
धूमधाम से क्या प्रयोजन? जिनकी हम पूजा करते हैं, उन्हें तो हृदय में स्मरण करना ही पर्याप्त है। जिस पूजा में भक्तिचंदन और प्रेमकुसुम का उपयोग किया जाए, वही पूजा जगत् में सर्वश्रेष्ठ है। आडंबर और भक्ति का क्या साथ?

हे भगवान्! आपने अपने बहुत नाम प्रकट किए हैं, जिनमें आपने अपनी सब शक्ति भर दी है और आपने उनके स्मरण के लिए कोई काल भी सीमित नहीं किए हैं। आपकी ऐसी कृपा है परंतु मेरा ऐसा दुर्भाग्य है कि इस जीवन में मुझमें कोई भक्ति नहीं है।

काम पूरा हो जाने पर कोई भी उसके करने वाले को नहीं देखता—हित पर ध्यान नहीं देता, अतः सभी कार्यों को अधूरे ही रखना चाहिए।

जिसकी स्मरण-शक्ति अत्यंत प्रखर है; वह किसी विषय का यथार्थ, हू-ब-हू विवरण दे देता है।

वह उत्तर प्रदेश जिसे मैं अपनी थाती समझकर प्यार करता था–सिर्फ़ किताबों में बचा है। मुझ तक वह पहुँचा भी किताबों के रास्ते था।

स्याही और गोंद, काग़ज़ और लिफ़ाफ़ा और उस पर लगे टिकट—मेरी स्मृतियों में उतने ही ज़िंदा हैं जितना हमारे मुहल्ले का डाकिया।

अवलोकन, संभाषण, विलास, परिहास, क्रीड़ा, आलिंगन तो दूर रहे, स्त्रियों का स्मरण भी मन को विकृत करने में पर्याप्त है।

प्रेम के बिना श्रुति, स्मृति, ज्ञान, ध्यान, पूजन, श्रवण, कीर्तन सब व्यर्थ है।

वाणी से राम नाम लेते हुए यदि मन विषय की ओर दौड़े तो इसे भगवान का स्मरण नहीं वरन् विस्मरण समझना चाहिए।

इसमें शक नहीं कि डाक टिकटों की गिनती, मेरे क़स्बाई बचपन को सजाने-महकाने वाली उन चीज़ों में थी जिन्हें याद करके मुझे गुलज़ार की लिखी 'बंटी और बबली' की पंक्ति 'छोटे-छोटे शहरों से, ख़ाली बोर दुपहरों से—ग़लत और अपमानजनक लगती है।

देवीशंकर अवस्थी का रचना-संसार छोटा, पर बड़ा वैविध्यपूर्ण है।

यशपाल की शोक-सभाओं में बुद्धिजीवी अपनी मेज़ें छोड़कर पहुँच गए थे, पर बाज़ार का कोई भी कोना बंद नहीं हुआ था।