आत्मा पर उद्धरण
आत्मा या आत्मन् भारतीय
दर्शन के महत्त्वपूर्ण प्रत्ययों में से एक है। उपनिषदों ने मूलभूत विषय-वस्तु के रूप में इस पर विचार किया है जहाँ इसका अभिप्राय व्यक्ति में अंतर्निहित उस मूलभूत सत् से है जो शाश्वत तत्त्व है और मृत्यु के बाद भी जिसका विनाश नहीं होता। जैन धर्म ने इसे ही ‘जीव’ कहा है जो चेतना का प्रतीक है और अजीव (जड़) से पृथक है। भारतीय काव्यधारा इसके पारंपरिक अर्थों के साथ इसका अर्थ-विस्तार करती हुई आगे बढ़ी है।
मैं शरीर में रहकर भी शरीर-मुक्त, और समाज में रहकर भी समाज-मुक्त हूँ।
मैंने ऐसे आदमी देखे हैं, जिनमें किसी ने अपनी आत्मा कुत्ते में रख दी है, किसी ने सूअर में। अब तो जानवरों ने भी यह विद्या सीख ली है और कुछ कुत्ते और सूअर अपनी आत्मा किसी आदमी में रख देते हैं।
अमिश्रित आदर्शवाद में मुझे आत्मा का गौरव दिखाई देता है।
हम मात्र एक, ‘भटकन’ हैं, अपनी आत्मा के विशाल दृश्यों में कोई अर्थ ढूँढ़ते हुए।
संगीत दो आत्माओं के बीच फैली अनंतता को भरता है।
जैसे शुद्ध पानी में सोने और चांदी का वजन होता है, वैसे ही आत्मा मौन में अपना वजन परखती है, और हम जिन शब्दों का प्रयोग करते हैं हमारे जो उनका कोई अर्थ नहीं होता उस मौन के सिवा जो उन्हें घेरे रहता है।
(हिंदी में) ‘आत्मकथ्य’ केवल एक शब्द भर है। यहाँ आत्मा को शक से देखा जाता है और कथ्य पर कोई भरोसा नहीं करता।
आत्मशुद्धि सबसे पहली चीज़ है, वह सेवा की अनिवार्य शर्त है।
मेरी आत्मा बड़ी सुलझी हुई बात कह देती है कभी-कभी। अच्छी आत्मा ‘फ़ोल्डिंग’ कुर्सी की तरह होनी चाहिए। ज़रूरत पड़ी तब फैलाकर उस पर बैठ गए; नहीं तो मोड़कर कोने में टिका दिया।
आत्महत्या या स्वेच्छा से मरने के लिए प्रस्तुत होना—भगवान् की अवज्ञा है। जिस प्रकार सुख-दुःख उसके दान हैं, उन्हें मनुष्य झेलता है, उसी प्रकार प्राण भी उसकी धरोहर हैं।
आत्मा की शक्ति को पहचानना ही आत्म-ज्ञान है। आत्मा तो बैठे-बैठे दुनिया को हिला सकती है।
हर प्रगतिशील आत्मा का विरोध हजारों औसत दर्जे की मानसिकताओं द्वारा किया जाता है, जो अतीत की रक्षा के लिए नियुक्त किए गए हैं।
कहीं भी, कभी भी अपने मन को मज़बूत बनाओ।
अन्तःकरण तो क़ायरों द्वारा प्रयुक्त शब्दमात्र है, सर्वप्रथम इसकी रचना शक्तिशालियों को भयभीत रखने के लिए हुई थी।
प्रभाववाद आत्मा का समाचार पत्र है।
अंतःकरण के विषयों में, बहुमत के नियम का कोई स्थान नहीं है।
अनुचित इच्छाएँ तो उठती ही रहेंगी। उनका हम ज्यों-ज्यों दमन करेंगे त्यों-त्यों दृढ़ बनेंगे और हमारा आत्मबल बढ़ेगा।