िल्म में चर्चा नहीं होती किंतु संवादों में झलक दिखलाई पड़ती है।) को पीछे छोड़ जीवनयापन का एक तरीक़ा ढूँढ़ चुकी है और एक ठीक-ठाक जीवन जी रही है। डगमर के किरदार में एक अजीब-सा आकर्षण है और कैरोलिन की अस्थिर दशा उसे डगमर की ओर, और भी अधिक आकर्षित करती है और यहीं से फ़िल्म धीरे-धीरे उन रहस्यों की ओर बढ़ने लगती है जो नंगी आँखों से दिखलाई नहीं देते।

फ़िल्म सिर्फ़ प्रथम विश्व युद्ध के बाद का जीवन ही नहीं दिखाती बल्कि एबॉर्शन जैसे विषय पर भी बात करती है जिस पर आज भी दुनिया बंटी हुई है। ‘गर्भपात’ इस फ़िल्म का एक महत्त्वपूर्ण विषय है। मैग्नस वॉन हॉर्न स्वीडन और उनकी को-राइटर लिन लैंगबेक का जन्म डेनमार्क में हुआ। दोनों ही देशों ने 70 के दशक में कुछ शर्तों के साथ एबॉर्शन को क़ानूनी दर्जा दे दिया। लेकिन उनके पड़ोसी देश पोलैंड में गर्भपात पर सख़्ती लागू है। सिर्फ़ पोलैंड ही नहीं ऐसे और भी पश्चिमी देश हैं जहाँ गर्भपात पर सख़्त क़ानून हैं। इसका एक उदाहरण हाल में अमेरिका के राष्ट्रपति बने डोनाल्ड ट्रूप का विवादित बयान भी है। स्वीडन एवं डेनमार्क ने भी 70 के दशक तक आते-आते अपने क़ानून में बदलाव किए और फ़िल्म में डगमर ओवरबाए 20 के दशक के अंतिम सालों में ‘सीक्रेट’ अडॉप्शन सेंटर चलाती है। ज़ाहिर तौर पर लेखक एवं निर्देशक का एबॉर्शन-अडॉप्शन को लेकर आर्ट के माध्यम से राजनीतिक संदर्भ को चिह्नित करना भी एक उद्देश्य रहा। 

फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी और बैकग्राउंड स्कोर फ़िल्म की गहराई को और बढ़ाते हैं। बैकग्राउंड स्कोर एकदम नया और भयानक है और सिहरन पैदा करता है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे वह धुन पात्रों के हृदय की धुन है। कुछ दृश्य इतने वीभत्स फिर भी इतने ज़रूरी हैं कि उस दौर की भयावहता की कल्पना उनके बिना संभव नहीं थी। फिर भी मैग्नस एवं सिनेमैटोग्राफर माइकल डाइमेक ने उन दृश्यों की भयावहता को चरम सीमा तक नहीं पहुँचने दिया। एक इंटरव्यू के दौरान प्रश्नकर्ता कहता भी है, “इस फ़िल्म को देखना दूभर हो जाता यदि फ़िल्म-दृश्यों की भयावहता की सीमा तय न की होती।”

एक दृश्य में युद्ध से लौटा पीटर सर्कस के स्टेज पर खड़ा है। जब से लौटा है मास्क लगाए घूमता है। उसका सर्कस मास्टर दर्शकों के सामने पीटर को मास्क हटाने को कहता है। वह मास्क हटाता है और उसका चेहरा देखते ही दर्शक घृणा से मुँह मोड़ लेते हैं। वे युद्ध के परिणाम देख पाने में अक्षम हैं। पीटर का चेहरा किसी जले हुए प्लास्टिक की तरह सिकुड़ गया है, सिर्फ़ एक आँख बची है और दूसरी आँख की जगह एक गड्ढा है जहाँ नक़ली आँख लगी है। सर्कस मास्टर वहीं नहीं रुकता है। वह दर्शकों को पीटर के आँख के गड्ढे में उँगली डालने की चुनौती देता है, वह चुनौती देता है कोई स्टेज पर आकर उसे चुम्बन देकर दिखाए!

फ़िल्म में ऐसे कई पड़ाव हैं जब कैरोलिन को अपना जीवन पटरी पर लौटता नज़र आता है। वे दृश्य सुधबुध खो देने वाले क्षणों में उम्मीद की लौ की तरह आते हैं। लेकिन, वे क्षण फिर-फिर धुँधले हो जाते हैं। कैरोलिन निराशा, उम्मीद, लालसा, धोखा, आश्रय, हताशा सबकुछ से गुज़रने के बाद भी अंत में अपना हाथ फैलाना नहीं भूलती।

मैग्नस वॉन हॉर्न की फ़िल्म ‘द गर्ल विथ द नीडल’ का अंत उम्मीद भरा है, फिर भी डगमर की कही बात दिमाग़ में बनी रहती है, “मैंने वही किया जो ज़रूरी था। मैंने वही किया जिसे करने में तुम डर रहे थे। तुम लोग इतने डरते हो कि स्वीकारते भी नहीं। वास्तव में तो तुम्हें मुझे मेडल देना चाहिए।”

क्या दो ही महायुद्ध हुए? क्या हर दिन महायुद्ध नहीं?

'बेला' की नई पोस्ट्स पाने के लिए हमें सब्सक्राइब कीजिए

Incorrect email address

कृपया अधिसूचना से संबंधित जानकारी की जाँच करें

आपके सब्सक्राइब के लिए धन्यवाद

हम आपसे शीघ्र ही जुड़ेंगे

07 अगस्त 2025

अंतिम शय्या पर रवींद्रनाथ

07 अगस्त 2025

अंतिम शय्या पर रवींद्रनाथ

श्रावण-मास! बारिश की झरझर में मानो मन का रुदन मिला हो। शाल-पत्तों के बीच से टपक रही हैं—आकाश-अश्रुओं की बूँदें। उनका मन उदास है। शरीर धीरे-धीरे कमज़ोर होता जा रहा है। शांतिनिकेतन का शांत वातावरण अशांत

10 अगस्त 2025

क़ाहिरा का शहरज़ाद : नजीब महफ़ूज़

10 अगस्त 2025

क़ाहिरा का शहरज़ाद : नजीब महफ़ूज़

Husayn remarked ironically, “A nation whose most notable manifestations are tombs and corpses!” Pointing to one of the pyramids, he continued: “Look at all that wasted effort.” Kamal replied enthusi

08 अगस्त 2025

धड़क 2 : ‘यह पुराना कंटेंट है... अब ऐसा कहाँ होता है?’

08 अगस्त 2025

धड़क 2 : ‘यह पुराना कंटेंट है... अब ऐसा कहाँ होता है?’

यह वाक्य महज़ धड़क 2 के बारे में नहीं कहा जा रहा है। यह ज्योतिबा फुले, भीमराव आम्बेडकर, प्रेमचंद और ज़िंदगी के बारे में भी कहा जा रहा है। कितनी ही बार स्कूलों में, युवाओं के बीच में या फिर कह लें कि तथा

17 अगस्त 2025

बिंदुघाटी : ‘सून मंदिर मोर...’ यह टीस अर्थ-बाधा से ही निकलती है

17 अगस्त 2025

बिंदुघाटी : ‘सून मंदिर मोर...’ यह टीस अर्थ-बाधा से ही निकलती है

• विद्यापति तमाम अलंकरणों से विभूषित होने के साथ ही, तमाम विवादों का विषय भी रहे हैं। उनका प्रभाव और प्रसार है ही इतना बड़ा कि अपने समय से लेकर आज तक वे कई कला-विधाओं के माध्यम से जनमानस के बीच रहे है

22 अगस्त 2025

वॉन गॉग ने कहा था : जानवरों का जीवन ही मेरा जीवन है

22 अगस्त 2025

वॉन गॉग ने कहा था : जानवरों का जीवन ही मेरा जीवन है

प्रिय भाई, मुझे एहसास है कि माता-पिता स्वाभाविक रूप से (सोच-समझकर न सही) मेरे बारे में क्या सोचते हैं। वे मुझे घर में रखने से भी झिझकते हैं, जैसे कि मैं कोई बेढब कुत्ता हूँ; जो उनके घर में गंदे पं

बेला लेटेस्ट