झूठ से सच्चाई और गहरी हो जाती है—अधिक महत्त्वपूर्ण और प्राणवान।
हम इनसान हैं, मैं चाहता हूँ इस वाक्य की सचाई बची रहे।
मेरा डर मेरा सच एक आश्चर्य है।
सत्य इतना विराट है कि हम क्षुद्र जीव व्यवहारिक रूप से उसे संपूर्ण ग्रहण करने में प्रायः असमर्थ प्रमाणित होते हैं।
मूर्खता सरलता का सत्यरूप है।
जो लोग कविता से निरी कलात्मकता की अपेक्षा करते हैं, वे कविता के वस्तु-सत्य को गौण रखना चाहते हैं।
बच्चे झट से सत्य के आस-पास पहुँच जाते हैं।
अहिंसा केवल बुद्धि का विषय नहीं है, यह श्रद्धा और भक्ति का विषय है। यदि आपका विश्वास अपनी आत्मा पर नहीं है, ईश्वर और प्रार्थना पर नहीं है, अहिंसा आपके काम आने वाली चीज़ नहीं है।
उन लोगों से सच मत कहो जो उसे ग्रहण करने के योग्य न हों।
मैं ऐसे छोटे-छोटे झूठ बोलता हूँ जिनसे दूसरों को कोई नुक़सान नहीं होता। लेकिन उनसे मेरा नुक़सान ज़रूर होता है।
सत्य कभी भी दयावान नहीं होता। हम कहाँ चुन सकते हैं अपना भाग्य।
सचाई कहाँ है—मैं आज तक नहीं समझ पाया।
सत्य की खोज कई लोगों के लिए ऐयाशी है। यह ग़रीब आदमी की हैसियत के बाहर है।
प्रमाद में मनुष्य कठोर सत्य का भी अनुभव नहीं कर सकता।
शुद्धता का अर्थ सत्य नहीं है।
सबसे अच्छा तो यही है कि झूठ का कोई जवाब ही न दिया जाए। झूठ अपनी मौत मर जाता है। उसकी अपनी कोई शक्ति नहीं होती। विरोध पर वह फलता-फूलता है।
सत्य कभी दया नहीं करता।
स्वप्नद्रष्टा या निर्माता वही हो सकता है, जिसकी अंतर्दृष्टि यथार्थ के अंतस्तल को भेदकर उसके पार पहुँच गई हो, जो उसे सत्य न समझकर केवल एक परिवर्तनशील अथवा विकासशील स्थिति भर मानता हो।
समाजवाद को समाजवादी ही रोके हुए हैं।
मैं लेखक छोटा हूँ, पर संकट बड़ा हूँ।
अगर दो साईकिल सवार सड़क पर एक-दूसरे से टकराकर गिर पड़ें तो उनके लिए यह लाज़िमी हो जाता है कि वे उठकर सबसे पहिले लड़ें फिर धूल झाड़े। यह पद्धती इतनी मान्यता प्राप्त कर चुकी है कि गिरकर न लड़ने वाला साईकिल सवार बुजदिल माना जाता है, क्षमाशील संत नहीं।
तत्त्व का प्रमाण, स्वयं तत्त्व ही है।
सत्य को भी प्रचार चाहिए, अन्यथा वह मिथ्या मान लिया जाता है।
अहंकार करने के लिए सत्य का उपयोग, सत्य का अपमान है।
पाठ्यपुस्तक से ज़्यादा कुंजी बिकती है।
गाँधी जी ने खादी का धोती-कुर्ता पहनकर और नेहरू ने जाकेट पहनकर कई पीढ़ियों के लिए मुख्य अथिति की बनावट तय कर दी थी।
अहिंसापूर्वक सत्य का आचरण करके आप संसार को अपने चरणों में झुका सकते हैं।
सत्य को कभी भी एक पार्श्व से नहीं देखा जा सकता। उस तरह से देखने पर उसका केवल आधा चेहरा दिखाई देता है।-38
हम एक ऐसी सभ्यता में रहते हैं, जिसने सत्य को खोजने के लिए सब रास्तों को खोल दिया है, किंतु उसे पाने की समस्त संभावनाओं को नष्ट कर दिया है।
सत्य सदा एक ही होता है।
गणतंत्र ठिठुरते हुए हाथों की तालियों पर टिकी है। गणतंत्र को उन्हीं हाथों की ताली मिलती है, जिनके मालिक के पास हाथ छिपाने के लिए गर्म कपड़ा नहीं है।
समस्त सत्य केवल मात्र मानवीय सत्य है, उसके बाहर या ऊपर किसी भी सत्य की कल्पना संभव नहीं है।
वफ़ादारी की तराज़ू में दो ही पल्ले होते हैं मिस्टर।
मानव-एकता के सत्य को हम मनुष्य के भीतर से ही प्रतिष्ठित कर सकते हैं, क्योंकि एकता का सिद्धांत अंतर्जीवन या अंतश्चेतना का सत्य है।
सच हथेली पर उग आया अंगारा होता है।
यथार्थ सत्य नहीं है।
आत्मकथा में सच छिपा लिया जाता है।
हमारे यहाँ जिसकी पूजा की जाती है उसकी दुर्दशा कर डालते है। यह सच्ची पूजा है।
फूल की मार बुरी होती है। शेर को अगर किसी तरह एक फूलमाला पहना दो तो गोली चलाने की ज़रूरत नहीं है। वह फ़ौरन हाथ जोड़कर कहेगा—मेरे योग्य कोई और सेवा।
ग़रीब आदमी के घर के कला और संस्कृति की बातें नहीं होती। भूखे की कला संस्कृति और दर्शन पेट के बाहर कहीं नहीं होते।
किराए पर देने के लिए जब मकान बनबाया जाता है तो ख़ास ख़्याल रखा जाता है कि किरायेदार को भूल से भी कहीं कोई सुविधा न मिल जाए। रेडियों नाटक की तरह।
जब तक सच जूते पहन रहा होता है, तब तक झूठ पूरी दुनिया के चक्कर लगा कर आ जाता है।
1बजे से 3 बजे तक तो सारा राष्ट्र ऊँघता है।
लेखकों को मेरी सलाह है कि ऐसा सोचकर कभी मत लिखो कि मैं शाश्वत लिख रहा हूँ। शाश्वत लिखने वाले तुरंत मृत्यु को प्राप्त होते हैं। अपना लिखा जो रोज़ मरता देखते हैं, वही अमर होते हैं।
सत्य शुभ हो, काला हो, सफ़ेद हो—साहित्य उसी से बनता है।
जब यह कहा जाए कि स्त्री बाहर निकले, तब यह अर्थ होता है कि दूसरों की स्त्रियाँ निकलें, अपनी नहीं।
जिन सवालों के जवाब तकलीफ़ दें उन्हें टालने से आदमी सुखी रहता है।
हम सब ग़लत किताबों की पैदावार है।
रेलवे में घूस लेना इस क़दम कानूनी हो गया है कि अगर कोई घूस न दे तो उस पर रेल बाबू दीवानी का मुक़दमा दायर करने की भी एक बार सोचता है।