स्मृति पर उद्धरण

स्मृति एक मानसिक क्रिया

है, जो अर्जित अनुभव को आधार बनाती है और आवश्यकतानुसार इसका पुनरुत्पादन करती है। इसे एक आदर्श पुनरावृत्ति कहा गया है। स्मृतियाँ मानव अस्मिता का आधार कही जाती हैं और नैसर्गिक रूप से हमारी अभिव्यक्तियों का अंग बनती हैं। प्रस्तुत चयन में स्मृति को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।

अतीत चाहे दु:खद ही क्यों हो, उसकी स्मृतियाँ मधुर होती हैं।

प्रेमचंद

अपने भूले रहने की याद में जीवन अच्छा लगता है।

नवीन सागर

जो तुम्हारी स्मृति में है, वही तुम्हरी रक्षा करता है।

विलियम स्टैनले मर्विन

जो तुम्हें कहीं से बुला रहे हैं, उन्हें नहीं पता वे कहाँ हैं।

नवीन सागर

यादों का सुख दुख के बग़ैर नहीं होता।

कृष्ण बलदेव वैद

संस्मरणों से किसी जगह को जानना उसे स्वप्न में जानने की तरह है जिसे हम जागने के कुछ देर बाद भूल जाते हैं या सिर्फ़ उसका मिटता हुआ स्वाद बचा रहता है।

मंगलेश डबराल

मन में पानी के अनेक संस्मरण हैं।

रघुवीर सहाय

लोग भूल जाते हैं दहशत जो लिख गया कोई किताब में।

रघुवीर सहाय
  • संबंधित विषय : डर

स्मृतियों का प्रतिफल आँसू है

श्रीकांत वर्मा

जो चीज़ कम होती है, उसकी याद लंबे समय तक आती रहती है।

सिद्धेश्वर सिंह

भाषा स्मृतियों का पुंज है और विलक्षण यह है कि स्मृतियाँ पुरानी और एकदम ताज़ा भाषा में घुली-मिली होती हैं।

केदारनाथ सिंह

बहुत कम यादें पछतावे से अछूती होती हैं।

कृष्ण बलदेव वैद

यादों को भी पानी की ज़रूरत होती है—आँसुओं के पानी की।

कृष्ण बलदेव वैद

यादों का दूसरा नाम पछतावा।

कृष्ण बलदेव वैद

हमारी पुरानी स्मृति में पड़े हुए शब्द हमारी कई स्मृतियों को एक साथ जगाते हैं।

केदारनाथ सिंह

हम प्यार करते हुए भी सच को, गंदगी को, अँधेरे को, पाप को भूल नहीं पाते हैं।

राजकमल चौधरी

लोग भूल गए हैं एक तरह के डर को जिसका कुछ उपाय था। एक और तरह का डर अब वे जानते हैं जिसका कारण भी नहीं पता।

रघुवीर सहाय
  • संबंधित विषय : डर

जो याद रह जाता है वही शायद रखने के क़ाबिल होता है।

कृष्ण बलदेव वैद

"यदि स्मृतियों में बनी छवियों को हम शब्दों का रूप दे सकें तो वे साहित्य में एक स्थान पाने योग्य हैं।"

रवीन्द्रनाथ टैगोर

स्मृतियाँ एक अदृष्ट कलाकार की मूल कृतियाँ हैं।

रवीन्द्रनाथ टैगोर

जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

पास यहाँ से प्राप्त कीजिए