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विष्णु शर्मा

'पंचतंत्र' के लिए सुप्रसिद्ध संस्कृत नीति-गद्यकार। तक्षशिला विश्वविद्यालय से संबद्ध।

'पंचतंत्र' के लिए सुप्रसिद्ध संस्कृत नीति-गद्यकार। तक्षशिला विश्वविद्यालय से संबद्ध।

विष्णु शर्मा की संपूर्ण रचनाएँ

उद्धरण 33

जिसकी पत्नी पतिव्रता है, पति को प्राणों से भी अधिक प्यार करने वाली है तथा पति के ही हित में संलग्न है, वह पुरुष इस पृथ्वी पर धन्य है।

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मेधावी तथा समर-शूर पुरुष भी स्त्री के समीप परम कायर हो जाते हैं।

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आयु के बीत जाने पर भी जिनके पास धन है, वे तरुण हैं। धन-हीन युवक होते हुए भी वृद्ध हो जाते हैं।

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राजा दुर्मंत्र से नष्ट हो जाता है, यति संग से, पुत्र अधिक लालन से, ब्राह्मण अध्ययन करने से, कुल कुपुत्र से शील दुष्टों के संसर्ग से, मित्रता प्रेम के अभाव से, समृद्धि अनीति से, स्नेह प्रवास में रहने से, स्त्री गर्व से, कृषि छोड़ देने से तथा धन प्रमाद से विनष्ट हो जाता है।

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धन के उपार्जन में दुःख होता है। और उपार्जित धन की रक्षा में भी दुःख होता है। आय में दुःख व्यय में दुःख। सब प्रकार से दुःख देने वाले धन को धिक्कार है।

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