स्मृति पर उद्धरण
स्मृति एक मानसिक क्रिया
है, जो अर्जित अनुभव को आधार बनाती है और आवश्यकतानुसार इसका पुनरुत्पादन करती है। इसे एक आदर्श पुनरावृत्ति कहा गया है। स्मृतियाँ मानव अस्मिता का आधार कही जाती हैं और नैसर्गिक रूप से हमारी अभिव्यक्तियों का अंग बनती हैं। प्रस्तुत चयन में स्मृति को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।


आप यादों को छुपा सकते हैं, लेकिन आप उस इतिहास को मिटा नहीं सकते जिसने उन्हें पैदा किया था।

स्मरण-शक्ति के साथ लिखो और ख़ुद के आश्चर्य के लिए लिखो।

ख़ुशी पहले प्रत्याशा में मिलती है, बाद में स्मृति में।

हमें कभी भी भविष्य को स्मृति के बोझ के नीचे दब नहीं जाने देना चाहिए।

दयालुता और स्मृति : कोई व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं भूल सकता जो उसके प्रति अच्छा हो।

आख़िरकार, दुनिया यही है—विपरीत यादों की अंतहीन लड़ाई।


जिन शब्दों से मैं अपनी स्मृति को अभिव्यक्त करता हूँ, वे मेरी स्मृति-प्रतिक्रियाएँ हैं।

मैं उसके साथ छह महीने रहा। उस दिन से—ईश्वर मेरा साक्षी है!—मुझे किसी चीज़ से डरने की ज़रूरत नहीं पड़ी। सिवाय एक चीज़ के कि शैतान या भगवान, उन छह महीनों की स्मृति मेरे मन से मिटा देगा।

आदमियों की तरह यादों और विचारों की उम्र बढ़ती है। लेकिन कुछ विचार कभी बूढ़े नहीं हो सकते हैं और कुछ यादें कभी फीकी नहीं पड़ सकतीं।

मैं जब लिखती हूँ, तब मुझे अपने अंदर देखने का आभास नहीं होता है; मैं एक स्मृति के अंदर देखती हूँ।



हर कोई आसानी से अपनी याददाश्त या ख़राब याददाश्त के बारे में शिकायत करता है, लेकिन वे कभी भी अपनी बुद्धिमत्ता के बारे में शिकायत नहीं करते हैं। वह नहीं जानते कि स्मृति भी बुद्धि का ही एक हिस्सा है।

मुझे ख़ुद को साँस लेने के लिए याद दिलाना पड़ता है—दिल को भी धड़कने के लिए याद दिलाती हूँ।

स्त्रीवाद स्मृति है।

हम हमेशा ही चिंतित रहते हैं, बदहवासी की हद तक, कि हम कुछ याद कर पाने में कामयाब नहीं हो पा रहे। लेकिन हम याद रख पाते हैं या नहीं—इस बात का कोई मतलब नहीं। जो कुछ भी हमें याद है, हम भूल जाएँगे और वह भी जो हमें याद नहीं।

जब अंत आता है तब दृश्यों की स्मृति नहीं बचती, सिर्फ़ शब्द बचते हैं।

मैं उस घटना का ‘मैं’ नहीं हूँ; फिर भी शायद मुझे याद हो क्या हुआ था वहाँ, शायद मैं बयान भी कर सकूँ। मैं फिर भी, अधूरा बोर्हेस हूँ।

हृदय के लिए अतीत एक मुक्ति-लोक है जहाँ वह अनेक प्रकार के बंधनों से छूटा रहता है और अपने शुद्ध रूप में विचरता है।



बीता हुआ कल आज की स्मृति है और आने वाला कल आज का स्वप्न।

जो तुम्हारी स्मृति में है, वही तुम्हरी रक्षा करता है।

मन में पानी के अनेक संस्मरण हैं।

यादों का सुख दुख के बग़ैर नहीं होता।

स्मृतियों का प्रतिफल आँसू है

संस्मरणों से किसी जगह को जानना उसे स्वप्न में जानने की तरह है जिसे हम जागने के कुछ देर बाद भूल जाते हैं या सिर्फ़ उसका मिटता हुआ स्वाद बचा रहता है।

लोग भूल जाते हैं दहशत जो लिख गया कोई किताब में।

हम प्यार करते हुए भी सच को, गंदगी को, अँधेरे को, पाप को भूल नहीं पाते हैं।

जो चीज़ कम होती है, उसकी याद लंबे समय तक आती रहती है।

भाषा स्मृतियों का पुंज है और विलक्षण यह है कि स्मृतियाँ पुरानी और एकदम ताज़ा भाषा में घुली-मिली होती हैं।

बहुत कम यादें पछतावे से अछूती होती हैं।
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यादों को भी पानी की ज़रूरत होती है—आँसुओं के पानी की।

हमारी पुरानी स्मृति में पड़े हुए शब्द हमारी कई स्मृतियों को एक साथ जगाते हैं।

कभी-कभी मैं कोई कहानी किसी स्मृति, किसी क़िस्से से शुरू करती हूँ; लेकिन वे बीच में खो जाते हैं और आमतौर पर कहानी ख़त्म होने पर पहचाने भी नहीं जाते हैं।

यादों का दूसरा नाम पछतावा।
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लोग भूल गए हैं एक तरह के डर को जिसका कुछ उपाय था। एक और तरह का डर अब वे जानते हैं जिसका कारण भी नहीं पता।

हृदय की स्मृति बुराई को दूर करती है और अच्छाई को बढ़ाती है।

जो याद रह जाता है वही शायद रखने के क़ाबिल होता है।

जो कुछ भी हमारी स्मृति में अंकित होता जाता है उसमें आशा का एक कण छुपा होता है, चाहे वह निराशा से ही क्यूँ न भरा हुआ हो।

गंध, संगीत की तरह, स्मृतियों को संभाले रखती है।

स्मृति एकमात्र ऐसी जगह है जहाँ चीज़ें एक से अधिक बार होती हैं।

"यदि स्मृतियों में बनी छवियों को हम शब्दों का रूप दे सकें तो वे साहित्य में एक स्थान पाने योग्य हैं।"

जिन बातों को मनुष्य भूल जाना चाहता है, वही उसे बार-बार क्यों याद आती हैं? क्या मनुष्य का अतीत एक वह भयानक पिशाच है जो उसके भविष्य में वर्तमान का पत्थर बनकर पड़ा रहता है?

स्मृतियाँ एक अदृष्ट कलाकार की मूल कृतियाँ हैं।

स्मृति क्यों तुच्छ को महत्वपूर्ण और महत्वपूर्ण को तुच्छ मानती है, जितना प्रौढ़ होता जाता है मानव, क्यों उतनी ही बचकानी हुई जाती है, बचपन की ओर लौटने लगती है स्मृति।