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आवाज़ पर उद्धरण

वाणी, ध्वनि, बोल, पुकार,

आह्वान, प्रतिरोध, अभिव्यक्ति, माँग, शोर... अपने तमाम आशयों में आवाज़ उस मूल तत्त्व की ओर ले जाती है जो कविता की ज़मीन है और उसका उत्स भी।

मुझसे पहले की पीढ़ी में जो अक़्लमंद थे, वे गूँगे थे। जो वाचाल थे, वे अक़्लमंद नहीं थे।

विजय देव नारायण साही

ख़ामोशी का जाना भी एक आवाज़ है।

नवीन सागर

एक कीड़ा होता है—अँखफोड़वा, जो केवल उड़ते वक़्त बोलता है—भनु-भनु-भन्! क्या कारण है कि वह बैठकर नहीं बोल पाता? सूक्ष्म पर्यवेक्षण से ज्ञात होगा कि यह आवाज़ उड़ने में चलते हुए उसके पंखों की है।

फणीश्वरनाथ रेणु
  • संबंधित विषय : पंख

कोयल के कूकने और गेट के भीतर अख़बार के गिरने की आवाज़ एक साथ आए तो सबसे पहले क्या—कान या आँख?

सिद्धेश्वर सिंह

यदि आपका कोई नैतिक संदेश है तो कविता में उसे अंतर्निहित होना चाहिए, मुखर नहीं।

केदारनाथ सिंह

वह इस डर से बोलता रहता है कि चुप हुआ तो फिर शायद उसे भी यह याद आए कि कभी उसके पास भी एक आवाज़ हुआ करती थी।

राही मासूम रज़ा

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