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वर्तमान पर उद्धरण

वर्तमान समाज अनेक आदर्शों का रंगमंच बन गया है।

त्रिलोचन

वर्तमान हमें अँधा बनाए रहता है, अतीत बीच-बीच में हमारी आँखें खोलता रहता है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

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