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ज्ञान पर उद्धरण

ज्ञान का महत्त्व सभी

युगों और संस्कृतियों में एकसमान रहा है। यहाँ प्रस्तुत है—ज्ञान, बोध, समझ और जानने के विभिन्न पर्यायों को प्रसंग में लातीं कविताओं का एक चयन।

हम विचारों के स्तर पर जिससे घृणा करते हैं, भावनाओं के स्तर पर उसी से प्यार करते हैं।

गोरख पांडेय

अज्ञान की निवृत्ति में ज्ञान ही समर्थ है, कर्म नहीं, क्योंकि उसका अज्ञान से विरोध नहीं है और अज्ञान की निवृत्ति हुए बिना राग-द्वेष का भी अभाव नहीं हो सकता।

आदि शंकराचार्य

संदेह… एक बीमारी है जो ज्ञान से आती है और पागलपन की ओर ले जाती है।

गुस्ताव फ़्लॉबेयर

प्यार—देखभाल, प्रतिबद्धता, ज्ञान, ज़िम्मेदारी, सम्मान और विश्वास का मेल है।

बेल हुक्स

मुझसे सीखें, यदि मेरे उपदेशों से नहीं, तो मेरे उदाहरण से सीखें कि ज्ञान की खोज कितनी ख़तरनाक है और वह व्यक्ति जो अपने मूल शहर को ही दुनिया मानता है, वह उस व्यक्ति की तुलना में कितना ख़ुश है जो अपनी शक्ति से बड़ा होने की आकांक्षा रखता है।

मैरी वोलस्टोनक्राफ़्ट

अल्प ज्ञान ख़तरनाक वस्तु है।

अलेक्ज़ेंडर पोप

शब्द कैसे कार्य करते हैं, इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता। हमें उनके प्रयोग का ‘निरीक्षण’ करना और उससे सीखना पड़ता है।

लुडविग विट्गेन्स्टाइन

मैं समझा दूँ कि धर्म से मेरा क्या मतलब है। मेरा मतलब हिंदू धर्म से नहीं है जिसकी मैं बेशक और सब धर्म से ज़्यादा क़ीमत आँकता हूँ। मेरा मतलब उस मूल धर्म से है जो हिंदू धर्म से कहीं कहीं उच्चतर है, जो मनुष्य के स्वभाव तक का परिवर्तन कर देता है, जो हमें अंतर के सत्य से अटूट रूप से बाँध देता है और जो निरंतर अधिक शुद्ध और पवित्र बनाता रहता है। वह मनुष्य की प्रकृति का ऐसा स्थायी तत्त्व है जो अपनी संपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए कोई भी क़ीमत चुकाने को तैयार रहता है और उसे तब तक बिल्कुल बेचैन बनाए रखता है जब तक उसे अपने स्वरूप का ज्ञान नहीं हो जाता, अपने स्त्रष्टा के और अपने बीच का सच्चा संबंध समझ में नहीं जाता।

महात्मा गांधी

बलिदान किए बिना कोई भी बड़ा ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता है।

सी. एस. लुईस

किसी विषय में अधूरे ज्ञान से अच्छा है उस विषय में अज्ञान।

पब्लिलियस साइरस

गल्प लिखने के लिए आपको संगठित धोखाधड़ी में शामिल होना पड़ता है, शब्दों के सुदूर बंदरगाह में अनुभव का शोधन करना पड़ता है।

सामंथा हार्वे

अपने अनुभव, भाषा और ज्ञान की गरिमा के बारे में कोई भय या शर्म मत रखो।

जैक केरुआक
  • संबंधित विषय : डर

मनुष्य जितना समझता है, उससे कहीं अधिक जानता है।

अल्फ़्रेड एडलर

जो आप जानते हैं, उसे लिखें।

मार्क ट्वेन

सिर्फ़ शैतान के पास ही अपने ख़ुद के बारे में ज्ञान है।

फ्रांत्स काफ़्का

अत्यधिक ज्ञानवान् व्यक्ति को झूठ बोलना कठिन लगता है।

लुडविग विट्गेन्स्टाइन
  • संबंधित विषय : झूठ

सामान्य ज्ञान दर्शन का लोकगीत है।

अंतोनियो ग्राम्शी

आत्मज्ञान ही हमारी चेतना की शर्त और सीमा है। शायद इसलिए ही कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने अनुभव की छोटी परिधि के बाहर की बातें बहुत कम जानते हैं। वे अपने भीतर देखते हैं और उन्हें जब वहाँ कुछ नहीं मिलता तो वे यह निष्कर्ष निकाल लेते हैं कि बाहर कुछ नहीं है।

हेलेन केलर

सभी ज्ञान आत्म-ज्ञान की ओर ले जाते हैं।

ब्रूस ली

जो व्यक्ति ज्ञान की तलवार से तृष्णा को काटकर, विज्ञान की नौका से अज्ञान रूपी भवसागर को पार कर, विष्णुपद को प्राप्त करता है, वह धन्य है।

आदि शंकराचार्य

धर्म का प्रवाह, कर्म, ज्ञान और भक्ति इन तीन धाराओं में चलता है। इन तीनों के सामंजस्य से धर्म अपनी पूर्ण सजीव दशा में रहता है। किसी एक के भी अभाव से वह विकलांग रहता है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

यदि गुरु (बड़ा) भी घमंड में आकर कर्त्तव्याकर्त्तव्य का ज्ञान खो बैठे और कुमार्ग पर चलने लगे तो उसे भी दंड देना आवश्यक हो जाता है।

वाल्मीकि

अत्यधिक ज्ञान मनुष्य का सबसे बड़ा ख़ज़ाना है।

जे. के. रोलिंग

तुम्हारा दुःख उस छिलके का तोड़ा जाना है, जिसने तुम्हारे ज्ञान को अपने भीतर छिपा रखा है।

खलील जिब्रान
  • संबंधित विषय : दुख

पढ़ाई सभी कामों में सुधार लाना सिखाती है।

जयशंकर प्रसाद

हम अपने बारे में इतना कम और इतना अधिक जानते हैं कि प्रेम ही बचता है प्रार्थना की राख में।

नवीन सागर

आधुनिक युग हर चिंतनशील प्राणी से एक नई तरह की ज़िम्मेदारी की माँग करता है जिसका बहुत ही महत्त्वपूर्ण संबंध हमारे सोचने के ढंग से है।

कुँवर नारायण

प्रश्न स्वयं कभी किसी के सामने नहीं आते।

जयशंकर प्रसाद

आजकल समता का सिद्धांत जो प्रचलित हो रहा है, उससका आधार प्रेम नहीं, यही संपत्ति और प्रभुत्व है। वैज्ञानिकों के ज्ञान और नीतिज्ञों की नीति—दोनों का लक्ष्य इसी सपत्ति और प्रभुत्व की वृद्धि है। उसी के कारण जीवन में संघर्ष है और देश में युद्ध है।

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी

जानने की कोशिश मत करो। कोशिश करोगे तो पागल हो जाओगे।

राजकमल चौधरी

इस सामाजिक व्यवस्था में ही नहीं, एक जीवंत और उल्लसित भावी व्यवस्था में भी ज्ञान का माध्यम सदा कष्ट ही रहेगा।

रघुवीर सहाय

शब्दों की शक्तियों का जितना ही अधिक बोध होगा अर्थबोध उतना ही सुगम्य होगा। इसके लिए पुरातन साहित्य का अनुशीलन तो करना ही चाहिए, समाज का व्यापक अनुभव भी प्राप्त करना चाहिए।

त्रिलोचन

जो वेद-ज्ञान से रहित है, वही अंधा है। जो याचक के निरर्थक लिए है, वही शठ है। जो यश-विहीन है, वही मृतक है। जिसकी बुद्धि धर्म में नहीं है, वही शोचनीय है।

क्षेमेंद्र

अपने अनुभव से हासिल किया ज्ञान है कि डाॅक्टर और माशूक़ कभी नहीं बदलने चाहिए। आप फ़ालतू सवालों से बच जाते हैं।

स्वदेश दीपक

अभय, अन्तःकरण की शुद्धता, ज्ञान मार्ग और योग मार्ग में विशेष स्थिति, दान, दम, यज्ञ, स्वाध्याय, तप, सरलता, अहिंसा, सत्य, अक्रोध, त्याग, शांति, चुग़ली करना, भूतों पर दया, अलोलुपता, मृदुता, लज्जा, चंचलता का होना, तेजस्विता, क्षमा, धृति, पवित्रता, द्रोह का अभाव, निरभिमानता, ये लज्ञण, दैवी संपत्ति लेकर उत्पन्न हुए मनुष्य में होते हैं।

वेदव्यास

मेघ-संकुल आकाश की तरह जिसका भविष्य घिरा हो, उसकी बुद्धि को तो बिजली के समान चमकना ही चाहिए।

जयशंकर प्रसाद

ज्ञान आपको शक्ति देता है, चरित्र आपको सम्मान दिलाता है।

ब्रूस ली

यदि मन में शिथिलता, श्रांति या शून्यता हो तो काव्यानुशीलन करना चाहिए।

त्रिलोचन

सारे तत्त्व एक दूसरे को प्रति-प्रयुक्त भी करते हैं।

श्रीनरेश मेहता

चिंता और उद्विग्नता भी काव्य-सौंदर्य को परिच्छिन्न करती है।

त्रिलोचन

पाठक की ग्राहक कल्पना का विकास प्रत्यभिज्ञा के आश्रय से होता है। जिसकी निरीक्षण शक्ति जितनी विकसित होगी उसकी भावना का भी परिपाक तदनुकूल ही होगा।

त्रिलोचन

कवि में जिस प्रकार विधायक कल्पना की आवश्यकता है, उसी प्रकार पाठक में ग्राहक कल्पना की आवश्यकता होती है।

त्रिलोचन
  • संबंधित विषय : कवि

हमारा मन जिस प्रकार विचारों के सहारे आगे बढ़ता है, उसी प्रकार मानव-चेतना प्रतीकों के सहारे विकसित होती है।

सुमित्रानंदन पंत

पूर्व-धारणाओं से काव्यार्थ-बोध में प्रायः बाधा उपस्थित होती है।

त्रिलोचन

ज्ञान, इच्छा और क्रिया जैसे और लोगों में है; वैसे ही रचनाकार और आलोचक में भी।

त्रिलोचन

कभी-कभी विचार-विशेष से आग्रह से भी काव्य समझने में बाधा खड़ी होती है।

त्रिलोचन

किसी भी काव्य का अध्ययन करने से पहले आत्म-परीक्षा कर लेनी चाहिए।

त्रिलोचन

ज्ञान अपनी संपूर्णता में प्रकृतिगत छल है—संबल है, हम सबका एक मात्र अज्ञान।

राजकमल चौधरी
इसी1 के द्वारा सत्ता का आभास मिल सकता है। यही अभेद ज्ञान और धर्म दोनों का लक्ष्य है। विज्ञान इसी अभेद की खोज में है, धर्म इसी की ओर दिखा रहा है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल

विवेक के कारण अनात्म होते ही आप ‘पुरुष’ हो जाते हैं और तब ‘इच्छा’ आपकी इच्छा पर निर्भर होने लगती है।

श्रीनरेश मेहता