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राजेंद्र माथुर

1935 - 1991 | बदनावर, मध्य प्रदेश

समादृत संपादक। 'नई दुनिया' और नव-भारत टाइम्स के प्रधान संपादक रहे।

समादृत संपादक। 'नई दुनिया' और नव-भारत टाइम्स के प्रधान संपादक रहे।

राजेंद्र माथुर की संपूर्ण रचनाएँ

कविता 1

 

उद्धरण 39

जैसे उपन्यास का सच संसार के सच से ज़्यादा सच्चा होता है, उसी तरह हमारा पुराण-सत्य, हमारा मिथक-सत्य—आपके इतिहास-सत्य से कहीं ज़्यादा ऊँचा है।

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धर्म के बिना तो हिंदुस्तान का या किसी भी देश का काम चल सकता है; लेकिन एक साझा मिथकावली के बिना, किसी देश का काम नहीं चल सकता।

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भारत की सभ्यता अद्भुत इस माने में रही है कि इतना स्थिर समाज, इतनी सदियों तक चीन के अलावा और कहीं क़ायम नहीं रहा। लेकिन इस सामाजिक स्थिरता के साथ-साथ; जितनी राज्य-गत अराजकता और अस्थिरता भारत में रही है, उतनी पृथ्वी पर और कहीं नहीं रही।

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मध्य युग के यूरोप को काफ़ी स्थिरता सामंतवाद ने दी। सैकड़ों सालों तक सामंतों के ख़ानदान चला करते थे, और राजा प्रायः उन्हें छू नहीं सकता था। राज्य राजा के भरोसे नहीं, बल्कि सामंतों के भरोसे चलता था। लेकिन भारत में ऐसा सामंतवाद कभी रहा ही नहीं। हमारे यहाँ सिद्धांत यह था कि राज्य की सारी ज़मीन का स्वामी राजा है। सामंत की कोई ज़मीन नहीं है। जो है, वह राजा का प्रसाद है। अतः राजा जब चाहे, तब सामंत या रियाया को ज़मीन से बेदख़ल कर सकता है। फिर घटनाएँ प्रायः राजा को भी बेदख़ल कर देती थीं। ऐसे सतत गड़बड़झाले के बीच कोई टिकाऊ राज्य कैसे क़ायम हो सकता था?

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महाभारत कोई धर्मग्रंथ नहीं है। वह इस ज़मीन के बाशिंदों के अनुभवों का निचोड़ है और होमर या शेक्सपीयर की तरह का सार्वकालिक और पंथ-निरपेक्ष है।

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