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तिरुवल्लुवर

समादृत और अत्यंत लोकप्रिय प्राचीन तमिल संत कवि और दार्शनिक। संगम साहित्य में योगदान।

समादृत और अत्यंत लोकप्रिय प्राचीन तमिल संत कवि और दार्शनिक। संगम साहित्य में योगदान।

तिरुवल्लुवर की संपूर्ण रचनाएँ

कविता 36

उद्धरण 27

शत्रु में दोष देखकर बुद्धिमान झट वहीं क्रोध को व्यक्त नहीं करते हैं, अपितु समय को देखकर उस ज्वाला को मन में ही समाए रखते हैं।

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आतिथ्य का निर्वाह करने की मूढ़ता ही धनी की दरिद्रता है। यह बुद्धिहीनों में ही होती है।

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अनेक विद्याओं का अध्ययन करके भी जो समाज के साथ मिलकर आचरणयुक्त जीवन व्यतीत करना नहीं जानते, वे अज्ञानी ही समझे जाएँगे।

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मुँह टेढ़ा करके देखने मात्र से अतिथि का आनंद उड़ जाता है।

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श्रेष्ठ व्यक्ति का सम्मान करके उन्हें अपना बना लेना दुर्लभ पदार्थों से भी अधिक दुर्लभ है।

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