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दर्द पर कविताएँ

‘आह से उपजा होगा गान’

की कविता-कल्पना में दर्द, पीड़ा, व्यथा या वेदना को मानव जीवन के मूल राग और काव्य के मूल प्रेरणा-स्रोत के रूप में स्वीकार किया जाता है। दर्द के मूल भाव और इसके कारण के प्रसंगों की काव्य में हमेशा से अभिव्यक्ति होती रही है। प्रस्तुत चयन में दर्द विषयक कविताओं का संकलन किया गया है।

प्रेम के आस-पास

अमर दलपुरा

ख़ाली आँखें

नवीन रांगियाल

दर्द

सारुल बागला

बारामासा

यतींद्र मिश्र

लयताल

कैलाश वाजपेयी

पिता

नवीन रांगियाल

सरोज-स्मृति (एन.सी. ई.आर.टी)

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

आख़िरी बार

वियोगिनी ठाकुर

प्रेम और उदासी

सारुल बागला

याद नहीं

मनमोहन

फागुनी हवाएँ

अखिलेश सिंह

अनचाहा

अमर दलपुरा

कभी-कभी ऐसा भी होता है

पंकज चतुर्वेदी

विलाप-1/मई

सौरभ कुमार

सीवी

रचित

विलाप-2/जून

सौरभ कुमार

पीड़ा में पगी स्त्री

वियोगिनी ठाकुर

वैसे ही चलना दूभर था

मुकुट बिहारी सरोज

तीसरी आँख

वियोगिनी ठाकुर

कोई तो लिखे

स्मिता सिन्हा

वसंत

राकेश रंजन

पालने की हँसी

शैलप्रिया

सारंगी

कृष्णमोहन झा

इनसोम्निया

प्रदीप अवस्थी

गिरिवर भाई

शैलेंद्र कुमार शुक्ल

सरमाया

सुधांशु फ़िरदौस

घाव को घाव ही कहा

वियोगिनी ठाकुर

आवश्यक सूचनाएँ

आदित्य शुक्ल

कीमोथेरेपी*

मृत्युंजय

वह पीड़ा अस्वीकार की

प्रदीप अवस्थी

छोटा-बड़ा

रसूल हमज़ातोव

याद

प्रदीप अवस्थी

इदं न मम

भवानीप्रसाद मिश्र

आघात

नरेश सक्सेना

आँधी

विजय राही

छुओगे तो पछताओगे

प्रदीप अवस्थी

पीठ

गार्गी मिश्र

मेरा दुख

परमेंद्र सिंह

‘गुमनामियाँ’

बबली गुज्जर

विपर्यस्त पीड़ा

कैलाश वाजपेयी