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अभिव्यक्ति पर उद्धरण

अपने स्वयं के शिल्प का विकास केवल वही कवि कर सकता है, जिसके पास अपने निज का कोई ऐसा मौलिक-विशेष हो, जो यह चाहता हो कि उसकी अभिव्यक्ति उसी के मनस्तत्वों के आकार की, उन्हीं मनस्तत्वों के रंग की, उन्हीं के स्पर्श और गंध की ही हो।

गजानन माधव मुक्तिबोध

यदि लेखक के पास संवेदनात्मक महत्व-बोध नहीं है, या क्षीण है, तो विशिष्ट अनुभवों की अभिव्यक्ति क्षीण होगी।

गजानन माधव मुक्तिबोध

अभिव्यक्ति का अभ्यास कलाकार का एक मुख्य कर्त्तव्य है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

सक्षम सुंदर अभिव्यक्ति तो अविरत साधना और श्रम के फलस्वरूप उत्पन्न होती है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

कविता एक सामूहिक उद्वेग और सामूहिक आवश्यकता की सहज अभिव्यक्ति है और यह व्यवस्था संपूर्ण रूप से वैयक्तिक है।

विजयदान देथा

सच बात तो यह है कि आत्मपरक रूप से विश्वपरक, जगतपरक होने की लंबी प्रक्रिया की अभिव्यक्ति ही कला है—अभिव्यक्ति-कौशल के क्षेत्र में और अनुभूति अर्थात् अनुभूत वस्तु-तत्व के क्षेत्र में।

गजानन माधव मुक्तिबोध

साहित्य या कला-रचना में मनुष्य की जिस चेष्टा की अभिव्यक्ति होती है, उसे कुछ लोग मनुष्य की खेल करने की प्रवृत्ति जैसा मानते हैं।

रवींद्रनाथ टैगोर

आज़ादी का अर्थ हर चीज़ पर सवाल उठाने का अधिकार है।

आई वेईवेई

अभिव्यक्ति-प्रयत्न एक-दूसरे प्रकार का, एक अन्य स्तर का अंग है कि जिस स्तर में शब्द, मुहावरे, बिंब, स्वर आदि के स्वरूप की तुलना, हृदय में उठते हुए भावों के स्वरूप से करते हुए, प्रतिकूल शब्दों, बिंबों आदि को निकालकर अनुकूल को रखा जाता है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

कला में वस्तुतः आत्माभिव्यक्ति नहीं हुआ करती। अभिव्यक्ति होती है, किंतु जीने और भोगनेवाले अपने मन की, अपनी आत्मा की, वह सच्ची अभिव्यक्ति है—यह कहने का साहस नहीं हो पाता।

गजानन माधव मुक्तिबोध

नास्तिकता प्रायः धर्म की प्राणशक्ति की अभिव्यक्ति रही है, धर्म में वास्तविकता की खोज रही है।

सर्वेपल्लि राधाकृष्णन

लेखक की स्वतंत्रता तथा कलाकार की स्वतंत्रता; वस्तुतः अभिव्यक्ति के अधिकार की स्वतंत्रता है, किंतु यह स्वतत्रंता समाज-सापेक्ष और समाज-स्थिति-सापेक्ष है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

कला और विज्ञान ही में मनुष्य अपनी पूर्ण अभिव्यक्ति पाता है।

विजयदान देथा

चाहे कविता किसी भाषा में हो, चाहे किसी वाद के अंतर्गत, चाहे उसमें पार्थिव विश्व की अभिव्यक्ति हो, चाहे अपार्थिव की और चाहे दोनों के अविच्छिन्न संबंध की, उसके अमूल्य होने का रहस्य यही है कि वह मनुष्य के हृदय से प्रवाहित हुई है।

महादेवी वर्मा

साहित्य उस जगह का नाम है जहाँ जाकर आप अनकही की अभिव्यक्ति के लिए शब्द ढूँढ़ सकते हैं।

कृष्ण कुमार

यदि साहित्य-सृजन एक संघर्ष है—अभिव्यक्ति के मार्ग का संघर्ष, तो समीक्षा एक प्रेम-दर्शन है। ऐसा प्रेम-दर्शन जो आवश्यक पड़ने पर अतिशय कठोर होता है, किंतु सामान्यतः उदार और कोमल रहता है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

मनोवैज्ञानिक वस्तुवादी कवि; जब सामाजिक भावनाओं तथा विश्व-मैत्री की संवेदानाओं से आच्छन्न होकर मानचित्र प्रस्तुत करता है, तब वह उसी प्रकार अनूठा और अद्वितीय हो उठता है जैसे कि किसी क्षेत्र में भिन्न तथा अन्य कवि कदापि नहीं।

गजानन माधव मुक्तिबोध

अपनी व्यक्तिमत्ता के आस-पास टकरानेवाली (मानव-जीवन की) मार्मिक वास्तविकताओं को प्रकट करने के लिए, जिस प्रकार की शैली और शब्द-संपदा चाहिए, उसके लिए संघर्ष करना आवश्यक है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

बहिर्मुख कवियों के लिए रूप की समस्या विशेष नहीं होती। किंतु यदि वे जीवन-जगत् की विविध तथा विशिष्ट मार्मिकताओं के उद्घाटन और चित्रण का कार्य हाथ में लें, तो निःसंदेह ये नए तत्त्व उनकी अब तक की कमाई भाषा-संपदा और अभिव्यक्ति-शक्ति को चुनौती दे देंगे।

गजानन माधव मुक्तिबोध

रस की इस उन्मत्तता से हमारा चित्त जब मथने लगता है; तब हम उसी को सिद्धि मानने लगते हैं, किंतु नशे को कभी भी सिद्धि नहीं कहा जा सकता है, असतीत्व को प्रेम तो नहीं कहा जा सकता है, ज्वर में विकार की दुर्वार उत्तेजना को, स्वास्थ्य के बल की अभिव्यक्ति नहीं कहा जा सकता है।

रवींद्रनाथ टैगोर

प्रेम के एक छोर पर व्यक्तिगत अस्तित्व है, दूसरे पर अभिव्यक्तिगत या केवल भावनात्मक।

रवींद्रनाथ टैगोर

जब मर्मज्ञ कवि; अपनी विशिष्ट आंतरिक आग्रह-धारा के द्वारा किन्हीं विशिष्ट मर्मों को ही प्रकटीकरण के लिए उपस्थित करता है, तब उन मर्म-तत्त्वों की अभिव्यक्ति के सिलसिले में ऐसे सेंसर्स का विकास करता है कि जो सेंसर्स उन तत्त्वों के अनुपयुक्त शब्द-संयोगों और कल्पना-चित्रों को रास्ते से हटा देते है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

अभिव्यक्ति की प्रणाली बदलते ही आलोचकों की नाड़ी छूटने लगती है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

हमारी सृजन-प्रतिभा; जीवन-प्रसंग की उद्भावना से लेकर तो अंतिम संपादन तक, अपनी मूल्यांकनकारी शक्ति का उपयोग करती रहती है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

यदि हमें वैविध्यपूर्ण पर स्पष्ट, द्वंद्वमय मानव-जीवन के (अपने अंतर में व्याप्त) मार्मिक पक्षों का वास्तविक प्रभावशाली चित्रण करना है, तो हमें जड़ीभूत सौंदर्याभिरुचि और उसके सेंसर्स त्यागने होंगे, तथा अनवरत रूप से अपने ढाँचों और फ़्रेमों में संशोधन करते रहना होगा।

गजानन माधव मुक्तिबोध

अनिश्चय, आशंका, आकर्षण, मोह, सत्य-प्रेरणा और आत्मविश्वास की आकस्मिक हानि—ऐसे दुर्धर भावःप्रसंगों में से गुज़रता हुआ लेखक पाता है कि वह अग्नि-पीड़ा की एक दीर्घ वीथी में झुलसता हुआ आगे बढ़ रहा है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

भावों की अभिव्यक्ति की शैली ही कविता और कलाओं का रूप धारण करती है।

श्यामसुंदर दास

कविता में सत्यता से अभिप्राय उस निष्कपटता से है और उस अंतर्दृष्टि से है; जो हम अपने घावों या मनोवेगों का व्यंजन करने में, उनका हम पर जो प्रभाव पड़ता है, उसे प्रत्यक्ष करने में तथा उनके कारण हममें जो सुख-दु:ख, आशा-निराशा, आश्चर्य-चमत्कार, श्रद्धा-भक्ति आदि के भाव उत्पन्न होते हैं—उनको अभिव्यक्त करने में प्रदर्शित करते हैं।

श्यामसुंदर दास

उसके चेहरे पर कुछ-कुछ वैसा ही करुणाजनक भाव गया था जो हिंदी सिनेमा में ग़ज़ल गाने के पहले हिरोइन के चेहरे पर जाता है।

श्रीलाल शुक्ल

बहुत से पुराने शब्द हैं जो अत्यंत अभिव्यक्ति-प्रवण है। परंतु प्रयोग होने से लोग भूल गए हैं।

कुबेरनाथ राय

सूक्ष्म अभिव्यक्ति के लिए लोकभाषाओं से बल प्राप्त करना ही होगा।

कुबेरनाथ राय

अभिव्यक्ति के लिए आतुर हो उठने वाला मौलिक-विशेष आत्मचेतस भी होना चाहिए।

गजानन माधव मुक्तिबोध

सूक्ष्म संवेदनाओं के गुण-चित्र उपस्थित करना बड़ा ही दुष्कर कार्य है, किंतु शमशेर उसे सहानुभूति से संपन्न कर जाते हैं।

गजानन माधव मुक्तिबोध

हम बाह्म जगत से अभ्यंतर जगत् में और आभ्यंतर जगत से, बाह्म जगत में मिलना चाहते हैं—इसीलिए हम कविता लिखते है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

आत्मसात्कृत जीवन-जगत्, कलात्मक आवेग में तरंगायित होकर कवि के हृदय में जब एक कलात्मक वेदना बन जाता है—तब वह अपने बाह्मीकरण के लिए छटपटाने लगता है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

अभिव्यक्ति मानव हृदय का स्वाभाविक गुण है।

प्रेमचंद

एलियट कला को व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति नहीं मानते हैं, किन्तु रवीन्द्रनाथ और इक़बाल, दोनों का विचार है कि कला व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति है।

रामधारी सिंह दिनकर

अभिव्यक्ति का संघर्ष दीर्घ होता है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

हृदय का जगत अपने को व्यक्त करने के लिए व्याकुल रहता है, इसी से चिरकाल से मनुष्य में साहित्य का आवेग मिलता है।

रवींद्रनाथ टैगोर

हिंदी के वर्तमान काव्य-साहित्य के प्रति कुछ लोगों में जो असंतोष है, उसे देखकर यह कहना पड़ता है कि यह असंतोष इसलिए है कि काव्य में जो कुछ वे कहना या देखना चाहते हैं—वह प्रकट नहीं होता या नहीं हो पाता।

गजानन माधव मुक्तिबोध

हमारी अभिव्यक्ति-साधना अपने कंडीशंड रिफ़लैक्सेज़ को जन्म देती है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

जनतंत्र वह हैं जिसमें रास्तें चलने वाला जो बोले वह भी सुना जाए।

महात्मा गांधी

कविता में कवि का आत्मोद्घाटन उतना विश्वसनीय नहीं है, जितनी कि उसकी सामान्य भूमि।

गजानन माधव मुक्तिबोध

अभ्यंतर का बाह्यीकरण सामंजस्य या द्वंद्व अथवा दोनों के मिश्र-रूप में उपस्थित होता है।

गजानन माधव मुक्तिबोध

सामान्य मनुष्य के साथ कलाकार का सिर्फ़ मन की अनुभूति को व्यक्त करने की क्षमता और अक्षमता को लेकर अंतर होता है, दुःख पाने पर सामन्य मनुष्य बेजार होकर रोना—धोना शुरू कर देता है, कलाकार रोता नहीं है, किंतु उसके मन का रुदन कला के माध्यम से एक अपरूप सुंदर छंद में व्यक्त होता है।

अवनींद्रनाथ ठाकुर

अनुभूति की असाधारणता व्यक्त करने के लिए साधारण भाषा सहज नहीं होती।

रवींद्रनाथ टैगोर

सबको ऑक्सीजन चाहिए, सिर्फ़ जीते रहने या स्वस्थ बने रहने के लिए नहीं, सोचने और फ़ैसले लेने के लिए भी।

कृष्ण कुमार

हम मरते दम तक बाह्य जीवन-जगत का आभ्यंतरीकरण करते जाते हैं।

गजानन माधव मुक्तिबोध

आंतरिक जीवन के अपने भीतर विरोध होते है, अपना तनाव होता है। उसमें पनपने और तड़पने वाले अनेकानेक अनुभव और महत्त्वपूर्ण सत्य, अभिव्यक्ति—कलात्मक अभिव्यक्ति—प्राप्त नहीं कर पाते।

गजानन माधव मुक्तिबोध

बाह्म जीवन-जगत् के प्रत्याघात से विचलित होकर; जब अंतर्तत्त्व-व्यवस्था का अंगभूत कोई मनस्तत्त्व, एक तीव्र लहर के रूप में उत्थित होकर, मन की आँखों के सामने तरंगायित और उद्घाटित और आलोकित होते हुए, अभिव्यक्ति के लिए आतुर हो उठता है—तब वह कला के वस्तु-तत्त्व के रूप में प्रस्तुत हो जाता है।

गजानन माधव मुक्तिबोध