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श्यामाचरण दुबे

1922 - 1996 | नरसिंहपुर, मध्य प्रदेश

अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त समाजविज्ञानी। हिंदी में 'समय और संस्कृति' और 'परंपरा और परिवर्तन' शीर्षक से दो चर्चित पुस्तकें।

अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त समाजविज्ञानी। हिंदी में 'समय और संस्कृति' और 'परंपरा और परिवर्तन' शीर्षक से दो चर्चित पुस्तकें।

श्यामाचरण दुबे की संपूर्ण रचनाएँ

निबंध 1

 

उद्धरण 26

कालिदास ने कहा था कि पुराना सब अच्छा नहीं होता, नया सब बुरा नहीं होता। दोनों का समन्वय ज़रूरी है। मनुष्य का विवेक सर्वोपरि है और उसी के आधार पर वह समन्वय संभव होगा।

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परंपरा को जड़ और विकास को गतिमान मानना, हमारी विचार प्रक्रिया में रूढ़ हो गया है।

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परंपरा साधन है, साध्य नहीं।

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यदि हम परंपरा का नकारात्मक मूल्यांकन भी करते हैं, तो भी यह स्वीकार करना कठिन है कि दृष्टिकोणों और मूल्यों को बदलने और संरचनात्मक बाधाओं को हटाने से, अपने आप ही पर्याप्त उन्नति तथा वृद्धि हो जाएगी।

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हिंदू धार्मिक और सामाजिक विचारधारा के अंतर्गत, विकास के संबंध में बहुत कम और परिवर्तन के विषय में बहुत कुछ कहा गया है।

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