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कालिदास

संस्कृत के महाकवि और नाटककार। 'कुमारसंभवम्', 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्', 'रघुवंशम्', 'मेघदूतम्', 'विक्रमोर्वशीयम्' आदि कृतियों के लिए समादृत।

संस्कृत के महाकवि और नाटककार। 'कुमारसंभवम्', 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्', 'रघुवंशम्', 'मेघदूतम्', 'विक्रमोर्वशीयम्' आदि कृतियों के लिए समादृत।

कालिदास की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 118

अज्ञानवश डोंगी से सागर पार करने की इच्छा कर रहा हूँ।

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वस्तुतः स्त्रियों को अपने इष्ट व्यक्ति (प्रियतम) के प्रवास से उत्पन्न दुःख अत्यंत असह्य होते हैं।

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स्त्रियों में जो मनुष्य जाति से भिन्न स्त्रियाँ हैं, उनमें भी बिना शिक्षा के ही चतुरता देखी जाती है, जो ज्ञान संपन्न है, उनका तो कहना ही क्या! कोयल आकाश में उड़ने की सामर्थ्य होने तक अपने बच्चों का अन्य पक्षियों से पालन करवाती है।

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चोरी के माल के साथ पकड़ा हुआ चोर अब कह ही क्या सकता है?

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निर्मल चंद्रमा पर पड़ी पृथ्वी की छाया को लोग चंद्रमा का कलंक कहकर उसे बदनाम करते हैं।

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