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साहित्य पर उद्धरण

किसी दूसरे देश की आत्मा को जानने का सबसे अच्छा तरीक़ा उसका साहित्य पढ़ना है।

अमोस ओज़

तब यह दुनिया वाक़ई पूरी तरह से बर्बाद हो गई, जब आदमी प्रथम श्रेणी में यात्रा करने लगा और साहित्य मालगाड़ी से ढोया जाने लगा।

गाब्रिएल गार्सीया मार्केस

जो लोग पूरी तरह से समझदार और ख़ुश हैं, दुःख की बात है वे अच्छा साहित्य नहीं लिखते हैं।

कोलेट

प्रकृति में हरा रंग एक बात है, साहित्य में हरे का अर्थ अलग होता है।

वर्जीनिया वुल्फ़

पेंटिंग ने साहित्य को वर्णन करना सिखाया।

ओरहान पामुक

इसमें कोई संदेह नहीं है कि साहित्य सच्चाई को बेहतर तरीक़े से प्रस्तुत करता है।

डोरिस लेसिंग
  • संबंधित विषय : सच

साहित्यिक, व्याकरणिक और वाक्य-विन्यास संबंधी प्रतिबंधों को भूल जाओ।

जैक केरुआक

अश्वेत साहित्य को समाजशास्त्र के रूप में पढ़ाया जाता है—सहिष्णुता के रूप में, गंभीर, कठोर कला के रूप में नहीं।

टोनी मॉरिसन
  • संबंधित विषय : कला

मैंने अपना साहित्यिक अस्तित्व ऐसे व्यक्ति जैसा बनाना शुरू कर दिया, जो इस तरह रहता है जैसे उसके अनुभव किसी दिन लिखे जाने थे।

ऐनी एरनॉ

रिमार्क्स साहित्य नहीं हैं।

गर्ट्रूड स्टाइन

साहित्य—रचनात्मक साहित्य—सेक्स से असंबद्ध होकर—अचिंतनीय है।

गर्ट्रूड स्टाइन

किसी साहित्य में केवल बाहर की भद्दी नक़ल उसकी अपनी उन्नति या प्रगति नहीं कही जा सकती। बाहर से सामग्री आए, ख़ूब आए, पर वह कूड़ा-करकट के रूप में इकट्ठी की जाए। उसकी कड़ी परीक्षा हो, उस पर व्यापक दृष्टि से विवेचन किया जाए, जिससे हमारे साहित्य के स्वतंत्र और व्यापक विकास में सहायता पहुँचे।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

किसी की प्रशंसा या विरोध में लिखा हुआ ही किसी को आहत करता है और ही इनसे कोई क्षति पहुँचती है। मनुष्य अपने ख़ुद के लिखे से पूर्ण या अपूर्ण हो सकता है, किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उसके बारे में कही गई बातों से नहीं।

होर्खे लुई बोर्खेस

यदि प्रथम साक्षात् की बेला में कथानायक अस्थायी टट्टी में बैठा है तो मैं किसी भी साहित्यिक चमत्कार से उसे ताल पर तैरती किसी नाव में बैठा नहीं सकता।

मनोहर श्याम जोशी

सच तो ये है कि हम सब बहुत कुछ पीछे छोड़ कर जीते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि हम समझते हैं कि यह जीवन अनंत है। कभी कभी हर मनुष्य सभी अनुभवों से गुजरेंगे।

होर्खे लुई बोर्खेस

मुझे तो समस्त ऐसे साहित्य से आपत्ति है जो मात्र यही या वही करने की क़सम खाए हुए हो।

मनोहर श्याम जोशी

स्वार्थ और स्वाधीनता में क्या अन्तर है? प्रतिबद्धता और पराधीनता में कैसे भेद करें? विवेक को कायरता के अतिरिक्त कोई नाम कैसे दें?

मनोहर श्याम जोशी

कभी कभी घर पर रखी बहुत सारी किताबों को देख कर मुझे महसूस होता है कि इससे पहले कि मैं हर क़िताब तक पहुँचू मैं इस दुनिया से चला जाऊंगा, लेकिन फिर भी नई क़िताबों को खरीदने का उत्साह मेरा कम नहीं होता। जब भी मैं किसी बुक स्टोर पर जाता हूँ और मुझे वहाँ मेरी पसंद की कोई क़िताब दिख जाती है तो मैं ख़ुद से यह बात कहता हूँ कि यह कितने दुःख की बात है कि मैं यह क़िताब ले नहीं सकता क्योंकी मेरे पास उसकी एक प्रति पहले से है।

होर्खे लुई बोर्खेस

मैंने जो भी लिखा है उसे दोबारा कभी नहीं पढ़ा। मैंने जो भी किया है उसके लिए मुझे डर है कि मैं शर्मिंदगी महसूस करूँ।

होर्खे लुई बोर्खेस

कई बार पढ़ने के अलावा, पढ़ना भी महत्वपूर्ण है।

होर्खे लुई बोर्खेस

समाज में स्थित विभिन्न नगरीय तथा राजनैतिक संस्थाओं की अस्तित्व में स्थित व्यवस्था को अमान्य करना—यह विद्रोही साहित्य का लक्ष्य होता है।

भालचंद्र नेमाडे

एक लेखक का उद्देश्य सभ्यता को स्वयं को नष्ट करने से रोकना है।

अल्बैर कामू

साहित्य हमें पानी नहीं देता, वह सिर्फ़ हमें अपनी प्यास का बोध कराता है। जब तुम स्वप्न में पानी पीते हो, तो जागने पर सहसा एहसास होता है कि तुम सचमुच कितने प्यासे थे।

निर्मल वर्मा

केवल साहित्यिक परिवेश से जन्मा विद्रोह हो तो वह सच्चा विद्रोह नहीं होता।

भालचंद्र नेमाडे
  • संबंधित विषय : सच

विद्रोही साहित्य का मूल्य सौंदर्यशास्त्रीय होकर मनोवैज्ञानिक होता है।

भालचंद्र नेमाडे

साहित्य का अर्थ केवल ‘लिखा हुआ’ ऐसा लेते हुए ‘पढ़ा हुआ’ ऐसा अगर लें तो साहित्य-प्रक्रिया का अधिक व्यापक सामाजिक कार्य ध्यान में आएगा।

भालचंद्र नेमाडे

समीक्षा पूर्णतः निर्गुण रूप में एक व्यक्ति द्वारा साहित्यादि कलाओं पर किया गया चिंतन होता है।

भालचंद्र नेमाडे
  • संबंधित विषय : कला

समीक्षा साहित्य-भूमि से रस सींचनेवाला जीवंत शास्त्र है।

भालचंद्र नेमाडे

विद्रोही साहित्य के संबंध में एक विरोधाभास यह है कि जिन बातों का वह विध्वंस करता है, उन्हीं बातों को प्राप्त करने का वह प्रयास करता है।

भालचंद्र नेमाडे

विद्रोही साहित्य की शोकास्पद स्थिति यह है कि वह व्यक्तिवादी होता है, परंतु उसका आह्वान समूह को, जाति को, धर्म या वंश को होता है।

भालचंद्र नेमाडे

प्रतिबद्धता की अवधारणा लेखक सापेक्ष होती है, साहित्य और रसिक इन दो अन्य इकाइयों का प्रतिबद्धता से आनेवाला संबंध काफ़ी दूर का होता है।

भालचंद्र नेमाडे

सामाजिक जीवन में कुछ तो बिगड़ा हुआ है, इसे विद्रोही आंदोलन दर्शाता है। विद्रोही साहित्य के द्वारा उस बीमारी का निदान किया जा सकता है।

भालचंद्र नेमाडे

विद्रोही साहित्य का प्राय: तात्कालिक महत्त्व होता है।

भालचंद्र नेमाडे

जिस प्रकार की संस्कृति होती है, उसके अनुरूप ही विद्रोही-साहित्य उसमें निर्मित होता है।

भालचंद्र नेमाडे

विकृत सामाजिक संदर्भ का साहित्य, आभासी और मनोरंजनवादी प्रवृत्तियों का पोषक होता है।

भालचंद्र नेमाडे

साहित्य का श्रेष्ठत्व लेखक के व्यक्तित्व से सिद्ध होता है।

भालचंद्र नेमाडे

हमें उन चीज़ों के बारे में लिखने से अपने को रोकना चाहिए, जो हमें बहुत उद्वेलित करती हैं...

निर्मल वर्मा

लिखना पूर्वजन्म का कोई दंड झेलना है। इसे निरंतर झेले बिना इससे मुक्ति नहीं। मैं झेल रहा हूँ। पर मुझसे कहा जाए कि इस जन्म में भी आप पाप कर रहे हैं, तो यह मुझे स्वीकार नहीं।

शरद जोशी

अक्सर हिंदी का ईमानदार लेखक भ्रम और उत्तेजना के बीच की ज़िंदगी जीता है।

शरद जोशी

यहाँ (हिंदी में) केवल आरोप लगते हैं और निर्णय दिए जाते हैं। बल्कि आरोप ही अंतिम निर्णय होते हैं।

शरद जोशी

मेरा क़सूर यह है कि लोग मुझे पढ़ते हैं।

शरद जोशी

भदेस से परहेज़ हमें भीरु बनाता है।

मनोहर श्याम जोशी

सँकरे रास्ते और तंगदिल लोगों के आक्रामक समूहों से जूझते हुए चलने का प्रयत्न करना, साहित्य में जीना है।

शरद जोशी

यह भयानक है, जब लेखक लिखना बंद कर देता है। उसके पास दुनिया को दिखाने के लिए कुछ भी नहीं रहता, सिवा अपने चेहरे के!

निर्मल वर्मा

मुझे मेरा धर्म मिल गया था: मेरे लिए किताब से अधिक महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं था। मैंने पुस्तकालय को एक मंदिर के रूप में देखा।

ज्याँ-पाॅल सार्त्र

विद्रोही साहित्य प्राय: अल्पसंख्यकों के एहसासों से निर्मित होता है।

भालचंद्र नेमाडे

हिंदी में लिखने का अर्थ निरंतर प्रहारों से सिर बचाना है, बेशर्मी से।

शरद जोशी

विद्रोही साहित्य की जड़ें असाहित्यिक व्यवस्था में होती हैं।

भालचंद्र नेमाडे

समीक्षा लिखना—यह साहित्य में मुफ़्तख़ोरी की क्रिया है।

भालचंद्र नेमाडे

स्वर्ग के सारे फरिश्ते और धरती के ताम-झाम, एक शब्द में कहूँ तो संसार के विशाल फ्रेम में रचे गए सारे अंग मन के बिना कोई पदार्थ ही नहीं है… यानी उनका होना, उन्हें अवबोध में उतरना या जानना ही है।

होर्खे लुई बोर्खेस