
मनुष्य की सार्थक उपलब्धियाँ वे हैं जो सामाजिक रूप से उपयोगी हैं।

आनंदमय आत्मा की उपलब्धि विकल्पात्मक विचारों और तर्कों से नहीं हो सकती।

गृहस्थाश्रम में कोई कर्मयोग द्वारा परलोक में सिद्धि बताते हैं। दूसरे लोग कर्म का त्याग कर ज्ञान द्वारा सिद्धि का प्रतिपादन करते हैं। विद्वान पुरुष भी इस जगत् में भक्ष्य पदार्थों का भोजन किए बिना तृप्त नहीं हो सकता, अतएव विद्वान ब्राह्मण के लिए भी क्षुधा-निवृत्ति के लिए भोजन करने का विधान है।

जनतंत्र सदैव ही संकेत से बुलाने वाली मंजिल है, कोई सुरक्षित बंदरगाह नहीं। कारण यह है कि स्वतंत्रता एक सतत प्रयास है, कभी भी अंतिम उपलब्धि नहीं।

बिना उत्साह के कोई महान उपलब्धि कभी नहीं हुई।
