
भाषा स्वयं सुनती है।

कविता की रचना सुनने से जुड़ी है।

कुत्ते भी बोलते हैं, लेकिन केवल उन्हीं से जो सुनना जानते हैं।

…मौन ऐसा होता है जिसे आप वास्तव में सुन सकते हैं।

अफ़वाह सुनना नहीं, सुनना तो मानना नहीं।

संकट में हर अफ़वाह सुनने योग्य समझी जाती है।
भाषा स्वयं सुनती है।
कविता की रचना सुनने से जुड़ी है।
कुत्ते भी बोलते हैं, लेकिन केवल उन्हीं से जो सुनना जानते हैं।
…मौन ऐसा होता है जिसे आप वास्तव में सुन सकते हैं।
अफ़वाह सुनना नहीं, सुनना तो मानना नहीं।
संकट में हर अफ़वाह सुनने योग्य समझी जाती है।