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जयशंकर प्रसाद

1889 - 1937 | वाराणसी, उत्तर प्रदेश

छायावादी दौर के चार स्तंभों में से एक। समादृत कवि-कथाकार और नाटककार।

छायावादी दौर के चार स्तंभों में से एक। समादृत कवि-कथाकार और नाटककार।

जयशंकर प्रसाद की संपूर्ण रचनाएँ

कविता 1

 

गीत 23

कहानी 5

 

निबंध 8

काव्य खंड 7

उद्धरण 199

कोई समाज और धर्म स्त्रियों के नहीं। बहन! सब पुरुषों के हैं। सब हृदय को कुचलने वाले क्रूर हैं, फिर भी मैं समझती हूँ कि स्त्रियों का एक धर्म है, वह है आघात सहने की क्षमता रखना। दुर्देव के विधान ने उसके लिए यही पूर्णता बना दी है। यह उनकी रचना है।

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देशभक्त, जननी का सच्चा पुत्र है।

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प्रत्येक जाति में मनुष्य को बाल्यकाल ही में एक धर्म-संघ का सदस्य बना देने की मूर्खतापूर्ण प्रथा चली रही है। जब उसमें जिज्ञासा नहीं, प्रेरणा नहीं, तब उसके धर्मग्रहण करने का क्या तात्पर्य हो सकता है?

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पुरुषों के प्रति स्त्रियों का हृदय, प्रायः विषम और प्रतिकूल रहता है। जब लोग कहते हैं कि वे एक आँख से रोती हैं तो दूसरी से हँसती हैं, तब कोई भूल नहीं करते। हाँ, यह बात दूसरी है कि पुरुषों के इस विचार में व्यंग्यपूर्ण दृष्टिकोण का अंश है।

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वही शरीर है, वही रूप है, वही हृदय है; पर छिन गया अधिकार और मनुष्य का मान-दंड ऐश्वर्य। अब तुलना में सबसे छोटी हूँ। जीवन लज्जा की रंगभूमि बन रहा है।

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पुस्तकें 12

वीडियो 5

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