
ऐसा नहीं है कि हमें संदेह है कि भगवान हमारे लिए सबसे अच्छा करेंगे, हम सोच रहे हैं कि सबसे अच्छा कितना दर्दनाक होगा।

संसार कुछ भी करता फिरे, हल पर ही आश्रित है। अतएव कष्टप्रद होने पर भी कृषि कर्म ही श्रेष्ठ है।

बुद्धिमान मनुष्य तीक्ष्ण शत्रु को तीक्ष्ण शत्रु से नष्ट कर देता है। सुख की प्राप्ति हेतु कष्टकारक काँटे को काँटे से ही निकालते हैं।

क्रोध में आदमी अपने मन की बात नहीं करता, वह केवल दूसरे का दिल दुखाना चाहता है।

जैसे छोटा अंकुश भी हाथियों पर गिरकर उन्हें कष्ट देता है, वैसे ही बड़ों के ऊपर थोड़ा क्लेश पड़ना भी बहुत कष्टकर होता है।

प्रतिष्ठा की प्राप्ति केवल उत्सुकता को समाप्त कर देती है किंतु प्राप्त किए हुए की रक्षा का कार्य कष्ट देता है।


पीड़ा में प्रेम पनपा करता है।


जिन बातों को मनुष्य भूल जाना चाहता है, वही उसे बार-बार क्यों याद आती हैं? क्या मनुष्य का अतीत एक वह भयानक पिशाच है जो उसके भविष्य में वर्तमान का पत्थर बनकर पड़ा रहता है?